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सीख वाको दीजिये  [Shikshaprad Kahani]
Short Story - Moral Story (बोध कथा)

'सीख वाको दीजिये ,

(डॉ0 चक्षुप्रभाजी, एम0ए0, पी-एच0डी0)

फाल्गुनका महीना चल रहा था। ठण्डी ठण्डी हवाके साथ धीमी-धीमी बूँदें भी ठण्ड बढ़ानेमें मौसमकी सहायता कर रही थीं। महीन रिमझिम फुहारकी बूँदें तथा मन्द समीरके झोंके शान्त वातावरणको अशान्त कर रहे थे। वृक्षोंपर भी पक्षियोंकी चहल-पहल कम होती जा रही थी।
इसी समय एक वृक्षपर छोटी-सी चिड़िया अपने अण्डे-बच्चे लेकर बैठी वातावरणकी इस चहलकदमीका स्वागत कर रही थी। इसी वृक्षपर इस 'बया' जातिकी छोटी-सी चिड़ियाका घोंसला था। उसमें कई तरहके मकान जंगले-जैसे थे। अत: घर जैसे मंजिलोंका नक्शा बन गया था। वहीं पासमें एक बन्दर भी था, जो पानीमें भींग रहा था।
बया (चिड़िया) सूझ-बूझ और शिक्षाप्रद बातोंके कहने में अग्रणी थी, अतः कुछ देर बीतनेपर वह उस बन्दरको ठिठुरते देखकर बोली- 'भाई! तुम्हारे आदमी- जैसे हाथ पैर हैं तथा मन, मस्तिष्क भी वैसा ही होगा। मैं छोटी-सी चिड़िया होते हुए भी कितना बढ़िया घोंसला (घास फूसका घर) बनाकर रहती हूँ, तुम भी अपने सुरक्षाहेतु घर बना सकते हो और शानसे रह सकते हो। इन चार हाथोंका अपने रक्षार्थ उपयोग करो।
यह बात सुनते ही वानरको क्रोध आया और 'खो-खो' करते हुए उसने बयाका घोंसला तोड़ दिया। कहीं बच्चे गिरे, तो कहीं अण्डे गिर पड़े। चीं-चीं, चीं चीं होने लगी। बच्चे वर्षा और ठण्डमें बिखर गये।
तभी वहाँ से कोई आदमी जा रहा था, जो यह
घटना देखकर कहने लगा
सीख वाको दीजिये जाको सीख सुहाय ।
सीख न दीजै वानरा घर वैया का जाय ॥
नासमझको सीख देनेसे अपना नुकसान होनेकी सम्भावना रहती है, अतः सीख भी पात्रको देखकर ही देनी चाहिये।



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seekh vaako deejiye

'seekh vaako deejiye ,

(daॉ0 chakshuprabhaajee, ema0e0, pee-echa0dee0)

phaalgunaka maheena chal raha thaa. thandee thandee havaake saath dheemee-dheemee boonden bhee thand badha़aanemen mausamakee sahaayata kar rahee theen. maheen rimajhim phuhaarakee boonden tatha mand sameerake jhonke shaant vaataavaranako ashaant kar rahe the. vrikshonpar bhee pakshiyonkee chahala-pahal kam hotee ja rahee thee.
isee samay ek vrikshapar chhotee-see chida़iya apane ande-bachche lekar baithee vaataavaranakee is chahalakadameeka svaagat kar rahee thee. isee vrikshapar is 'bayaa' jaatikee chhotee-see chida़iyaaka ghonsala thaa. usamen kaee tarahake makaan jangale-jaise the. ata: ghar jaise manjilonka naksha ban gaya thaa. vaheen paasamen ek bandar bhee tha, jo paaneemen bheeng raha thaa.
baya (chida़iyaa) soojha-boojh aur shikshaaprad baatonke kahane men agranee thee, atah kuchh der beetanepar vah us bandarako thithurate dekhakar bolee- 'bhaaee! tumhaare aadamee- jaise haath pair hain tatha man, mastishk bhee vaisa hee hogaa. main chhotee-see chida़iya hote hue bhee kitana badha़iya ghonsala (ghaas phoosaka ghara) banaakar rahatee hoon, tum bhee apane surakshaahetu ghar bana sakate ho aur shaanase rah sakate ho. in chaar haathonka apane rakshaarth upayog karo.
yah baat sunate hee vaanarako krodh aaya aur 'kho-kho' karate hue usane bayaaka ghonsala toda़ diyaa. kaheen bachche gire, to kaheen ande gir pada़e. cheen-cheen, cheen cheen hone lagee. bachche varsha aur thandamen bikhar gaye.
tabhee vahaan se koee aadamee ja raha tha, jo yaha
ghatana dekhakar kahane lagaa
seekh vaako deejiye jaako seekh suhaay .
seekh n deejai vaanara ghar vaiya ka jaay ..
naasamajhako seekh denese apana nukasaan honekee sambhaavana rahatee hai, atah seekh bhee paatrako dekhakar hee denee chaahiye.

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