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सोचो, समझो, फिर करो  [बोध कथा]
आध्यात्मिक कहानी - Moral Story (Shikshaprad Kahani)

सोचो, समझो, फिर करो

संस्कृत-काव्यपरम्परामें भारवि नामके एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं। उनका 'किरातार्जुनीयम्' नामसे प्रसिद्ध महाकाव्य है। इसमें महाभारतकी कथाके आधारपर पाण्डवोंकि वनवासकी कथा वर्णित है, जिसके अन्तर्गत किरातरूपधारी भगवान् शंकरके साथ अर्जुनके युद्धका तथा भगवान् शंकरद्वारा पाशुपत अस्त्र प्रदान करनेका महत्त्वपूर्ण वर्णन है। इस महाकाव्यकी मुख्य विशेषता यह है कि कविने पद-पदपर लोकव्यवहारबोधक अनेक सूक्तियाँ काव्यमें सन्निविष्ट की हैं, जिनके आधारपर अनेक बोधकथाएँ प्रचलित हैं।
कवि भारवि काव्य-निर्माणमें इतने दत्त-चित्त रहते थे कि उनके यहाँका लौकिक व्यवहार (घर-गृहस्थीका, खान-पानका खर्चा भी बड़ी कठिनाईसे चलता था। एक बार ऐसी परिस्थिति बन गयी कि खाने-पीनेतकके लिये कुछ नहीं रहा, तो वे एक धनिक व्यापारीके पास सामान उधार लेने गये। सेठने कहा-'सामान तो मैं दे दूँगा, परंतु इसके लिये आपको कुछ गिरवी रखना होगा।' कविने अपने ग्रन्थ 'किरातार्जुनीयम्' का एक श्लोक गिरवी रख दिया। सेठने श्लोकको तस्वीरकी तरह मण्डित करके अपनी हवेली के मुख्य स्थानपर लगा दिया, जिससे हवेलीमें प्रवेश करते ही पहले उसपर दृष्टि पड़े। वह श्लोक इस प्रकार है -
सहसा विदधीत न क्रिया
मविवेकः परमापदां पदम् ।
वृणुते हि विमृश्यकारिण
गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः ॥
अर्थात् कोई भी काम सहसा प्रारम्भ मत करो। सोच-विचारकर किया हुआ काम ही हमेशा लाभदायक होता है। बिना विचारे किया हुआ काम आपत्तियोंको देनेवाला और विनाशकारक होता है।
कालान्तर में वह सेठ व्यापार करनेके लिये सुदूर प्रदेशमें चला गया। उसका व्यवसाय अच्छा चलने लगा और कई वर्ष व्यतीत हो गये। तब सेठने अपने नगर लौटनेकी सोची। वह उपार्जित द्रव्य लेकर बैलगाड़ियों और नौकरोंसहित वापस आया, उसे नगरके बाहर ही रात्रि हो गयी। उसने विचार किया कि रातमें सब सोये हुए हैं, अतः चुपचाप घरमें क्यों जाया जाय ? सभी नगरवासी सोचेंगे कि जाने कहाँसे लूट लाया है। अतः दिनमें ठाठके सहित प्रवेश करेंगे यही सोचकर वह एक सरायमें रुक गया।
सेठ वर्षों बाद नगरमें आया था। 'हवेलीका हाल चाल तो जानें, पता नहीं सेठानीने इतना समय कैसे गुजारा होगा' यह सोचकर वह गुप्तरूपसे अपनी हवेलीपर पहुँचा और दरवाजेके छेदसे देखा कि दीपक के मन्द प्रकाशमें सेठानीके साथ कोई दूसरा भी सो रहा है। सेठकी बुद्धि सहसा आवेशमें आ गयी और वह अपने सामानके रखवालोंके पाससे तलवार लेकर आया और दरवाजा खटखटाकर आवाज दी- 'दरवाजा खोलो। सेठानी आवाज पहचान गयी और पासमें सोये हुए अपने पुत्रको जगाकर कहने लगी, 'देख बेटा। तेरे पिताजी आ गये।"
वस्तुतः बात यह थी कि सेठ जब व्यापारके लिये दूर गया था, तब सेठानी गर्भवती थी और बालक होनेपर उसके पालन-पोषणमें लगी रहती थी। इस छोटे बालकके ही हृष्ट-पुष्ट होनेसे सेठको मतिभ्रम हो गया और आवेशमें आकर वह प्रहार करनेको था, उसने जोशमें कुछ सुना ही नहीं था। परंतु किवाड़ खोलते समय दीपककी रोशनीमें सामने दीवार पर लगे श्लोकपर दृष्टि गयी और उसका हाथ रुक गया। सेठको श्लोकका आशय मनमें सोचनेका एक अवसर मिला और उसके प्रभावसे दुर्घटना होते-होते टल गयी।
दूसरे दिन सेठ नगरमें होता हुआ अपने धन मालसहित सदल-बल हवेली पहुँचा और भारविको सादर बुलाया तथा श्लोकके प्रभावका बखान करते हुए उसके मूल्यके रूपमें प्रचुर सम्पत्ति देने लगा, परंतु कविने कहा—'काव्यकी पंक्ति ‘रेहन' थी, अतः द्रव्य लेकर उसे मुझे लौटा दो। मैं कविता बेचता नहीं हूँ।' धन्यवाद है ऐसे काव्यनिर्माताको, जो विपन्न होकर भी बिके नहीं और उनके काव्यसे आज भी चिन्ताग्रस्त लोगोंको प्रेरणा मिल रही है। [ श्रीसियाशरणजी शास्त्री ]



