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बिगानी छाछपर मूँछें  [बोध कथा]
हिन्दी कथा - Story To Read (Spiritual Story)

बिगानी छाछपर मूँछें

एक समयकी बात है। एक किसान किसी दूरके गाँवमें भैंस खरीदनेके लिये गया। उस समय गाँवोंमें न सड़कें थीं और न ही मवेशी लादनेके लिये टेम्पू आदि ही होते थे। इसलिये जब वह किसान भैंस खरीदकर चला, तो रास्तेमें उसे शाम हो गयी। अँधेरा बढ़ता हुआ देखकर वह रास्तेके एक गाँवमें अपने एक रिश्तेदारके घर चला गया। वे लोग भैंसको देखकर बहुत प्रसन्न हुए।
उस रिश्तेदारकी घरवालीने रातमें भैंसको चारा खिलाया और फिर उसका दूध दुहा। पूरे कुटुम्बने दूध पिया और शेष दूधका दही जमा दिया। सुबह उसने यही दही बिलोकर माखन निकाला और छाछ आस-पड़ोसके लोगोंमें बाँट दी। गलीका एक बूढ़ा भी छाछ ले गया। जब वह छाछ पीने लगा, तो उसकी मूँछें छाछमें भींग गयीं। इसकी उसे बहुत कोफ्त हुई।
अब हुआ यह कि उस भैंसवाले किसानके
रिश्तेदारोंने उसे अगले दिन भी न जाने दिया, और फिरउससे अगले दिन भी वह वहीं रहा।
उस बूढ़ेको अगले दिन भी छाछ मिल गयी और उससे अगले दिन भी उसने सोचा कि 'पीनेके लिये छाछ तो रोज ही मिलेगी। मगर मूँछें मूँछे हर रोज ही छाछमें गिरती हैं ।'
अगले दिन उसने मूँछें मुँड़वा डालीं और सोचनेलगा, 'अब छाछको बिना किसी विघ्नके पिया करूंगा।'
मगर भगवान्‌की इच्छा। अगले दिन ही वह भैंसवाला किसान अपनी भैंस लेकर अपने गाँवको चला गया। उधर जब वह बूढा छाछ लेनेके लिये गया तो उसे भैंसवालेके चले जानेका समाचार मिला। वह अत्यन्त दुखी हुआ। वह खिन्न होकर सोचने लगा-'सच ही कहते हैं बिगानी छाछपर मूँछें नहीं मुँड़वानी चाहिये।'

[ श्रीजसवंतसिंहजी विरदी ]



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bigaanee chhaachhapar moonchhen

bigaanee chhaachhapar moonchhen

ek samayakee baat hai. ek kisaan kisee doorake gaanvamen bhains khareedaneke liye gayaa. us samay gaanvonmen n sada़ken theen aur n hee maveshee laadaneke liye tempoo aadi hee hote the. isaliye jab vah kisaan bhains khareedakar chala, to raastemen use shaam ho gayee. andhera badha़ta hua dekhakar vah raasteke ek gaanvamen apane ek rishtedaarake ghar chala gayaa. ve log bhainsako dekhakar bahut prasann hue.
us rishtedaarakee gharavaaleene raatamen bhainsako chaara khilaaya aur phir usaka doodh duhaa. poore kutumbane doodh piya aur shesh doodhaka dahee jama diyaa. subah usane yahee dahee bilokar maakhan nikaala aur chhaachh aasa-pada़osake logonmen baant dee. galeeka ek boodha़a bhee chhaachh le gayaa. jab vah chhaachh peene laga, to usakee moonchhen chhaachhamen bheeng gayeen. isakee use bahut kopht huee.
ab hua yah ki us bhainsavaale kisaanake
rishtedaaronne use agale din bhee n jaane diya, aur phirausase agale din bhee vah vaheen rahaa.
us boodha़eko agale din bhee chhaachh mil gayee aur usase agale din bhee usane socha ki 'peeneke liye chhaachh to roj hee milegee. magar moonchhen moonchhe har roj hee chhaachhamen giratee hain .'
agale din usane moonchhen munda़va daaleen aur sochanelaga, 'ab chhaachhako bina kisee vighnake piya karoongaa.'
magar bhagavaan‌kee ichchhaa. agale din hee vah bhainsavaala kisaan apanee bhains lekar apane gaanvako chala gayaa. udhar jab vah boodha chhaachh leneke liye gaya to use bhainsavaaleke chale jaaneka samaachaar milaa. vah atyant dukhee huaa. vah khinn hokar sochane lagaa-'sach hee kahate hain bigaanee chhaachhapar moonchhen naheen munda़vaanee chaahiye.'

[ shreejasavantasinhajee viradee ]

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