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अन्त मति सो गति  [Hindi Story]
आध्यात्मिक कहानी - Hindi Story (Moral Story)

सौराष्ट्र में थानगढ़ नामक छोटेसे गाँवमें बेचर भक्त नामक एक सरल हृदय परम भक्त रहते थे। इनके घर एक बार एक साधु आये। उन्हें द्वारकाजी जाना था। जाते समय वे कपड़े में लपेटी हुई एक छोटी-सी पुस्तक बेचरजीको यह कहकर दे गये कि, 'तुम इसको अपने पास रखो, मैं द्वारकासे लौटकर ले लूँगा ।'बहुत दिन हो गये; महात्माजी लौटे नहीं, तब बेचर भक्तने विचार किया कि महात्माजी आये नहीं, देखें इसमें क्या है । भक्तजीने कपड़ा खोलकर पुस्तक देखी तो उसमें एक छोटा-सा साँपका बच्चा दिखलायी दिया। उन्होंने उसे सँडासीसे पकड़कर दूर फेंक दिया पर थोड़ी ही देरमें वह फिर आकर पुस्तकपर बैठ गया ।इसपर भक्तजीके मनमें आया कि इसमें कोई रहस्य अवश्य होना चाहिये। उन्होंने पुस्तकका जिल्द तोड़कर देखा तो उसमें पाँच रुपये थे। भक्तजीने रुपये निकालकर पुस्तकसे अलग रख दिये, तो क्या देखते हैं कि सर्पका बच्चा तुरंत पुस्तकसे हटकर रुपयोंपर आ बैठा। इससे बेचर भक्तके मनमें यह संदेह हुआ कि कदाचित् उन साधुजीका देहान्त हो गया हो और रुपयोंमें वासनारहने के कारण अन्तकालमें रुपयोंमें मन रहा हो तथा इसीसे वे सर्प हो गये हों। तब भक्तजीने हाथमें जल लेकर संकल्प किया कि 'महाराजजी ! आपकी यदि इन रुपयों में वासना रही हो तो इन पाँच रुपयोंमें सवा रुपया • अपनी ओरसे और मिलाकर मैं साधुओंको भोजन करा दूँगा ।' यों कहकर उन्होंने जल नीचे छोड़ दिया। सर्पका बच्चा जल छोड़ते ही तुरंत वहीं मर गया।



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ant mati so gati

sauraashtr men thaanagadha़ naamak chhotese gaanvamen bechar bhakt naamak ek saral hriday param bhakt rahate the. inake ghar ek baar ek saadhu aaye. unhen dvaarakaajee jaana thaa. jaate samay ve kapada़e men lapetee huee ek chhotee-see pustak becharajeeko yah kahakar de gaye ki, 'tum isako apane paas rakho, main dvaarakaase lautakar le loonga .'bahut din ho gaye; mahaatmaajee laute naheen, tab bechar bhaktane vichaar kiya ki mahaatmaajee aaye naheen, dekhen isamen kya hai . bhaktajeene kapada़a kholakar pustak dekhee to usamen ek chhotaa-sa saanpaka bachcha dikhalaayee diyaa. unhonne use sandaaseese pakada़kar door phenk diya par thoda़ee hee deramen vah phir aakar pustakapar baith gaya .isapar bhaktajeeke manamen aaya ki isamen koee rahasy avashy hona chaahiye. unhonne pustakaka jild toda़kar dekha to usamen paanch rupaye the. bhaktajeene rupaye nikaalakar pustakase alag rakh diye, to kya dekhate hain ki sarpaka bachcha turant pustakase hatakar rupayonpar a baithaa. isase bechar bhaktake manamen yah sandeh hua ki kadaachit un saadhujeeka dehaant ho gaya ho aur rupayonmen vaasanaarahane ke kaaran antakaalamen rupayonmen man raha ho tatha iseese ve sarp ho gaye hon. tab bhaktajeene haathamen jal lekar sankalp kiya ki 'mahaaraajajee ! aapakee yadi in rupayon men vaasana rahee ho to in paanch rupayonmen sava rupaya • apanee orase aur milaakar main saadhuonko bhojan kara doonga .' yon kahakar unhonne jal neeche chhoda़ diyaa. sarpaka bachcha jal chhoda़te hee turant vaheen mar gayaa.

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