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सहकारका चमत्कार  [Moral Story]
Story To Read - हिन्दी कथा (Story To Read)

सहकारका चमत्कार

एक-दूसरेकी आपसी मददसे किस प्रकार कार्य सफल हो सकते हैं, इसका बड़ी खूबीके साथ चित्रण करनेवाली उपनिषद्की एक प्रतीक कथा प्राचीन पण्डितोंमें प्रचलित है। एक बार प्रजापतिने एक बड़ी दावतका आयोजन किया, जिसमें देवों और दानवोंको भी भोजनार्थ आमन्त्रित किया गया। एक विशाल मण्डपमें देवताओंकी पंक्तियाँ बैठीं, दूसरेमें दानवोंकी, किंतु मण्डपमें प्रवेशकी प्रक्रिया यह रखी गयी कि जो-जो अतिथि द्वारसे अन्दर घुसें, उनके हाथोंकी कुहनियोंपर एक काठकी पट्टी कसकर बाँध दी जाय, ताकि उनके हाथ न मुड़ सकें। जब हाथ इस तरह बँधे होंगे तो इतने उत्कृष्ट स्वादिष्ट भोजनको भी आप खा कैसे सकते हैं! पत्तलोंपर पहुँचते ही सबको बड़ी खीझ हुई, आक्रोश हुआ । दानवोंके मण्डपसे कोलाहल उठा कि 'यह कैसा मजाक है ? यदि खाने ही नहीं देना था तो बुलाया क्यों ?'
देवताओंके मण्डपसे पहले तोआक्रोशके
स्वर सुनायी दिये, फिर खामोशी छा गयी। प्रजापति मामला शान्त करानेके लिये दानवोंके मण्डपमें गये। उनसे जोर-शोरसे शिकायत की गयी, नारे लगने लगे। प्रजापतिने कहा कि 'आपके मण्डपसे तो इतना बावेला सुनायी दे रहा है, देवताओंके मण्डपसे तो इतनी शिकायत नहीं आयी। आपमें से कोई एक वहाँ भी जाकर देखे, वे क्यों नारे नहीं लगा रहे ?' एक प्रतिनिधिने उस मण्डपमें जाकर देखा तो विचित्र ही दृश्य था । वहाँ एक-एक पत्तलपर एक-एक भोजनकर्ताके बैठनेकी बजाय एक-एक पत्तलके दोनों ओर एक-एक भोजनकर्ता अर्थात् दो-दो देवता प्रत्येक पत्तलपर बैठे थे। हाथके न मुड़ पानेके कारण अपने मुँहमें तो उनका हाथ नहीं जा पाता था, किंतु वे एक-दूसरेको भली-भाँति सारे स्वादिष्ट पदार्थ खिला रहे थे। प्रजापतिने समझाया कि समस्याके आ जानेपर उबल पड़नेकी बजाय एक-दूसरेके सहयोगसे कोई दूसरा रास्ता निकाल लेनेसे ही सफलता मिलती है, केवल आक्रोशसे या विद्रोहसे काम नहीं निकला करते। सहकारितासे मार्ग निकालना उत्कृष्ट जीवन जीनेकी ऐसी कुंजी है, जो सारी समस्याएँ हल कर सकती है। [म0म0 देवर्षि श्रीकलानाथजी शास्त्री ]



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sahakaaraka chamatkaara

sahakaaraka chamatkaara

eka-doosarekee aapasee madadase kis prakaar kaary saphal ho sakate hain, isaka bada़ee khoobeeke saath chitran karanevaalee upanishadkee ek prateek katha praacheen panditonmen prachalit hai. ek baar prajaapatine ek bada़ee daavataka aayojan kiya, jisamen devon aur daanavonko bhee bhojanaarth aamantrit kiya gayaa. ek vishaal mandapamen devataaonkee panktiyaan baitheen, doosaremen daanavonkee, kintu mandapamen praveshakee prakriya yah rakhee gayee ki jo-jo atithi dvaarase andar ghusen, unake haathonkee kuhaniyonpar ek kaathakee pattee kasakar baandh dee jaay, taaki unake haath n muda़ saken. jab haath is tarah bandhe honge to itane utkrisht svaadisht bhojanako bhee aap kha kaise sakate hain! pattalonpar pahunchate hee sabako bada़ee kheejh huee, aakrosh hua . daanavonke mandapase kolaahal utha ki 'yah kaisa majaak hai ? yadi khaane hee naheen dena tha to bulaaya kyon ?'
devataaonke mandapase pahale toaakroshake
svar sunaayee diye, phir khaamoshee chha gayee. prajaapati maamala shaant karaaneke liye daanavonke mandapamen gaye. unase jora-shorase shikaayat kee gayee, naare lagane lage. prajaapatine kaha ki 'aapake mandapase to itana baavela sunaayee de raha hai, devataaonke mandapase to itanee shikaayat naheen aayee. aapamen se koee ek vahaan bhee jaakar dekhe, ve kyon naare naheen laga rahe ?' ek pratinidhine us mandapamen jaakar dekha to vichitr hee drishy tha . vahaan eka-ek pattalapar eka-ek bhojanakartaake baithanekee bajaay eka-ek pattalake donon or eka-ek bhojanakarta arthaat do-do devata pratyek pattalapar baithe the. haathake n muda़ paaneke kaaran apane munhamen to unaka haath naheen ja paata tha, kintu ve eka-doosareko bhalee-bhaanti saare svaadisht padaarth khila rahe the. prajaapatine samajhaaya ki samasyaake a jaanepar ubal pada़nekee bajaay eka-doosareke sahayogase koee doosara raasta nikaal lenese hee saphalata milatee hai, keval aakroshase ya vidrohase kaam naheen nikala karate. sahakaaritaase maarg nikaalana utkrisht jeevan jeenekee aisee kunjee hai, jo saaree samasyaaen hal kar sakatee hai. [ma0ma0 devarshi shreekalaanaathajee shaastree ]

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