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संसारके सम्बन्ध असत्य और अनित्य  [हिन्दी कहानी]
प्रेरक कथा - शिक्षदायक कहानी (हिन्दी कथा)

संसारके सम्बन्ध असत्य और अनित्य

शूरसेन- प्रदेशमें किसी समय चित्रकेतु नामक अत्यन्त प्रतापी राजा थे। यद्यपि उनके रानियाँ तो अनेक थी, किंतु सन्तान कोई नहीं थी। एक दिन महर्षि अंगिरा राजा चित्रकेतुके राजभवनमें पधारे। सन्तानके लिये अत्यन्त लालायित नरेशको देखकर उन्होंने एक यज्ञ कराया और यज्ञशेष हविष्यान्न राजाकी सबसे बड़ी रानी कृतद्युतिको दे दिया। जाते-जाते महर्षि कहते गये— 'महाराज ! आपको एक पुत्र तो होगा; किंतु वह आपके हर्ष तथा शोक दोनोंका कारण बनेगा।'
महारानी कृतद्युति गर्भवती हुई। समयपर उन्हें पुत्र उत्पन्न हुआ। महाराज चित्रकेतुकी प्रसन्नताका पार नहीं था। पूरे राज्यमें महोत्सव मनाया गया। दीर्घकालतक सन्तानहीन राजाको सन्तान मिली थी, फलतः उनका वात्सल्य उमड़ पड़ा था। वे पुत्रके स्नेहवश बड़ी रानीके भवनमें ही प्रायः रहते थे। पुत्रवती बड़ी महारानीपर उनका एकान्त अनुराग हो गया था। फल यह हुआ कि महाराजकी दूसरी रानियाँ कुढ़ने लगीं। पतिकी उपेक्षाका उन्हें बड़ा दुःख हुआ और इस दुःखने प्रचण्ड द्वेषका रूप धारण कर लिया। द्वेषमें उनकी बुद्धि अन्धी हो गयी। अपनी उपेक्षाका मूल कारण उन्हें वह नवजात बालक ही लगा। अन्तमें सबने सलाह करके उस अबोध शिशुको चुपचाप विष दे दिया। बालक मर गया। महारानी कृतद्युति और महाराज चित्रकेतु तो बालकके शवके पास कटे वृक्षकी भाँति गिरे ही, पूरे राजसदनमें क्रन्दन होने लगा।
रुदन-क्रन्दनसे आकुल उस राजभवनमें दो दिव्य विभूतियाँ पधारीं महर्षि अंगिरा इस बार देवर्षि नारदके साथ आये थे। महर्षिने राजासे कहा-'राजन् तुम ब्राह्मणोंक और भगवान्के भक्त हो। तुमपर प्रसन्न होकर मैं तुम्हारे पास पहले आया था कि तुम्हें भगवदर्शनका मार्ग दिखा दूँ; किंतु तुम्हारे चित्तमें उस समय प्रबल पुत्रेच्छा देखकर मैंने तुम्हें पुत्र दिया। अब तुमने पुत्र वियोगके दुःखका अनुभव कर लिया। यह सारा संसार इसी प्रकार दुःखमय है।'
राजा चित्रकेतु अभी शोकमग्न थे। महर्षिकी बातका मर्म वे समझ नहीं सके। वे तो उन महापुरुषोंकी ओर देखते रह गये। देवर्षि नारदने समझ लिया कि इनका मोह ऐसे दूर नहीं होगा। उन्होंने अपनी दिव्यशक्तिसे बालकके जीवको आकर्षित किया। जीवात्माके आ जानेपर उन्होंने कहा- 'जीवात्मन्! देखो, ये तुम्हारे
माता-पिता अत्यन्त दुखी हो रहे हैं। तुम अपने शरीरमें f फिर प्रवेश करके इन्हें सुखी करो और राज्यसुख भोगो।'
सबने सुना कि जीवात्मा स्पष्ट कह रहा है ‘देवर्षे! ये मेरे किस जन्मके माता-पिता हैं ? जीवका तो कोई माता-पिता या भाई-बन्धु है नहीं। अनेक बार मैं इनका पिता रहा हूँ, अनेक बार ये मेरे। अनेक बार ये मेरे मित्र या शत्रु रहे हैं। ये सब सम्बन्ध तो शरीरके हैं। जहाँ शरीरसे सम्बन्ध छूटा, वहीं सब सम्बन्ध छूट गया।
फिर तो सबको अपने ही कर्मोंके अनुसार फल भोगना है।'
जीवात्मा यह कहकर चला गया। राजा चित्रकेतुका मोह उसकी बातोंको सुनकर नष्ट हो चुका था। पुत्रके शवका अन्तिम संस्कार सम्पन्न करके वे स्वस्थ चित्तसे महर्षियोंके समीप आये। देवर्षि नारदने उन्हें भगवान् शेषकी आराधनाका उपदेश किया, जिसके प्रभावसे कुछ कालमें ही उन्हें शेषजीके दर्शन हुए और वे विद्याधर हो गये। [ श्रीमद्भागवत ]