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socho, samajho, phir karo

socho, samajho, phir karo

sanskrita-kaavyaparamparaamen bhaaravi naamake ek prasiddh kavi hue hain. unaka 'kiraataarjuneeyam' naamase prasiddh mahaakaavy hai. isamen mahaabhaaratakee kathaake aadhaarapar paandavonki vanavaasakee katha varnit hai, jisake antargat kiraataroopadhaaree bhagavaan shankarake saath arjunake yuddhaka tatha bhagavaan shankaradvaara paashupat astr pradaan karaneka mahattvapoorn varnan hai. is mahaakaavyakee mukhy visheshata yah hai ki kavine pada-padapar lokavyavahaarabodhak anek sooktiyaan kaavyamen sannivisht kee hain, jinake aadhaarapar anek bodhakathaaen prachalit hain.
kavi bhaaravi kaavya-nirmaanamen itane datta-chitt rahate the ki unake yahaanka laukik vyavahaar (ghara-grihastheeka, khaana-paanaka kharcha bhee bada़ee kathinaaeese chalata thaa. ek baar aisee paristhiti ban gayee ki khaane-peenetakake liye kuchh naheen raha, to ve ek dhanik vyaapaareeke paas saamaan udhaar lene gaye. sethane kahaa-'saamaan to main de doonga, parantu isake liye aapako kuchh giravee rakhana hogaa.' kavine apane granth 'kiraataarjuneeyam' ka ek shlok giravee rakh diyaa. sethane shlokako tasveerakee tarah mandit karake apanee havelee ke mukhy sthaanapar laga diya, jisase haveleemen pravesh karate hee pahale usapar drishti pada़e. vah shlok is prakaar hai -
sahasa vidadheet n kriyaa
mavivekah paramaapadaan padam .
vrinute hi vimrishyakaarina
gunalubdhaah svayamev sampadah ..
arthaat koee bhee kaam sahasa praarambh mat karo. socha-vichaarakar kiya hua kaam hee hamesha laabhadaayak hota hai. bina vichaare kiya hua kaam aapattiyonko denevaala aur vinaashakaarak hota hai.
kaalaantar men vah seth vyaapaar karaneke liye sudoor pradeshamen chala gayaa. usaka vyavasaay achchha chalane laga aur kaee varsh vyateet ho gaye. tab sethane apane nagar lautanekee sochee. vah upaarjit dravy lekar bailagaada़iyon aur naukaronsahit vaapas aaya, use nagarake baahar hee raatri ho gayee. usane vichaar kiya ki raatamen sab soye hue hain, atah chupachaap gharamen kyon jaaya jaay ? sabhee nagaravaasee sochenge ki jaane kahaanse loot laaya hai. atah dinamen thaathake sahit pravesh karenge yahee sochakar vah ek saraayamen ruk gayaa.
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