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आजसे मैं ही तुम्हारा पुत्र और तुम मेरी माँ  [छोटी सी कहानी]
हिन्दी कहानी - Hindi Story (बोध कथा)

कहते हैं कि बादशाह अकबरके खजांचीकी स्त्रीका रूप बड़ा ही अपूर्व था। एक बार कहीं उसे देखकर बादशाह महामोहमें पड़ गया और लाखों रुपये व्यय करके भी उसकी प्राप्तिके लिये प्रयत्न करने लगा। पर 'विचित्रं विधिचेष्टितम्'। भर्तृहरिने बड़ा ही सुन्दर कहा था- मैं जिसकी चिन्तामें सतत व्याकुल हूँ।वह मुझे बिलकुल नहीं चाहती। पर यह बात नहीं कि वह सर्वथा संसारसे उपरत है अथवा वह किसीको चाहती ही न हो। नहीं-नहीं; वह तो बुरी तरहसे एक ऐसे आदमीपर आसक्त है, जो उसे न चाहकर किसी दूसरी नायिकाको चाहता है और वह नायिका भी उसे न चाहकर किसी कारणविशेषसे मुझपर प्रसन्न है । 1ओह! मुझको, इस विडम्बनाके मूल कामदेवको तथा तत्तत् स्त्री-पुरुषोंको बार-बार धिक्कार है।

यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता

साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः

। अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या

धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥

(नीतिशतक 2)

हाँ तो, भर्तृहरिके शब्दोंमें कामदेवने खजांचीकी स्त्रीको भी यही बेढब रास्ता दिखलाया। वह बादशाहसे तो घृणासे नाक-भौं सिकोड़ने लगी, पर अब्दुर्रहीम खानखानापर आसक्त हुई । खानखानाजी श्रीकृष्णभक्त थे। वह इनसे सीधे प्रस्ताव तो कैसे रखती, पर एक दिन मौका पाकर उनसे निवेदन किया- 'खानखानाजी! मैं आप ही जैसा सुन्दर एक पुत्ररत्न चाहती हूँ।' खानखानाजीको फिर वह एकान्त स्थानमें ले गयी। भक्तवर रहीमने भगवान् श्रीकृष्णका स्मरण किया और एकान्त पाते ही उससे बोले-'देवि! कौन जाने हमारे जैसा पुत्र तुम्हें हो न हो, इसलिये लो आजसे मैं ही तुम्हारा पुत्र और तुम मेरी सच्ची माँ' और यों कहकर उसके स्तनोंको पीने लग गये। भगवान्की कृपासे उसमें भी वात्सल्य आ गया उसके स्तनोंसे दूध झरने लगा। तबसे रहीमने उसे सदा ही अपनी माता माना। कहते हैं जहाँ कहीं भी अपने ग्रन्थोंमें खानखानाजीने अपनी माताका स्मरण किया है, वहाँ उसी महिलाका स्मरण तथा उल्लेख दिया है, अपनी असल माँका नहीं। तबसे उस स्त्रीका भी चित्त सर्वथा पवित्र हो गया और इधर बादशाह भी इसे जानकर सन्मार्गस्थ हो गया।

-जा0 श0



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aajase main hee tumhaara putr aur tum meree maan

kahate hain ki baadashaah akabarake khajaancheekee streeka roop bada़a hee apoorv thaa. ek baar kaheen use dekhakar baadashaah mahaamohamen pada़ gaya aur laakhon rupaye vyay karake bhee usakee praaptike liye prayatn karane lagaa. par 'vichitran vidhicheshtitam'. bhartriharine bada़a hee sundar kaha thaa- main jisakee chintaamen satat vyaakul hoon.vah mujhe bilakul naheen chaahatee. par yah baat naheen ki vah sarvatha sansaarase uparat hai athava vah kiseeko chaahatee hee n ho. naheen-naheen; vah to buree tarahase ek aise aadameepar aasakt hai, jo use n chaahakar kisee doosaree naayikaako chaahata hai aur vah naayika bhee use n chaahakar kisee kaaranavisheshase mujhapar prasann hai . 1oha! mujhako, is vidambanaake mool kaamadevako tatha tattat stree-purushonko baara-baar dhikkaar hai.

yaan chintayaami satatan mayi sa viraktaa

saapyanyamichchhati janan s jano'nyasaktah

. asmatkrite ch paritushyati kaachidanyaa

dhik taan ch tan ch madanan ch imaan ch maan ch ..

(neetishatak 2)

haan to, bhartriharike shabdonmen kaamadevane khajaancheekee streeko bhee yahee bedhab raasta dikhalaayaa. vah baadashaahase to ghrinaase naaka-bhaun sikoda़ne lagee, par abdurraheem khaanakhaanaapar aasakt huee . khaanakhaanaajee shreekrishnabhakt the. vah inase seedhe prastaav to kaise rakhatee, par ek din mauka paakar unase nivedan kiyaa- 'khaanakhaanaajee! main aap hee jaisa sundar ek putraratn chaahatee hoon.' khaanakhaanaajeeko phir vah ekaant sthaanamen le gayee. bhaktavar raheemane bhagavaan shreekrishnaka smaran kiya aur ekaant paate hee usase bole-'devi! kaun jaane hamaare jaisa putr tumhen ho n ho, isaliye lo aajase main hee tumhaara putr aur tum meree sachchee maan' aur yon kahakar usake stanonko peene lag gaye. bhagavaankee kripaase usamen bhee vaatsaly a gaya usake stanonse doodh jharane lagaa. tabase raheemane use sada hee apanee maata maanaa. kahate hain jahaan kaheen bhee apane granthonmen khaanakhaanaajeene apanee maataaka smaran kiya hai, vahaan usee mahilaaka smaran tatha ullekh diya hai, apanee asal maanka naheen. tabase us streeka bhee chitt sarvatha pavitr ho gaya aur idhar baadashaah bhee ise jaanakar sanmaargasth ho gayaa.

-jaa0 sha0

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