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पाँच स्कन्धोंका संघात  [आध्यात्मिक कथा]
Shikshaprad Kahani - Moral Story (आध्यात्मिक कहानी)

एक बार एक ग्रीक राजा एक बौद्ध भिक्षुके पास गया। उसने उस भिक्षुसे, जिसका नाम नागसेन था, पूछा- 'महाराज ! आप कहते हैं कि हमारे व्यक्तित्वमें कोई वस्तु ऐसी नहीं है, जो स्थिर हो। फिर यह बताइये कि वह क्या है, जो संघके सदस्योंको आज्ञा देता है, पवित्र जीवन व्यतीत करता है, उपासना करता है, निर्वाण प्राप्त करता है, पाप-पुण्यका फल भोगता है ? आपको संघके सदस्य नागसेन कहते हैं? यह नागसेन कौन है ? क्या सिरके बाल नागसेन हैं ?'

भिक्षुने कहा- ऐसा नहीं है। राजाने फिर पूछा- क्या ये दाँत, मांस, मस्तिष्क आदि नागसेन हैं ?

उसने कहा- नहीं।

राजाने फिर पूछा- फिर क्या आकार, वेदनाएँ अथवा संस्कार नागसेन हैं ? उसने उत्तर दिया- नहीं।

राजाने फिर पूछा- क्या ये सब वस्तुएँ मिलकर

नागसेन हैं? या इनके बाहर कोई ऐसी वस्तु है, जो नागसेन है ?
उसने फिर कहा- नहीं। राजाने अब कहा—तो फिर नागसेन कुछ नहीं है।

जिसे हम अपने सामने देखते हैं और नागसेन कहते हैं, वह नागसेन कौन है ?

अब भिक्षु नागसेनने राजासे कहा- राजन् ! क्या आप पैदल आये हैं ?

राजाने उत्तर दिया- नहीं, रथपर । तब उसने पूछा-फिर तो आप जरूर जानते होंगे

कि रथ क्या है। क्या यह पताका रथ है ? राजाने कहा- नहीं। उसने पूछा- क्या ये पहिये या धुरी रथ है ?

राजाने कहा- नहीं।

उसने फिर पूछा- फिर क्या ये रस्सियाँ या चाबुक रथ है ?

राजाने कहा- नहीं।

उसने पूछा- क्या इन सबके बाहर कोई चीज है, जो रथ है ?

राजाने कहा- नहीं।

उसने कहा- तो फिर रथ कुछ नहीं है। जिसे हमअपने सामने देखते हैं और रथ कहते हैं, वह क्या है ? राजा बोला- ये सब साथ होनेपर ही उसे रथ कहते हैं, महात्मन् !इसपर भिक्षु नागसेनने कहा- राजन् ! ठीक है । ये सब वस्तुएँ मिलकर ही रथ हैं। इसी प्रकार पाँच स्कन्धोंके संघातके अतिरिक्त और कुछ नहीं है ।



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paanch skandhonka sanghaata

ek baar ek greek raaja ek bauddh bhikshuke paas gayaa. usane us bhikshuse, jisaka naam naagasen tha, poochhaa- 'mahaaraaj ! aap kahate hain ki hamaare vyaktitvamen koee vastu aisee naheen hai, jo sthir ho. phir yah bataaiye ki vah kya hai, jo sanghake sadasyonko aajna deta hai, pavitr jeevan vyateet karata hai, upaasana karata hai, nirvaan praapt karata hai, paapa-punyaka phal bhogata hai ? aapako sanghake sadasy naagasen kahate hain? yah naagasen kaun hai ? kya sirake baal naagasen hain ?'

bhikshune kahaa- aisa naheen hai. raajaane phir poochhaa- kya ye daant, maans, mastishk aadi naagasen hain ?

usane kahaa- naheen.

raajaane phir poochhaa- phir kya aakaar, vedanaaen athava sanskaar naagasen hain ? usane uttar diyaa- naheen.

raajaane phir poochhaa- kya ye sab vastuen milakara

naagasen hain? ya inake baahar koee aisee vastu hai, jo naagasen hai ?
usane phir kahaa- naheen. raajaane ab kahaa—to phir naagasen kuchh naheen hai.

jise ham apane saamane dekhate hain aur naagasen kahate hain, vah naagasen kaun hai ?

ab bhikshu naagasenane raajaase kahaa- raajan ! kya aap paidal aaye hain ?

raajaane uttar diyaa- naheen, rathapar . tab usane poochhaa-phir to aap jaroor jaanate honge

ki rath kya hai. kya yah pataaka rath hai ? raajaane kahaa- naheen. usane poochhaa- kya ye pahiye ya dhuree rath hai ?

raajaane kahaa- naheen.

usane phir poochhaa- phir kya ye rassiyaan ya chaabuk rath hai ?

raajaane kahaa- naheen.

usane poochhaa- kya in sabake baahar koee cheej hai, jo rath hai ?

raajaane kahaa- naheen.

usane kahaa- to phir rath kuchh naheen hai. jise hamaapane saamane dekhate hain aur rath kahate hain, vah kya hai ? raaja bolaa- ye sab saath honepar hee use rath kahate hain, mahaatman !isapar bhikshu naagasenane kahaa- raajan ! theek hai . ye sab vastuen milakar hee rath hain. isee prakaar paanch skandhonke sanghaatake atirikt aur kuchh naheen hai .

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