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सर्वत्र गुणदृष्टि  [प्रेरक कथा]
Spiritual Story - Moral Story (Wisdom Story)

श्रीगदाधर भट्टजीसे श्रीमद्भागवतकी भावपूर्ण कथा सुननेके लिये भावुक भक्तोंका समुदाय एकत्र हुआ करता था। श्रीमद्भागवत एक तो वैसे ही भक्तोंका हृदय धन है, भावनाओंका अमृत सागर है, दूसरे भक्तश्रेष्ठ गदाधरजी - जैसे वक्ता थे। वक्ता भूल जाते थे कि वे कथा सुनाने बैठे हैं और श्रोता भूल जाते थे कि वे घर द्वार छोड़कर आये हैं। वक्ता गद्गद हो जाते थे। उनके नेत्रोंसे आँसुओंकी धारा चलने लगती थी । श्रोताओंमेंसे भी प्रायः सभीके नेत्र टपकने लगते थे। श्रोताओंमें एक महंतजी भी आते थे। उनके ही नेत्रोंसे अश्रु नहीं आते थे। उन्हें इससे लज्जा होती थी कि लोग कहेंगे, इसमें तनिक भी भक्ति-भाव नहीं है।

महंतजीने एक उपाय निकाल लिया। वे एक वस्त्रमें लाल मिर्चका चूर्ण बाँध लाते थे। कथामें जब ऐसा प्रसङ्ग आता कि सब श्रोता भाव-विह्वल हो उठते, सबके नेत्रोंसे अश्रु निकलने लगते, तब महंतजी भी नेत्र पोंछने के बहाने लाल मिर्चकी पोटली नेत्रोंपर रगड़ लेते।

इससे उनके नेत्रोंसे भी आँसू निकलने लगते। महंतजीके पास बैठे किसी श्रोताने उनकी चतुरता जान ली। कथा समाप्त होनेपर वह अकेलेमें भट्टजीकेपास गया और बोला-'महाराज! आपकी कथामें जो महंत आता है, वह बड़ा ढोंगी है। उसमें भगवद्भक्तिका तो नाम नहीं है, किंतु कथामें दूसरोंको दिखानेके लिये आँखोंमें लाल मिर्चकी पोटली लगाकर आँसू बहाता है, जिससे लोग समझें कि वह कथा सुनकर अश्रु बहा रहा है।'

भट्टजीने पूछा- 'आप सच कह रहे हैं?' श्रोता - 'मैंने स्वयं देखा है।'

भट्टजी तो उठ खड़े हुए। वे बोले-'वे महात्मा धन्य हैं! मैं अभी उनके दर्शन करने जाऊँगा ।'

भट्टजीके साथ उनके कुछ शिष्य-सेवक भी मठमें गये। मठाधीश महंतको भट्टजीने भूमिपर गिरकर दण्डवत् प्रणाम किया और बोले-'मैंने सुना है कि कथामें नेत्रोंमें स्वाभाविक आँसू न आनेके कारण आप उनमें लाल मिर्च लगाते हैं। आप जैसे भगवद्भक्तका दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया। मैंने पढ़ा है और सत्पुरुषोंके मुखसे सुना है कि भगवान्के गुण तथा लीलाको सुनकर भी जिन नेत्रोंमें जल न आवे, उन्हें दण्ड देना चाहिये; किंतु इस बातको क्रियात्मकरूप देनेवाले महात्माके दर्शन तो मुझे आज हुए हैं!'

- सु0 सिं0



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sarvatr gunadrishti

shreegadaadhar bhattajeese shreemadbhaagavatakee bhaavapoorn katha sunaneke liye bhaavuk bhaktonka samudaay ekatr hua karata thaa. shreemadbhaagavat ek to vaise hee bhaktonka hriday dhan hai, bhaavanaaonka amrit saagar hai, doosare bhaktashreshth gadaadharajee - jaise vakta the. vakta bhool jaate the ki ve katha sunaane baithe hain aur shrota bhool jaate the ki ve ghar dvaar chhoda़kar aaye hain. vakta gadgad ho jaate the. unake netronse aansuonkee dhaara chalane lagatee thee . shrotaaonmense bhee praayah sabheeke netr tapakane lagate the. shrotaaonmen ek mahantajee bhee aate the. unake hee netronse ashru naheen aate the. unhen isase lajja hotee thee ki log kahenge, isamen tanik bhee bhakti-bhaav naheen hai.

mahantajeene ek upaay nikaal liyaa. ve ek vastramen laal mirchaka choorn baandh laate the. kathaamen jab aisa prasang aata ki sab shrota bhaava-vihval ho uthate, sabake netronse ashru nikalane lagate, tab mahantajee bhee netr ponchhane ke bahaane laal mirchakee potalee netronpar ragada़ lete.

isase unake netronse bhee aansoo nikalane lagate. mahantajeeke paas baithe kisee shrotaane unakee chaturata jaan lee. katha samaapt honepar vah akelemen bhattajeekepaas gaya aur bolaa-'mahaaraaja! aapakee kathaamen jo mahant aata hai, vah bada़a dhongee hai. usamen bhagavadbhaktika to naam naheen hai, kintu kathaamen doosaronko dikhaaneke liye aankhonmen laal mirchakee potalee lagaakar aansoo bahaata hai, jisase log samajhen ki vah katha sunakar ashru baha raha hai.'

bhattajeene poochhaa- 'aap sach kah rahe hain?' shrota - 'mainne svayan dekha hai.'

bhattajee to uth khada़e hue. ve bole-'ve mahaatma dhany hain! main abhee unake darshan karane jaaoonga .'

bhattajeeke saath unake kuchh shishya-sevak bhee mathamen gaye. mathaadheesh mahantako bhattajeene bhoomipar girakar dandavat pranaam kiya aur bole-'mainne suna hai ki kathaamen netronmen svaabhaavik aansoo n aaneke kaaran aap unamen laal mirch lagaate hain. aap jaise bhagavadbhaktaka darshan paakar main dhany ho gayaa. mainne padha़a hai aur satpurushonke mukhase suna hai ki bhagavaanke gun tatha leelaako sunakar bhee jin netronmen jal n aave, unhen dand dena chaahiye; kintu is baatako kriyaatmakaroop denevaale mahaatmaake darshan to mujhe aaj hue hain!'

- su0 sin0

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A Beautiful Bhagwad Gita Reader
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