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sansaarake sambandh asaty aur anitya

sansaarake sambandh asaty aur anitya

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mahaaraanee kritadyuti garbhavatee huee. samayapar unhen putr utpann huaa. mahaaraaj chitraketukee prasannataaka paar naheen thaa. poore raajyamen mahotsav manaaya gayaa. deerghakaalatak santaanaheen raajaako santaan milee thee, phalatah unaka vaatsaly umada़ pada़a thaa. ve putrake snehavash bada़ee raaneeke bhavanamen hee praayah rahate the. putravatee bada़ee mahaaraaneepar unaka ekaant anuraag ho gaya thaa. phal yah hua ki mahaaraajakee doosaree raaniyaan kudha़ne lageen. patikee upekshaaka unhen bada़a duhkh hua aur is duhkhane prachand dveshaka roop dhaaran kar liyaa. dveshamen unakee buddhi andhee ho gayee. apanee upekshaaka mool kaaran unhen vah navajaat baalak hee lagaa. antamen sabane salaah karake us abodh shishuko chupachaap vish de diyaa. baalak mar gayaa. mahaaraanee kritadyuti aur mahaaraaj chitraketu to baalakake shavake paas kate vrikshakee bhaanti gire hee, poore raajasadanamen krandan hone lagaa.
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raaja chitraketu abhee shokamagn the. maharshikee baataka marm ve samajh naheen sake. ve to un mahaapurushonkee or dekhate rah gaye. devarshi naaradane samajh liya ki inaka moh aise door naheen hogaa. unhonne apanee divyashaktise baalakake jeevako aakarshit kiyaa. jeevaatmaake a jaanepar unhonne kahaa- 'jeevaatman! dekho, ye tumhaare
maataa-pita atyant dukhee ho rahe hain. tum apane shareeramen f phir pravesh karake inhen sukhee karo aur raajyasukh bhogo.'
sabane suna ki jeevaatma spasht kah raha hai ‘devarshe! ye mere kis janmake maataa-pita hain ? jeevaka to koee maataa-pita ya bhaaee-bandhu hai naheen. anek baar main inaka pita raha hoon, anek baar ye mere. anek baar ye mere mitr ya shatru rahe hain. ye sab sambandh to shareerake hain. jahaan shareerase sambandh chhoota, vaheen sab sambandh chhoot gayaa.
phir to sabako apane hee karmonke anusaar phal bhogana hai.'
jeevaatma yah kahakar chala gayaa. raaja chitraketuka moh usakee baatonko sunakar nasht ho chuka thaa. putrake shavaka antim sanskaar sampann karake ve svasth chittase maharshiyonke sameep aaye. devarshi naaradane unhen bhagavaan sheshakee aaraadhanaaka upadesh kiya, jisake prabhaavase kuchh kaalamen hee unhen sheshajeeke darshan hue aur ve vidyaadhar ho gaye. [ shreemadbhaagavat ]

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