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सीख एक गुरुकी  [हिन्दी कहानी]
Story To Read - हिन्दी कहानी (Hindi Story)

सीख एक गुरुकी

उत्तर भारतके पहाड़ी इलाकेमें एक गुरुका आश्रम था। उनके पास सुदूर क्षेत्रोंसे शिष्य शिक्षा ग्रहण करने आते थे। गुरु शिष्योंको धार्मिकके साथ व्यावहारिक शिक्षा भी देते थे। सभी शिष्य शिक्षा समाप्तिके बाद अपने घरोंको लौट गये, लेकिन एक शिष्य वहीं आश्रममें रह गया और वहीं रहने लगा। एक दिन उसने गुरुदेवसे कहा - 'गुरुदेव ! मुझे कुछ समझ नहीं आता है, कोई मार्ग दिखायी नहीं दे रहा है। अक्सर मैं उन चीजोंके बारेमें सोचता रहता हूँ, जिनका निषेध किया गया है। मुझे उन चीजोंको प्राप्त करनेकी इच्छा होती है, जो वर्जित हैं। मैं उन कार्योंको करनेकी योजना बनाता रहता हूँ, जिन्हें करना मेरे हितमें नहीं है। मैं क्या करूँ ?' गुरुने शिष्यको पास ही रखे गमलेमें लगे एक पौधेको देखनेके लिये कहा और पूछा—'यह क्या शिष्यके पास इसका कोई जवाब नहीं था। गुरुने बताया यह एक विषैला पौधा है। यदि तुम इसकी पत्तियोंको खा लो तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है, लेकिन देखनेमात्रसे यह तुम्हारा कोई अहित नहीं करेगा। इसी प्रकार अधोगतिकी ओर ले जानेवाले विचार तबतक तुम्हें हानि नहीं पहुँचा सकते, जबतक तुम वास्तविक रूपसे उनमें प्रवृत्त न हो जाओ। इसलिये कहते हैं कि मनमें उठनेवाले गलत न होते हुए अपने मकसदपरसे ध्यान नहीं हटाना चाहिये। मनमें विचार तो आते हैं, आने देना चाहिये, पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि विचार मनपर कब्जा न कर लें। मन विचारोंके न हो जाय। मनके अधीन जबतक विचार रहेंगे, तबतक ठीक है, पर जब विचारोंके अधीन मन हो जाता है तो सब कुछ उलटा-सीधा हो जाता है। सावधानी तो रखनी होगी।



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seekh ek gurukee

seekh ek gurukee

uttar bhaaratake pahaada़ee ilaakemen ek guruka aashram thaa. unake paas sudoor kshetronse shishy shiksha grahan karane aate the. guru shishyonko dhaarmikake saath vyaavahaarik shiksha bhee dete the. sabhee shishy shiksha samaaptike baad apane gharonko laut gaye, lekin ek shishy vaheen aashramamen rah gaya aur vaheen rahane lagaa. ek din usane gurudevase kaha - 'gurudev ! mujhe kuchh samajh naheen aata hai, koee maarg dikhaayee naheen de raha hai. aksar main un cheejonke baaremen sochata rahata hoon, jinaka nishedh kiya gaya hai. mujhe un cheejonko praapt karanekee ichchha hotee hai, jo varjit hain. main un kaaryonko karanekee yojana banaata rahata hoon, jinhen karana mere hitamen naheen hai. main kya karoon ?' gurune shishyako paas hee rakhe gamalemen lage ek paudheko dekhaneke liye kaha aur poochhaa—'yah kya shishyake paas isaka koee javaab naheen thaa. gurune bataaya yah ek vishaila paudha hai. yadi tum isakee pattiyonko kha lo to tumhaaree mrityu nishchit hai, lekin dekhanemaatrase yah tumhaara koee ahit naheen karegaa. isee prakaar adhogatikee or le jaanevaale vichaar tabatak tumhen haani naheen pahuncha sakate, jabatak tum vaastavik roopase unamen pravritt n ho jaao. isaliye kahate hain ki manamen uthanevaale galat n hote hue apane makasadaparase dhyaan naheen hataana chaahiye. manamen vichaar to aate hain, aane dena chaahiye, par yah dhyaan rakhana jarooree hai ki vichaar manapar kabja n kar len. man vichaaronke n ho jaaya. manake adheen jabatak vichaar rahenge, tabatak theek hai, par jab vichaaronke adheen man ho jaata hai to sab kuchh ulataa-seedha ho jaata hai. saavadhaanee to rakhanee hogee.

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