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सु-भद्रा  [हिन्दी कथा]
शिक्षदायक कहानी - हिन्दी कथा (Short Story)

जो पहले था, अब भी है और सदा रहेगा, वही 'सत्' है; जिसके सुननेसे हित होता है, ऐसे वृत्तान्तको भी 'सत्' कहते हैं। ऐसे 'सत्' की कथा करना ही 'कल्याण' के इस अङ्ककी विशेषता है। मैं आपकी सेवा ऐसी एक सत्कथा उपस्थित करता हूँ, जो जीवनका उत्तम दर्शन है एवं जिसके आधारपर हमारा मनुष्य जीवन प्रत्येक अवस्थामें शान्त, निर्मल और प्रगतिशील रहकर स्व-पर-कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है l

वसुदेव-नन्दन, कंस- चाणूर मर्दन, देवकी - परमानन्द जगद्गुरु श्रीकृष्णकी बहिन 'सुभद्रा' देवी दोग्धा गोपाल नन्दनके मित्र वत्स पार्थको दी गयी थी।

पुत्र अभिमन्युके चन्द्र-लोकगमनका समाचार सुनकर सुभद्राकी अश्रुधारा रोकना धर्मराजको भी असम्भव लगा। नन्दनन्दन बोले—'बहिन ! तू योगेश्वरकी बहिन होकर रोती है-यह शोभा नहीं देता। जो आत्मा था, वह तो किसीने देखा नहीं और जो शरीर दिखायी दिया, वह अब भी है। कौन अभिमन्यु पैदा हुआ और कौन मरा! बता तो सही।' इस प्रकार तत्त्व-ज्ञान सुनानेपर भीरुदन बंद नहीं हुआ। भगवान् बोले- 'बहिन ! युद्धमें तो तूने ही उसे तिलक करके भेजा था और कहा था कि हारा हुआ मुँह मुझे मत दिखाना । यदि विजय करके आया तो मेरी गोद है अन्यथा पृथ्वी माताकी गोद है। इस प्रकार वीरतापूर्ण संदेश देनेवाली रोये, यह अयोग्य है।'

सुभद्राने उत्तर दिया, 'भैया, चुप रहो! इस समय बोलो मत। तुम्हारी बहिन सुभद्रा तो सु-भद्रा ही है परम शान्त है-वह कभी नहीं रोती । युद्धमें भेजनेवाली वीर - पत्नी क्षत्रियाणी थी और रोनेवाली बेटेकी माँ है, इसे रो लेने दो। जाओ ! तुम पहले माँ बनो और बेटा मर जाये तो नहीं रोओ, तब मुझे समझाने आना ।' भगवान् श्रीकृष्ण चुप हो गये।

प्रत्येक मनुष्यके मानसमें ऐसी एक सुभद्रावृत्ति रहती है, जो भगवान्‌की बहिन है। वह निरन्तर शान्त रहती है और दुनियाके सब कर्तव्यकर्म निर्लिप्तभावसे करती है— उसे पहचानकर स्वधर्मका पालन करना ही जीवनका उत्तम दर्शन है।

स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः ।



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su-bhadraa

jo pahale tha, ab bhee hai aur sada rahega, vahee 'sat' hai; jisake sunanese hit hota hai, aise vrittaantako bhee 'sat' kahate hain. aise 'sat' kee katha karana hee 'kalyaana' ke is ankakee visheshata hai. main aapakee seva aisee ek satkatha upasthit karata hoon, jo jeevanaka uttam darshan hai evan jisake aadhaarapar hamaara manushy jeevan pratyek avasthaamen shaant, nirmal aur pragatisheel rahakar sva-para-kalyaanakaaree siddh ho sakata hai l

vasudeva-nandan, kansa- chaanoor mardan, devakee - paramaanand jagadguru shreekrishnakee bahin 'subhadraa' devee dogdha gopaal nandanake mitr vats paarthako dee gayee thee.

putr abhimanyuke chandra-lokagamanaka samaachaar sunakar subhadraakee ashrudhaara rokana dharmaraajako bhee asambhav lagaa. nandanandan bole—'bahin ! too yogeshvarakee bahin hokar rotee hai-yah shobha naheen detaa. jo aatma tha, vah to kiseene dekha naheen aur jo shareer dikhaayee diya, vah ab bhee hai. kaun abhimanyu paida hua aur kaun maraa! bata to sahee.' is prakaar tattva-jnaan sunaanepar bheerudan band naheen huaa. bhagavaan bole- 'bahin ! yuddhamen to toone hee use tilak karake bheja tha aur kaha tha ki haara hua munh mujhe mat dikhaana . yadi vijay karake aaya to meree god hai anyatha prithvee maataakee god hai. is prakaar veerataapoorn sandesh denevaalee roye, yah ayogy hai.'

subhadraane uttar diya, 'bhaiya, chup raho! is samay bolo mata. tumhaaree bahin subhadra to su-bhadra hee hai param shaant hai-vah kabhee naheen rotee . yuddhamen bhejanevaalee veer - patnee kshatriyaanee thee aur ronevaalee betekee maan hai, ise ro lene do. jaao ! tum pahale maan bano aur beta mar jaaye to naheen roo, tab mujhe samajhaane aana .' bhagavaan shreekrishn chup ho gaye.

pratyek manushyake maanasamen aisee ek subhadraavritti rahatee hai, jo bhagavaan‌kee bahin hai. vah nirantar shaant rahatee hai aur duniyaake sab kartavyakarm nirliptabhaavase karatee hai— use pahachaanakar svadharmaka paalan karana hee jeevanaka uttam darshan hai.

svakarmana tamabhyarchy siddhin vindati maanavah .

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