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अपनेको पहचानना सहज नहीं  [Spiritual Story]
Story To Read - बोध कथा (प्रेरक कहानी)

"क्यों री ! आज सागमें नमक डालना भूल | गयी?'- पैठनके परम कर्मठ षट्शास्त्री बहिरंभट्टने अपनी पत्नीसे पूछा ।

पत्नीने जवाब दिया- 'साठ साल बीत गये, अभीतक आपकी जीभका चटोरपन नहीं गया! अब तो कुछ नियन्त्रण करते !"

बहिरंभट्टने पत्नीसे विनम्रतापूर्वक कहा - 'तुमने आज दिव्य अञ्जन लगाकर मेरी आँखें खोल दीं।' और तत्काल वे आत्मज्ञान प्राप्त करके जीवन सार्थक करनेके लिये निकल पड़े।

कुछ दूर एकान्तमें जाकर उन्होंने सोचा- 'क्या करूँ? गृहस्थ बना रहूँ तो संसारसे पिण्ड नहीं छूटता और संन्यास ले लूँ तो भी संसार नहीं छोड़ता।' अन्तमें वे एक निष्कर्षपर पहुँचे। पास ही एक काजीके घर गये और उससे मुस्लिम धर्मकी दीक्षा ले ली, ताकि अपने लोगोंसे पिण्ड छूटे।

बहिरे खाँको वहाँ भी शान्ति नहीं मिली और वे पुनः गङ्गातीरपर आकर अपनी भूलपर बिलख-बिलखकर रोने लगे। ब्राह्मणोंको दया आ गयी और उन्होंने उन्हें शुद्धकर पुनः हिंदू बना लिया।

अब तो बहिरंभट्ट और भी लोगोंकी चर्चाका विषय बन गये। मुसलमान आकर कहने लगे-'हमारे मियाँको अ तुमने हिंदू क्यों बनाया?' हिंदू कहने लगे-'हमारे अ बहिरंभट्टको ही तुमने बहिरे खाँ बनाया, पहला अपराधतुम्हारा ही है।'

बहिरंभट्ट बड़े असमंजसमें पड़ गये। वे पागल हो उठे, उन्होंने कहा-' आखिर मैं कौन हूँ? यदि बहिरे खाँ हूँ तो मेरा कान बिंधा ही हुआ है, उसके छेद अभीतक भर नहीं गये और बहिरंभट्ट हो गया तो सुनत किया मांस फिर कहाँ आया है, देखो।'

पगला बहिरंभट्ट यह जानने के लिये कि 'मैं कौन हूँ?' वहाँसे निकल पड़ा और इधर-उधर भटकने लगा। भटकते-भटकते वह एक स्थानपर आया; जहाँ सिद्ध नागनाथ अपने शिष्योंद्वारा स्वयं जीवित समाधि लेनेकी तैयारी करा रहे थे। बहिरंभट्टने कहा-'हाँ, यहाँ 'मँ कौन ?' इसका पता चलेगा।

उसने सिद्धसे भी जाकर यही प्रश्न और बितर्क किया। सिद्ध बिगड़ उठे। उन्होंने पासका दण्ड उठाकर भट्टके सिरपर दे मारा। बहिरंभट्टका शरीर चैतन्यविहीन हो गया।

फिर सिद्धने शिष्योंद्वारा उसके पिण्डको कूट काट, गोली बना अग्रिमें दे दिया। अनि शान्त होते ही सिद्धके देखनेके साथ राखमें प्राण संचरित हो गया। बहिरंभट्ट पुनः खड़े हो गये। गुरुने पूछा- 'तू कौन ?' वह चुप हो गया। सिद्धने भट्टके सिरपर हाथ रखा और उसे सिद्धान्त-ज्ञानका उपदेश दिया। बस, बहिरंभट्ट अपने-आपको समझ गया।

-गो0 न0 बै0 (भक्तिविजय, अध्याय 44)



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apaneko pahachaanana sahaj naheen

"kyon ree ! aaj saagamen namak daalana bhool | gayee?'- paithanake param karmath shatshaastree bahiranbhattane apanee patneese poochha .

patneene javaab diyaa- 'saath saal beet gaye, abheetak aapakee jeebhaka chatorapan naheen gayaa! ab to kuchh niyantran karate !"

bahiranbhattane patneese vinamrataapoorvak kaha - 'tumane aaj divy anjan lagaakar meree aankhen khol deen.' aur tatkaal ve aatmajnaan praapt karake jeevan saarthak karaneke liye nikal pada़e.

kuchh door ekaantamen jaakar unhonne sochaa- 'kya karoon? grihasth bana rahoon to sansaarase pind naheen chhootata aur sannyaas le loon to bhee sansaar naheen chhoda़taa.' antamen ve ek nishkarshapar pahunche. paas hee ek kaajeeke ghar gaye aur usase muslim dharmakee deeksha le lee, taaki apane logonse pind chhoote.

bahire khaanko vahaan bhee shaanti naheen milee aur ve punah gangaateerapar aakar apanee bhoolapar bilakha-bilakhakar rone lage. braahmanonko daya a gayee aur unhonne unhen shuddhakar punah hindoo bana liyaa.

ab to bahiranbhatt aur bhee logonkee charchaaka vishay ban gaye. musalamaan aakar kahane lage-'hamaare miyaanko tumane hindoo kyon banaayaa?' hindoo kahane lage-'hamaare bahiranbhattako hee tumane bahire khaan banaaya, pahala aparaadhatumhaara hee hai.'

bahiranbhatt bada़e asamanjasamen pada़ gaye. ve paagal ho uthe, unhonne kahaa-' aakhir main kaun hoon? yadi bahire khaan hoon to mera kaan bindha hee hua hai, usake chhed abheetak bhar naheen gaye aur bahiranbhatt ho gaya to sunat kiya maans phir kahaan aaya hai, dekho.'

pagala bahiranbhatt yah jaanane ke liye ki 'main kaun hoon?' vahaanse nikal pada़a aur idhara-udhar bhatakane lagaa. bhatakate-bhatakate vah ek sthaanapar aayaa; jahaan siddh naaganaath apane shishyondvaara svayan jeevit samaadhi lenekee taiyaaree kara rahe the. bahiranbhattane kahaa-'haan, yahaan 'man kaun ?' isaka pata chalegaa.

usane siddhase bhee jaakar yahee prashn aur bitark kiyaa. siddh bigada़ uthe. unhonne paasaka dand uthaakar bhattake sirapar de maaraa. bahiranbhattaka shareer chaitanyaviheen ho gayaa.

phir siddhane shishyondvaara usake pindako koot kaat, golee bana agrimen de diyaa. ani shaant hote hee siddhake dekhaneke saath raakhamen praan sancharit ho gayaa. bahiranbhatt punah khada़e ho gaye. gurune poochhaa- 'too kaun ?' vah chup ho gayaa. siddhane bhattake sirapar haath rakha aur use siddhaanta-jnaanaka upadesh diyaa. bas, bahiranbhatt apane-aapako samajh gayaa.

-go0 na0 bai0 (bhaktivijay, adhyaay 44)

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