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दुःखदायी परिहासका कटु परिणाम  [आध्यात्मिक कहानी]
हिन्दी कथा - Story To Read (Hindi Story)

पूर्वकालमें एक सहस्रपाद नामके ऋषिकुमार थे। उनमें सभी गुण थे केवल एक दुर्गुण था कि वे अपने मित्रों और साथियोंको हँसीमें चौंका दिया करते या उरा दिया करते थे। उनके एक मित्र थे ऋषिकुमार खगम वे सत्यवादी थे और परम तपस्वी थे, लेकिन अत्यन्त भीरु थे। सर्पसे उन्हें बहुत डर लगता था।

एक दिन ऋषिकुमार सहस्रपादने खेल खेलमें घासका एक साँप बनाया और उसे लेकर दबे पैर अपने मित्र खगमजीके पीछे जा खड़ा हुआ। उस समय ऋषिकुमार खगम अग्निहोत्र कर रहे थे। सहस्रपादने यह घासका सर्प उनके ऊपर फेंक दिया। इससे भयके मारे खगम मूर्च्छित हो गये।

मूर्छा भन्न होनेपर खगमने उस घासके सर्पको पहिचाना। क्रोधसे उनके नेत्र लाल हो गये। उन्होंने सहस्रपादको शाप दिया तूने मुझे विपरहित तृणके सर्पसे डराया है, अतः तू विषहीन सर्पयोनि प्राप्त करेगा।'

इस भयंकर शापको सुनकर सहस्रपाद घबरा उठा। वह पृथ्वीपर गिर पड़ा और हाथ जोड़कर प्रार्थनाकरने – गिड़गिड़ाने लगा। इससे खगमको दया आ गयी। उन्होंने बताया ‘भृगुवंशमें प्रमतिके पुत्र रुरु होंगे; वे जब तुम्हें मिलेंगे, तब तुम मेरे शापसे छूट जाओगे। शापको सर्वथा मिथ्या नहीं किया जा सकता। मेरे मुखसे निकले शब्दोंको मैं भी असत्य नहीं कर सकता।'

सहस्रपादको डुण्डुभ जातिका सर्प होना पड़ा। प्रमतिके पुत्र रुरुकी पत्नी सर्पके काटनेसे जब मर गयी, तब सर्प-जातिपर ही रुष्ट होकर वे मोटा डंडा लेकर घूमने लगे और जो भी सर्प मिलता, उसीको मार देते। रुरुको मार्गमें डुण्डुभ सर्प बने सहस्रपाद भी मिले। उन्हें भी मारनेको रुरुने डंडा उठाया। सहस्रपादने उन्हें रोका और बताया कि 'विषहीन निरपराध डुण्डुभ जातिके सर्पोंको मारना तो पाप ही है। प्राणी कालकी प्रेरणा से ही मरता है। सर्प, विद्युत् या रोग आदि तो मृत्युके निमित्तमात्र बनते हैं। प्राणियोंको अभय देना -अहिंसा ही परम धर्म है।' इस प्रकार रुरुको धर्मोपदेश करके वे ऋषिकुमार सर्पयोनिसे छूट गये -

सु0 सिंह

(महाभारत, आदि0 11)



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duhkhadaayee parihaasaka katu parinaama

poorvakaalamen ek sahasrapaad naamake rishikumaar the. unamen sabhee gun the keval ek durgun tha ki ve apane mitron aur saathiyonko hanseemen chaunka diya karate ya ura diya karate the. unake ek mitr the rishikumaar khagam ve satyavaadee the aur param tapasvee the, lekin atyant bheeru the. sarpase unhen bahut dar lagata thaa.

ek din rishikumaar sahasrapaadane khel khelamen ghaasaka ek saanp banaaya aur use lekar dabe pair apane mitr khagamajeeke peechhe ja khada़a huaa. us samay rishikumaar khagam agnihotr kar rahe the. sahasrapaadane yah ghaasaka sarp unake oopar phenk diyaa. isase bhayake maare khagam moorchchhit ho gaye.

moorchha bhann honepar khagamane us ghaasake sarpako pahichaanaa. krodhase unake netr laal ho gaye. unhonne sahasrapaadako shaap diya toone mujhe viparahit trinake sarpase daraaya hai, atah too vishaheen sarpayoni praapt karegaa.'

is bhayankar shaapako sunakar sahasrapaad ghabara uthaa. vah prithveepar gir pada़a aur haath joda़kar praarthanaakarane – gida़gida़aane lagaa. isase khagamako daya a gayee. unhonne bataaya ‘bhriguvanshamen pramatike putr ruru honge; ve jab tumhen milenge, tab tum mere shaapase chhoot jaaoge. shaapako sarvatha mithya naheen kiya ja sakataa. mere mukhase nikale shabdonko main bhee asaty naheen kar sakataa.'

sahasrapaadako dundubh jaatika sarp hona pada़aa. pramatike putr rurukee patnee sarpake kaatanese jab mar gayee, tab sarpa-jaatipar hee rusht hokar ve mota danda lekar ghoomane lage aur jo bhee sarp milata, useeko maar dete. ruruko maargamen dundubh sarp bane sahasrapaad bhee mile. unhen bhee maaraneko rurune danda uthaayaa. sahasrapaadane unhen roka aur bataaya ki 'vishaheen niraparaadh dundubh jaatike sarponko maarana to paap hee hai. praanee kaalakee prerana se hee marata hai. sarp, vidyut ya rog aadi to mrityuke nimittamaatr banate hain. praaniyonko abhay dena -ahinsa hee param dharm hai.' is prakaar ruruko dharmopadesh karake ve rishikumaar sarpayonise chhoot gaye -

su0 sinha

(mahaabhaarat, aadi0 11)

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