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गुरुसेवासे विद्याप्राप्ति  [Short Story]
शिक्षदायक कहानी - Shikshaprad Kahani (Wisdom Story)

वर्षाके दिन थे, वृष्टि प्रारम्भ हो गयी थी। आयोद धौम्य ऋषिने अपने शिष्य आरुणिको आदेश दिया 'जाकर धानके खेतकी मेड़ बाँध दो। पानी खेतसे बाहर न जाने पाये।'

आरुणि खेतपर पहुँचे। मेड़ टूट गयी थी और बड़े वेगसे खेतका जल बाहर जा रहा था। बहुत प्रयत्न किया आरुणिने; किंतु वे मेड़ बाँधनेमें सफल न हो सके। जलका वेग इतना था कि वे जो मिट्टी मेड़ बाँधनेको रखते, उसे प्रवाह बहा ले जाता। जब मेड़ बाँधनेका प्रयत्न सफल न हुआ, तब स्वयं आरुणि टूटी मेड़के स्थानपर आड़े होकर लेट गये। उनके शरीरसे पानीका प्रवाह रुक गया।

पानीके भीतर पड़े आरुणिका शरीर अकड़ गया। जोंकें और दूसरे जलजन्तु उन्हें काट रहे थे। परंतु वे स्थिर पड़े रहे। हिलनेका नाम भी उन्होंने नहीं लिया।

पूरी रात्रि वे वैसे ही स्थिर रहे इधर रात्रिमें अँधेरा होनेपर धौम्य ऋषिको चिन्ता हुई। उन्होंने अन्य शिष्योंसे पूछा- 'आरुणि कहाँ है ? 'शिष्योंने बताया- 'आपने उन्हें खेतकी मेड़ बाँधने भेजा, तबसे वे लौटे नहीं।'

पूरी रात्रि ऋषि सो नहीं सके। सबेरा होते ही शिष्योंके साथ खेतके समीप जाकर पुकारने लगे 'बेटा आरुणि! कहाँ हो तुम ?'

मूर्छितप्राय आरुणिको गुरुदेवका स्वर सुनायी पड़ा। उन्होंने वहींसे उत्तर दिया- 'भगवन्! मैं यहाँ जलका वेग रोके पड़ा हूँ।'

ऋषि शीघ्रतापूर्वक वहाँ पहुँचे। आरुणिको उन्होंने उठनेका आदेश दिया। जैसे ही आरुणि उठे, ऋषिने उन्हें हृदयसे लगा लिया और बोले-'वत्स! तुम क्यारीको विदीर्ण करके उठे हो, अतः अबसे तुम्हारा नाम उद्दालक होगा। सब वेद तथा धर्मशास्त्र तुम्हारे अन्तःकरणमें स्वयं प्रकाशित हो जायँगे। लोकमें और परलोकमें भी तुम्हारा मङ्गल होगा।'

गुरुकृपासे आरुणि समस्त शास्त्रोंके विद्वान् हो गये। वे उद्दालक ऋषिके नामसे प्रसिद्ध हैं।

-सु0 सिं0

(महाभारत, आदिपर्व 3)



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gurusevaase vidyaapraapti

varshaake din the, vrishti praarambh ho gayee thee. aayod dhaumy rishine apane shishy aaruniko aadesh diya 'jaakar dhaanake khetakee meda़ baandh do. paanee khetase baahar n jaane paaye.'

aaruni khetapar pahunche. meda़ toot gayee thee aur bada़e vegase khetaka jal baahar ja raha thaa. bahut prayatn kiya aarunine; kintu ve meda़ baandhanemen saphal n ho sake. jalaka veg itana tha ki ve jo mittee meda़ baandhaneko rakhate, use pravaah baha le jaataa. jab meda़ baandhaneka prayatn saphal n hua, tab svayan aaruni tootee meda़ke sthaanapar aada़e hokar let gaye. unake shareerase paaneeka pravaah ruk gayaa.

paaneeke bheetar pada़e aarunika shareer akada़ gayaa. jonken aur doosare jalajantu unhen kaat rahe the. parantu ve sthir pada़e rahe. hilaneka naam bhee unhonne naheen liyaa.

pooree raatri ve vaise hee sthir rahe idhar raatrimen andhera honepar dhaumy rishiko chinta huee. unhonne any shishyonse poochhaa- 'aaruni kahaan hai ? 'shishyonne bataayaa- 'aapane unhen khetakee meda़ baandhane bheja, tabase ve laute naheen.'

pooree raatri rishi so naheen sake. sabera hote hee shishyonke saath khetake sameep jaakar pukaarane lage 'beta aaruni! kahaan ho tum ?'

moorchhitapraay aaruniko gurudevaka svar sunaayee pada़aa. unhonne vaheense uttar diyaa- 'bhagavan! main yahaan jalaka veg roke pada़a hoon.'

rishi sheeghrataapoorvak vahaan pahunche. aaruniko unhonne uthaneka aadesh diyaa. jaise hee aaruni uthe, rishine unhen hridayase laga liya aur bole-'vatsa! tum kyaareeko videern karake uthe ho, atah abase tumhaara naam uddaalak hogaa. sab ved tatha dharmashaastr tumhaare antahkaranamen svayan prakaashit ho jaayange. lokamen aur paralokamen bhee tumhaara mangal hogaa.'

gurukripaase aaruni samast shaastronke vidvaan ho gaye. ve uddaalak rishike naamase prasiddh hain.

-su0 sin0

(mahaabhaarat, aadiparv 3)

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