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दर्पणकी सीख  [Hindi Story]
शिक्षदायक कहानी - छोटी सी कहानी (प्रेरक कथा)

दर्पणकी सीख

पुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुलके आचार्य अपने शिष्यकी सेवा-भावनासे बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होनेके बाद शिष्यको विदा करते समय उन्होंने आशीर्वादके रूपमें उसे एक ऐसा दिव्य दर्पण भेंट किया, जिसमें व्यक्तिके मनके भावको दरसानेकी क्षमता थी। शिष्य उस दिव्य दर्पणको पाकर प्रसन्न हो उठा। परीक्षा लेनेकी जल्दबाजीमें उसने दर्पणका मुँह सबसे पहले गुरुजीके सामने कर दिया। यह देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया कि गुरुजीके हृदयमें मोह, अहंकार, क्रोध आदि दुर्गुण परिलक्षित हो रहे थे। इससे उसे बड़ा दुःख हुआ। वह तो अपने गुरुजीको समस्त दुर्गुणोंसे रहित, सत्पुरुष समझता था। दर्पण लेकर वह गुरुकुलसे रवाना हो गया। उसने अपने कई मित्रों तथा अन्य परिचितोंके सामने दर्पण रखकर परीक्षा ली। सबके हृदयमें कोई-न-कोई दुर्गुण अवश्य दिखायी दिया। और तो और अपने माता एवं पिताकी भी वह दर्पणमें परीक्षा करनेसे नहीं चूका। उनके हृदयमें भी कोई-न-कोई दुर्गुण देखा तो वह हतप्रभ हो उठा। एक दिन वह दर्पण लेकर फिर गुरुकुल पहुँचा। उसने गुरुजीसे विनम्रतापूर्वक कहा – 'गुरुदेव ! मैंने आपके दिये दर्पणकी मददसे देखा कि सबके दिलोंमें नाना प्रकारके दोष हैं।' तब गुरुजीने दर्पणका रुख शिष्यकी ओर कर दिया। शिष्य दंग रह गया; क्योंकि उसके मनके प्रत्येक कोनेमें राग, द्वेष, अहंकार, क्रोध- जैसे दुर्गुण विद्यमान थे। गुरुजी बोले- 'वत्स! यह दर्पण मैंने तुम्हें अपने दुर्गुण देखकर जीवनमें सुधार लानेके लिये दिया था, दूसरोंके दुर्गुण देखनेके लिये नहीं। जितना समय तुमने दूसरोंके दुर्गुण देखने में लगाया, उतना समय यदि तुमने स्वयंको सुधारने में लगाया होता, तो अबतक तुम्हारा व्यक्तित्व बदल चुका होता। मनुष्यकी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वह दूसरोंके दुर्गुण जाननेमें ज्यादा रुचि रखता है, स्वयंको सुधारनेके बारेमें नहीं सोचता। इस दर्पणकी यही सीख है, जो तुम नहीं समझ सके।'
दूसरोंको दोषी ठहरानेसे पहले, खुदके गिरेबान में झाँको।



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darpanakee seekha

darpanakee seekha

puraane jamaane kee baat hai. ek gurukulake aachaary apane shishyakee sevaa-bhaavanaase bahut prabhaavit hue. vidya pooree honeke baad shishyako vida karate samay unhonne aasheervaadake roopamen use ek aisa divy darpan bhent kiya, jisamen vyaktike manake bhaavako darasaanekee kshamata thee. shishy us divy darpanako paakar prasann ho uthaa. pareeksha lenekee jaldabaajeemen usane darpanaka munh sabase pahale gurujeeke saamane kar diyaa. yah dekhakar vah aashcharyachakit ho gaya ki gurujeeke hridayamen moh, ahankaar, krodh aadi durgun parilakshit ho rahe the. isase use bada़a duhkh huaa. vah to apane gurujeeko samast durgunonse rahit, satpurush samajhata thaa. darpan lekar vah gurukulase ravaana ho gayaa. usane apane kaee mitron tatha any parichitonke saamane darpan rakhakar pareeksha lee. sabake hridayamen koee-na-koee durgun avashy dikhaayee diyaa. aur to aur apane maata evan pitaakee bhee vah darpanamen pareeksha karanese naheen chookaa. unake hridayamen bhee koee-na-koee durgun dekha to vah hataprabh ho uthaa. ek din vah darpan lekar phir gurukul pahunchaa. usane gurujeese vinamrataapoorvak kaha – 'gurudev ! mainne aapake diye darpanakee madadase dekha ki sabake dilonmen naana prakaarake dosh hain.' tab gurujeene darpanaka rukh shishyakee or kar diyaa. shishy dang rah gayaa; kyonki usake manake pratyek konemen raag, dvesh, ahankaar, krodha- jaise durgun vidyamaan the. gurujee bole- 'vatsa! yah darpan mainne tumhen apane durgun dekhakar jeevanamen sudhaar laaneke liye diya tha, doosaronke durgun dekhaneke liye naheen. jitana samay tumane doosaronke durgun dekhane men lagaaya, utana samay yadi tumane svayanko sudhaarane men lagaaya hota, to abatak tumhaara vyaktitv badal chuka hotaa. manushyakee sabase bada़ee kamajoree yahee hai ki vah doosaronke durgun jaananemen jyaada ruchi rakhata hai, svayanko sudhaaraneke baaremen naheen sochataa. is darpanakee yahee seekh hai, jo tum naheen samajh sake.'
doosaronko doshee thaharaanese pahale, khudake girebaan men jhaanko.

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