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मनका प्रभाव होता है मनपर  [Story To Read]
Hindi Story - बोध कथा (Moral Story)

मनका प्रभाव होता है मनपर

काशीके सम्राट् अजितसेनकी सवारी शहरके बीचसे निकल रही थी। हजारों लोग सम्राट्के दर्शन कर रहे थे। उसी भीड़के बीच शहरका चन्दन- व्यापारी मणिभद्र भी खड़ा था। उसके मनमें विचार आ रहा था कि सालभर हो गया, चन्दनकी लकड़ियोंसे गोदाम भरा पड़ा है। खाली ही नहीं हो रहा। कोई ग्राहक आ नहीं रहा है। ऐसी स्थितिमें क्या किया जाय ? लेकिन ज्यों ही उसने सम्राट् अजितसेनको देखा, त्यों ही उसके मनमें एक विचार आया कि यदि सम्राट् मर जायँ तो मेरा सारा चन्दन-काष्ठ बिक सकता है। कमाई अच्छी हो सकती है। उसने प्रभुसे प्रार्थना की- 'भगवन्! मेरा यह काम हो जाना चाहिये।' ठीक उसी वक्त सम्राट्की दृष्टि मणिभद्रपर पड़ी। उसे देखते ही सम्राट्की आँखोंमें खून उतर आया। उसे ऐसा लगने लगा कि यह मेरा जानी दुश्मन है, इसे जानसे मार दिया जाय। जैसे कोई जन्म जन्मका बैर राजाके मनमें उभर रहा हो। क्यों उसे अकारण ही मणिभद्रपर इतना गुस्सा आ रहा है, यह बात सम्राट्को समझमें नहीं आ रही थी। राजाने मनकी यह बात प्रधानमन्त्री सुबुद्धिके सामने रखी और इसका कारण खोजने के लिये कहा।
कारण जाननेके लिये प्रधानमन्त्री सुबुद्धिने चन्द व्यापारी मणिभद्रसे दोस्ताना सम्बन्ध स्थापित किये। दोस्तीमें एक दोस्त दूसरेको जायज-नाजायज हर बात बता देता है। सेठ मणिभद्रने भी एक दिन मनकी बात सुबुद्धिसे कह दी 'व्यापार ठप्प है, मेरे मनमें एक विचार बार-बार आता है कि यदि राजा मर जायँ तो मेरा चन्दन बिक सकता है।' सेठकी बात सुनकर सुबुद्धिको समझते देर नहीं लगी कि इसी बुरे विचारका अदृश्यरूपसे राजापर प्रभाव पड़ रहा है। और उनके मनमें भी मणिभद्रके प्रति हिंसात्मक विचार आ रहा है। खैर, अब तो मणिभद्रको मैंने दोस्त बना लिया है, ऐसी स्थितिमें उसके हितोंकी रक्षा करना कर्तव्य है और इधर राजाका समाधान भी करना है।
एक दिन सुबुद्धिने राजासे निवेदन
किया-'राजन् ! जो नया महल बन रहा है, उसके दरवाजे-खिड़कियाँ कुर्सियाँ आदि सभी चन्दनके होने चाहिये, ताकि सारा महल चौबीसों घण्टे चन्दनकी महकसे महकता रहे। बाहरसे आनेवाले अतिथि भी इससे प्रसन्न होंगे।' राजाको बात जँच गयी। धनकी कमी तो थी नहीं। आदेश दिया कि बढ़िया चन्दन खरीद लिया जाय और यह काम शुरू कर दिया जाय।
राजाके आदेशानुसार मणिभद्रसेठके गोदामसे सारा का-सारा चन्दन खरीद लिया गया; क्योंकि बढ़िया चन्दन-काष्ठ उसीके पास था। अब तो चन्दन-काष्ठकी बार-बार माँग होने लगी। सेठके यहाँ जितना भी चन्दन आता, उसे राजा खरीद लेता। अब मणिभद्र सेठ सोचने लगा—‘सम्राट् ! जुग-जुग जिओ, ताकि मेरा धन्धा दिन दूना, रात चौगुना चलता रहे।' अब सेठ सम्राट्के दीर्घ जीवनकी दिन-रात कामना करने लगा।
एक दिन राजाकी सवारी फिर निकली। इस बार राजाने मणिभद्रको देखा तो उसपर वात्सल्यभाव उमड़ पड़ा। राजाको समझमें नहीं आया कि कुछ दिन पहले यही व्यक्ति जानी दुश्मन लगता था और आज प्रेमीसे ज्यादा प्रिय लग रहा है। आखिर ऐसा क्या है? मन्त्री सुबुद्धिके सामने भी राजाने यह सारी स्थिति रखी। मन्त्री बोला-'राजन्! यदि आप अनुचित न मानें तो मैं सारी स्थिति आपके सामने रख सकता हूँ।' राजाने कहा 'तुम निःसंकोच भावसे कहो। जो भी तुम कहोगे, मैं बुरा नहीं मानूंगा। किसीके विपरीत धारणा नहीं बनाऊँगा।' मन्त्रीने राजाकी मौत सोचनेसे लेकर अब जिन्दगी । चाहने तककी मणिभद्रकी सारी बात रख दी और कहा 'राजन्! यह सब मानसिक सोचका प्रभाव है। व्यति एक-दूसरेके प्रति जैसा सोचता है, उसका भी उनपर अदृश्यरूपसे प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। अतः मानसिक भी सही रखनेकी जरूरत है।'
मनके अच्छे भाव ही प्रतिक्रियाको आकर्षित
करते हैं।



