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आर्त जगत्के आश्रय  [Hindi Story]
Spiritual Story - हिन्दी कथा (हिन्दी कहानी)

संसारमें जब पापका प्राबल्य हो जाता है-अनेक बार हो जाता है; किंतु अनेक बार ऐसा होता है कि पाप पुण्यके ही बलसे अजेय हो जाता है। असुर तपस्या करते हैं, उनकी तपःशक्ति उन्हें अजेय बना देती है। पाप विनाशी है, दुःखरूप है। शाश्वत, अजेय, सुखस्वरूप तो है धर्म । किंतु धर्म या पुण्य करके जब कोई अजेय अदम्य सुखी होकर पापरत हो जाय-देवता भी विवश हो जाते हैं। किसीकी तपः शक्ति, किसीका फल दानोन्मुख पुण्य वे नष्ट नहीं कर सकते और अपने तप एवं पुण्यके द्वारा प्राप्त शक्ति तथा ऐश्वर्यसे मदान्ध प्राणी उच्छृङ्खल होकर विश्वमें त्रास, पीड़ा एवं उत्पीडनकी सृष्टि करता है।

जगत्की नियन्तृका शक्तियाँ- देवता भी जब असमर्थ हो जाते हैं, विश्वके परम संचालककी शरण ही एकमात्र उपाय रहता है। जबतक देवशक्ति नियन्त्रण करनेमें समर्थ है, उत्पीडन अपनी सीमाका अतिक्रमण करते ही स्वयं ध्वस्त हो जाता है। अहंकारी मनुष्य समझ नहीं पाता कि उसका विनाश उसके पीछे ही मुख फाड़ेखड़ा है। पर ऐसा भी अवसर आता है जब देवशक्ति भी असमर्थ हो जाती है। उसकी शक्ति-सीमासे असुर बाहर हो जाते हैं। महामारी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, ज्वालामुखी – कोई सिर नहीं उठा सकता। सब नियन्त्रित कर लिये जाते हैं। आसुरशक्तिके यथेच्छाचारसे जगत् आर्त हो उठता है।

एक बारकी नहीं, युग-युगकी कथा है यह। देवता, मुनिगण मिलकर उस परमतत्त्वकी शरण लेते हैं, उस सर्वसमर्थका स्तवन करते हैं और उन्हें आश्वासन प्राप्त होता है। वे रमाकान्त, गरुडवाहन भगवान् नारायण आविर्भूत होते हैं अभयदान करने।

सृष्टिकी- विश्वकी ही नहीं, जीवनकी भी यही कथा है। जब पाप प्रबल होता है, आसुर-वृत्तियाँ अदम्य हो जाती हैं, यदि हम पराजय न स्वीकार कर लें, यदि हम उस आर्तोंके आश्रयको पुकारें- पुकार भर लें, वे रमाकान्त, गरुडवाहन भगवान् नारायण आश्वासन देते ही हैं। उनकी परमपावन स्मृति ही आलोक प्रदान करती है और आसुर वृत्तियोंको ध्वस्त कर देती है।



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aart jagatke aashraya

sansaaramen jab paapaka praabaly ho jaata hai-anek baar ho jaata hai; kintu anek baar aisa hota hai ki paap punyake hee balase ajey ho jaata hai. asur tapasya karate hain, unakee tapahshakti unhen ajey bana detee hai. paap vinaashee hai, duhkharoop hai. shaashvat, ajey, sukhasvaroop to hai dharm . kintu dharm ya puny karake jab koee ajey adamy sukhee hokar paaparat ho jaaya-devata bhee vivash ho jaate hain. kiseekee tapah shakti, kiseeka phal daanonmukh puny ve nasht naheen kar sakate aur apane tap evan punyake dvaara praapt shakti tatha aishvaryase madaandh praanee uchchhrinkhal hokar vishvamen traas, peeda़a evan utpeedanakee srishti karata hai.

jagatkee niyantrika shaktiyaan- devata bhee jab asamarth ho jaate hain, vishvake param sanchaalakakee sharan hee ekamaatr upaay rahata hai. jabatak devashakti niyantran karanemen samarth hai, utpeedan apanee seemaaka atikraman karate hee svayan dhvast ho jaata hai. ahankaaree manushy samajh naheen paata ki usaka vinaash usake peechhe hee mukh phaada़ekhada़a hai. par aisa bhee avasar aata hai jab devashakti bhee asamarth ho jaatee hai. usakee shakti-seemaase asur baahar ho jaate hain. mahaamaaree, ativrishti, anaavrishti, bhookamp, jvaalaamukhee – koee sir naheen utha sakataa. sab niyantrit kar liye jaate hain. aasurashaktike yathechchhaachaarase jagat aart ho uthata hai.

ek baarakee naheen, yuga-yugakee katha hai yaha. devata, munigan milakar us paramatattvakee sharan lete hain, us sarvasamarthaka stavan karate hain aur unhen aashvaasan praapt hota hai. ve ramaakaant, garudavaahan bhagavaan naaraayan aavirbhoot hote hain abhayadaan karane.

srishtikee- vishvakee hee naheen, jeevanakee bhee yahee katha hai. jab paap prabal hota hai, aasura-vrittiyaan adamy ho jaatee hain, yadi ham paraajay n sveekaar kar len, yadi ham us aartonke aashrayako pukaaren- pukaar bhar len, ve ramaakaant, garudavaahan bhagavaan naaraayan aashvaasan dete hee hain. unakee paramapaavan smriti hee aalok pradaan karatee hai aur aasur vrittiyonko dhvast kar detee hai.

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