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बूढ़ी धायका आशीर्वाद  [Hindi Story]
Wisdom Story - Shikshaprad Kahani (Story To Read)

बूढ़ी धायका आशीर्वाद

सन्त-महापुरुषका जीवन-चरित युवा वर्गके चरित्र निर्माणमें काफी हदतक सहायक सिद्ध हो सकता है। और उनके विकास-पथको आलोकित कर सकता है। उनका जीवनी साहित्य हमें मंगलमय पथपर चलनेके लिये प्रेरणा एवं प्रोत्साहन देता है। सन्त-महापुरुषोंका जीवन-चरित भारतकी महान् संस्कृति, उत्कृष्ट कला और शिष्ट साहित्यिक परम्पराका जीवन्त प्रमाण है।
इन सन्त-महापुरुषोंके जीवन-चरितके प्रेरक अभिलेखोंमें बीसवीं सदीके पूर्वार्धमें जनमे, बंगभूमिके एक सुविख्यात शिक्षाविद् और न्यायविद् सर गुरुदास बनर्जीका नाम स्वर्णाक्षरोंमें अंकित है।
उनका जन्म सन् 1844 ई0 में हुआ था, उनका पवित्र चरित्र अनुकरणीय है। उनकी अगाध योग्यता, विद्वत्ता और प्रतिभाको देखकर ब्रिटिश सरकारने उन्हें 'सर' की उपाधिसे सम्मानित किया। पुनः उन्हें कलकत्ता उच्च न्यायालयका न्यायाधीश तथा कलकत्ता विश्वविद्यालयका प्रथम भारतीय उपकुलपति बनाया गया। इतने बड़े पदपर होनेके बावजूद उनमें अहंकारकी भावना नहीं थी। वे सबसे विनम्रतापूर्वक पेश आते। उनका रहन-सहन सादगीपूर्ण था।
कहा जाता है कि जब वे छोटे थे, तब एक विधवा धाय उनके घरमें उनकी देखभाल किया करती थी। जब गुरुदास बड़े हो गये, तब वह विधवा धाय अपने गाँवमें जाकर रहने लगी।
एक बार वह धाय गंगास्नान करनेके लिये आयी। तबके नन्हे अब उच्च न्यायालयके न्यायाधीश बन चुके थे और धाय भी बहुत बूढ़ी हो चुकी थी। गंगास्नान के बाद घायने सोचा कि अपने गुरुदाससे मिलती चलूँ। उसने कई लोगोंसे गुरुदासजीके बारेमें पूछा। पूछते-पूछते वह उच्च न्यायालयमें आ गयी । वहाँ | उसने गुरुदासजीके कमरेमें जानेकी कोशिश की, परंतु चपरासीने मैले-कुचैले कपड़े देखकर अन्दर न जाने दिया। इससे बेचारी बूढ़ी धाय बड़ी उदास हो गयी।
दूर बैठे हुए सर गुरुदासने धायको देखा। इतना समय व्यतीत हो जानेके बाद भी वे उसे भूले नहीं थे। बूढ़ी धायको देखते ही वे बाहर आये और उस धायको दण्डवत् प्रणाम किया। चपरासी और दूसरे अधिकारी यह देखकर आश्चर्यचकित होकर सोचते रह गये कि इतने बड़े न्यायाधीशद्वारा एक मैले-कुचैले कपड़ोंवाली बुढ़ियाका इतना अधिक सम्मान क्यों किया जा रहा है !
धायका हृदय गद्गद हो गया। सर गुरुदासव इतना अच्छा व्यवहार देखकर उसकी आँखोंमें खुशी आँसू आ गये। उसके मुँहसे अनायास ही आशीर्वादोंक झड़ी फूट पड़ी। गाँवकी सीधी-सादी बुढ़ियाने गद्ग होकर कहा- 'बेटा गुरुदास! जीता रह।'
सर गुरुदासने उठकर वहाँ उपस्थित लोगोंक बताया कि ये मेरी धाय माँ हैं। इन्होंने बचपनमें मुई दूध पिलाया है। ये माँ मेरी परमपूज्य हैं। यह कहक सर गुरुदासजीने बूढ़ी धायको अपने साथ लिया और यह कहकर घरकी ओर चल दिये कि 'यह मेरी पूज्या मेहमान हैं, इनका सत्कार करना मेरा परम कर्तव्य है।'
घरके पुराने नौकरोंतकका इतना सम्मान करनेवाले सर गुरुदासने यह दिखा दिया कि बड़ोंका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है, चाहे हम कितने ही बड़े क्यों न हो जायँ ।
इसीलिये तो कहा जाता है- 'नवै सो भारी



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booढ़ee dhaayaka aasheervaada

booढ़ee dhaayaka aasheervaada

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unaka janm san 1844 ee0 men hua tha, unaka pavitr charitr anukaraneey hai. unakee agaadh yogyata, vidvatta aur pratibhaako dekhakar british sarakaarane unhen 'sara' kee upaadhise sammaanit kiyaa. punah unhen kalakatta uchch nyaayaalayaka nyaayaadheesh tatha kalakatta vishvavidyaalayaka pratham bhaarateey upakulapati banaaya gayaa. itane bada़e padapar honeke baavajood unamen ahankaarakee bhaavana naheen thee. ve sabase vinamrataapoorvak pesh aate. unaka rahana-sahan saadageepoorn thaa.
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gharake puraane naukarontakaka itana sammaan karanevaale sar gurudaasane yah dikha diya ki bada़onka sammaan karana hamaara kartavy hai, chaahe ham kitane hee bada़e kyon n ho jaayan .
iseeliye to kaha jaata hai- 'navai so bhaaree

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