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सच्ची दृष्टि  [आध्यात्मिक कथा]
Hindi Story - Spiritual Story (Hindi Story)

प्राचीन कालमें सिंहलद्वीपके अनुराधपुर नगरसे बाहर एक टीला था, उसे चैत्यपर्वत कहा जाता था। उसपर महातिष्य नामके एक बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। एक दिन वे भिक्षा माँगने नगरकी ओर जा रहे थे। मार्गमें एक युवती स्त्री मिली। वह अपने पतिसे झगड़ा करके अपने पिताके घर भागी जा रही थी। उस स्त्रीका आचरण संदिग्ध था । भिक्षुको देखकर उन्हें अपनी ओर आकर्षित करनेके लिये वह हँसने लगी।

भिक्षु महातिष्य बराबर चिन्तन करते रहते थे कि मनुष्य-शरीर हड्डी-मांसका पिंजड़ा है। उस स्त्रीके हँसनेपर भिक्षुकी दृष्टि उसके दाँतोंपर गयी। स्त्रीके सौन्दर्यकी ओरतो उनकी चित्तवृत्ति गयी नहीं, केवल यह भाव उनके मनमें आया कि यह एक हड्डियोंका पिंजड़ा जा रहा है। स्त्री आगे चली गयी। थोड़ी दूर जानेपर नगरकी ओरसे आता एक पुरुष मिला। वह उस स्त्रीका पति था। अपनी पत्नीको वह ढूँढ़ने निकला था। उसने भिक्षुसे पूछा - 'महाराज ! इस मार्गसे गहने पहिने जाती किसी सुन्दरी युवती स्त्रीको आपने देखा है ? '

भिक्षु बोले—' इधरसे कोई पुरुष गया या स्त्री, इस बातपर तो मेरा ध्यान गया नहीं; किंतु इतना मुझे पता है कि इस मार्गसे अभी एक अस्थिपञ्जर गया है।'

- सु0 सिं0



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sachchee drishti

praacheen kaalamen sinhaladveepake anuraadhapur nagarase baahar ek teela tha, use chaityaparvat kaha jaata thaa. usapar mahaatishy naamake ek bauddh bhikshu raha karate the. ek din ve bhiksha maangane nagarakee or ja rahe the. maargamen ek yuvatee stree milee. vah apane patise jhagada़a karake apane pitaake ghar bhaagee ja rahee thee. us streeka aacharan sandigdh tha . bhikshuko dekhakar unhen apanee or aakarshit karaneke liye vah hansane lagee.

bhikshu mahaatishy baraabar chintan karate rahate the ki manushya-shareer haddee-maansaka pinjada़a hai. us streeke hansanepar bhikshukee drishti usake daantonpar gayee. streeke saundaryakee orato unakee chittavritti gayee naheen, keval yah bhaav unake manamen aaya ki yah ek haddiyonka pinjada़a ja raha hai. stree aage chalee gayee. thoda़ee door jaanepar nagarakee orase aata ek purush milaa. vah us streeka pati thaa. apanee patneeko vah dhoondha़ne nikala thaa. usane bhikshuse poochha - 'mahaaraaj ! is maargase gahane pahine jaatee kisee sundaree yuvatee streeko aapane dekha hai ? '

bhikshu bole—' idharase koee purush gaya ya stree, is baatapar to mera dhyaan gaya naheen; kintu itana mujhe pata hai ki is maargase abhee ek asthipanjar gaya hai.'

- su0 sin0

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