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अस्पृश्य  [Hindi Story]
हिन्दी कहानी - प्रेरक कथा (Shikshaprad Kahani)

[3]

अस्पृश्य

बुद्ध शिष्यसहित सभामें विराजमान थे, उसी समय बाहर खड़ा कोई व्यक्ति बोरसे बोला "क मुझे सभामें बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गयी बुद्ध नेत्र बन्द करके ध्यानमग्न रहे। उस व्यक्ति फिर चिल्लाकर यही प्रस्त किया। एक शिष्याने पू 'भगवन्! बाहर खड़े उस शिष्यको अन्दर जानेकी अनुमति दीजिये।' बुद्ध नेत्र खोलकर बोले—'नहीं ! वह अस्पृश्य है।' 'अस्पृश्य!' शिष्यगण आश्चर्यमें डूब गये। बुद्ध उनके मनका भाव समझते हुए बोले— 'ही! वह अस्पृश्य है।' शिष्योंने पूछा- 'वह अस्पृश्य क्यों? कैसे? भगवन्! आपके धर्ममें तो जात-पाँतका भेद नहीं है।' बुद्ध बोले- 'आज यह क्रोधमें आया है, क्रोधसे जीवनकी एकता भंग होती है। क्रोधी मानसिक हिंसा करता है। किसी भी कारणसे क्रोध करनेवाला अस्पृश्य है। उसे कुछ समयतक पृथक्, एकान्तमें खड़ा रहना चाहिये। पश्चात्तापकी अग्निमें तपकर यह स्मरण करता रहे कि अहिंसा महान् कर्तव्य है, परम धर्म है।' शिष्य समझ गये कि अस्पृश्यता क्या है ? अस्पृश्य कौन है ?



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asprishya

[3]

asprishya

buddh shishyasahit sabhaamen viraajamaan the, usee samay baahar khada़a koee vyakti borase bola "k mujhe sabhaamen baithane kee anumati kyon naheen dee gayee buddh netr band karake dhyaanamagn rahe. us vyakti phir chillaakar yahee prast kiyaa. ek shishyaane poo 'bhagavan! baahar khada़e us shishyako andar jaanekee anumati deejiye.' buddh netr kholakar bole—'naheen ! vah asprishy hai.' 'asprishya!' shishyagan aashcharyamen doob gaye. buddh unake manaka bhaav samajhate hue bole— 'hee! vah asprishy hai.' shishyonne poochhaa- 'vah asprishy kyon? kaise? bhagavan! aapake dharmamen to jaata-paantaka bhed naheen hai.' buddh bole- 'aaj yah krodhamen aaya hai, krodhase jeevanakee ekata bhang hotee hai. krodhee maanasik hinsa karata hai. kisee bhee kaaranase krodh karanevaala asprishy hai. use kuchh samayatak prithak, ekaantamen khada़a rahana chaahiye. pashchaattaapakee agnimen tapakar yah smaran karata rahe ki ahinsa mahaan kartavy hai, param dharm hai.' shishy samajh gaye ki asprishyata kya hai ? asprishy kaun hai ?

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