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manaka prabhaav hota hai manapara

manaka prabhaav hota hai manapara

kaasheeke samraat ajitasenakee savaaree shaharake beechase nikal rahee thee. hajaaron log samraatke darshan kar rahe the. usee bheeda़ke beech shaharaka chandana- vyaapaaree manibhadr bhee khada़a thaa. usake manamen vichaar a raha tha ki saalabhar ho gaya, chandanakee lakada़iyonse godaam bhara pada़a hai. khaalee hee naheen ho rahaa. koee graahak a naheen raha hai. aisee sthitimen kya kiya jaay ? lekin jyon hee usane samraat ajitasenako dekha, tyon hee usake manamen ek vichaar aaya ki yadi samraat mar jaayan to mera saara chandana-kaashth bik sakata hai. kamaaee achchhee ho sakatee hai. usane prabhuse praarthana kee- 'bhagavan! mera yah kaam ho jaana chaahiye.' theek usee vakt samraatkee drishti manibhadrapar pada़ee. use dekhate hee samraatkee aankhonmen khoon utar aayaa. use aisa lagane laga ki yah mera jaanee dushman hai, ise jaanase maar diya jaaya. jaise koee janm janmaka bair raajaake manamen ubhar raha ho. kyon use akaaran hee manibhadrapar itana gussa a raha hai, yah baat samraatko samajhamen naheen a rahee thee. raajaane manakee yah baat pradhaanamantree subuddhike saamane rakhee aur isaka kaaran khojane ke liye kahaa.
kaaran jaananeke liye pradhaanamantree subuddhine chand vyaapaaree manibhadrase dostaana sambandh sthaapit kiye. dosteemen ek dost doosareko jaayaja-naajaayaj har baat bata deta hai. seth manibhadrane bhee ek din manakee baat subuddhise kah dee 'vyaapaar thapp hai, mere manamen ek vichaar baara-baar aata hai ki yadi raaja mar jaayan to mera chandan bik sakata hai.' sethakee baat sunakar subuddhiko samajhate der naheen lagee ki isee bure vichaaraka adrishyaroopase raajaapar prabhaav pada़ raha hai. aur unake manamen bhee manibhadrake prati hinsaatmak vichaar a raha hai. khair, ab to manibhadrako mainne dost bana liya hai, aisee sthitimen usake hitonkee raksha karana kartavy hai aur idhar raajaaka samaadhaan bhee karana hai.
ek din subuddhine raajaase nivedana
kiyaa-'raajan ! jo naya mahal ban raha hai, usake daravaaje-khida़kiyaan kursiyaan aadi sabhee chandanake hone chaahiye, taaki saara mahal chaubeeson ghante chandanakee mahakase mahakata rahe. baaharase aanevaale atithi bhee isase prasann honge.' raajaako baat janch gayee. dhanakee kamee to thee naheen. aadesh diya ki badha़iya chandan khareed liya jaay aur yah kaam shuroo kar diya jaaya.
raajaake aadeshaanusaar manibhadrasethake godaamase saara kaa-saara chandan khareed liya gayaa; kyonki badha़iya chandana-kaashth useeke paas thaa. ab to chandana-kaashthakee baara-baar maang hone lagee. sethake yahaan jitana bhee chandan aata, use raaja khareed letaa. ab manibhadr seth sochane lagaa—‘samraat ! juga-jug jio, taaki mera dhandha din doona, raat chauguna chalata rahe.' ab seth samraatke deergh jeevanakee dina-raat kaamana karane lagaa.
ek din raajaakee savaaree phir nikalee. is baar raajaane manibhadrako dekha to usapar vaatsalyabhaav umada़ pada़aa. raajaako samajhamen naheen aaya ki kuchh din pahale yahee vyakti jaanee dushman lagata tha aur aaj premeese jyaada priy lag raha hai. aakhir aisa kya hai? mantree subuddhike saamane bhee raajaane yah saaree sthiti rakhee. mantree bolaa-'raajan! yadi aap anuchit n maanen to main saaree sthiti aapake saamane rakh sakata hoon.' raajaane kaha 'tum nihsankoch bhaavase kaho. jo bhee tum kahoge, main bura naheen maanoongaa. kiseeke vipareet dhaarana naheen banaaoongaa.' mantreene raajaakee maut sochanese lekar ab jindagee . chaahane takakee manibhadrakee saaree baat rakh dee aur kaha 'raajan! yah sab maanasik sochaka prabhaav hai. vyati eka-doosareke prati jaisa sochata hai, usaka bhee unapar adrishyaroopase prabhaav pada़e bina naheen rahataa. atah maanasik bhee sahee rakhanekee jaroorat hai.'
manake achchhe bhaav hee pratikriyaako aakarshita
karate hain.

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