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आखेट तथा असावधानीका दुष्परिणाम  [आध्यात्मिक कहानी]
Hindi Story - आध्यात्मिक कहानी (प्रेरक कथा)

अनेक बार तनिक सी असावधानी दारुण दुःखका कारण हो जाती है। बहुत से कार्य ऐसे हैं, जिनमें नाममात्रकी असावधानी भी अक्षम्य अपराध है। चिकित्सकका कार्य ऐसा ही है और आखेट भी ऐसा ही कार्य है। तनिक सी भूल किसीके प्राण ले सकती और फिर केवल पश्चात्ताप हाथ रहता है। अयोध्या- नरेश महाराज दशरथ एक बार रात्रिके मय आखेटको निकले थे। सरयूके किनारे उन्हें ऐसा -ब्द सुनायी पड़ा मानो कोई हाथी पानी पी रहा हो। इाराजने शब्दवेधी लक्ष्यसे बाण छोड़ दिया। यहीं बड़ीभारी भूल हो गयी। आखेटके नियमानुसार बिना लक्ष्यको ठीक-ठीक देखे बाण नहीं छोड़ना चाहिये था। दूसरे, युद्धके अतिरिक्त हाथी अवध्य है, यदि वह पागल न हो रहा हो। इसलिये हाथी समझकर भी बाण चलाना अनुचित ही था। महाराजको तत्काल किसी मनुष्यकण्ठका चीत्कार सुनायी पड़ा। वे दौड़े उसी ओर।

माता पिताके परम भक्त श्रवणकुमार अपने अंधे माता पिताकी तीर्थयात्राकी इच्छा पूरी करनेके लिये दोनोंको काँवरमें बैठाकर कंधेपर उठाकर यात्रा कर रहे थे। अयोध्या के पास बनमें पहुँचनेपर उनके माता पिताको प्यास लगी। दोनोंको वृक्षके नीचे उतारकर वे जल लेने सरयू-किनारे आये। कमण्डलुके पानी में डुबानेपर जो शब्द हुआ, उसीको महाराज दशरथने दूरसे हाथीके जल पीनेका शब्द समझकर बाण छोड़ दिया था।

महाराज दशरथके पश्चात्तापका पार नहीं था। उनका वाण श्रवणकुमारकी छातीमें लगा था। वे भूमिपर छटपटा रहे थे। महाराज अपने बाणसे एक तपस्वीको घायल देखकर भयके मारे पीले पड़ गये। श्रवणकुमारने महाराजका परिचय पाकर कहा- 'मैं ब्राह्मण नहीं हूँ, अतः आपको ब्रह्महत्या नहीं लगेगी। परंतु मेरी छाती से बाण निकाल लीजिये और मेरे प्यासे माता-पिताको जलपिला दीजिये।'

छातीसे बाण निकालते ही प्रणवकुमारके प्राण भी शरीरसे निकल गये। महाराज दशरथ जल लेकर उनके | माता-पिताके पास पहुँचे और बिना बोले ही उन्हें जल देने लगे, तब उन वृद्ध अंधे दम्पतिने पूछा- 'बेटा! आज तुम बोलते क्यों नहीं ?'

विवश होकर महाराजको अपना परिचय देना पड़ा और सारी घटना बतानी पड़ी अपने एकमात्र पुत्रकी मृत्यु सुनकर वे दोनों दुःखसे अत्यन्त व्याकुल हो गये। 'बेटा श्रवण! तुम कहाँ हो ?' इस प्रकार चिल्लाते हुए सरयू-किनारे जानेको उठ पड़े। हाथ पकड़कर महाराज उन्हें वहाँ ले आये, जहाँ श्रवणकुमारका शरीर पड़ा था। महाराजको ही चिता बनानी पड़ी। दोनों वृद्ध दम्पति पुत्रके शरीरके साथ ही चितामें बैठ गये। महाराज दशरथके बहुत प्रार्थना करनेपर भी उन्होंने जीवित रहना स्वीकार नहीं किया और बहुत क्षमा माँगनेपर भी उन्होंने महाराजको क्षमा नहीं किया। उन्होंने महाराजको शाप दिया जैसे हम पुत्रके वियोग में मर रहे हैं, वैसे ही तुम भी पुत्रके वियोगमें तड़प-तड़प कर मरोगे।'

वृद्ध दम्पतिका यह शाप सत्य होकर रहा। श्रीरामके वन जानेपर चक्रवर्ती महाराजने उनके वियोग में व्याकुल होकर देहत्याग किया। सु0 [सं0



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aakhet tatha asaavadhaaneeka dushparinaama

anek baar tanik see asaavadhaanee daarun duhkhaka kaaran ho jaatee hai. bahut se kaary aise hain, jinamen naamamaatrakee asaavadhaanee bhee akshamy aparaadh hai. chikitsakaka kaary aisa hee hai aur aakhet bhee aisa hee kaary hai. tanik see bhool kiseeke praan le sakatee aur phir keval pashchaattaap haath rahata hai. ayodhyaa- naresh mahaaraaj dasharath ek baar raatrike may aakhetako nikale the. sarayooke kinaare unhen aisa -bd sunaayee pada़a maano koee haathee paanee pee raha ho. iaaraajane shabdavedhee lakshyase baan chhoda़ diyaa. yaheen bada़eebhaaree bhool ho gayee. aakhetake niyamaanusaar bina lakshyako theeka-theek dekhe baan naheen chhoda़na chaahiye thaa. doosare, yuddhake atirikt haathee avadhy hai, yadi vah paagal n ho raha ho. isaliye haathee samajhakar bhee baan chalaana anuchit hee thaa. mahaaraajako tatkaal kisee manushyakanthaka cheetkaar sunaayee pada़aa. ve dauda़e usee ora.

maata pitaake param bhakt shravanakumaar apane andhe maata pitaakee teerthayaatraakee ichchha pooree karaneke liye dononko kaanvaramen baithaakar kandhepar uthaakar yaatra kar rahe the. ayodhya ke paas banamen pahunchanepar unake maata pitaako pyaas lagee. dononko vrikshake neeche utaarakar ve jal lene sarayoo-kinaare aaye. kamandaluke paanee men dubaanepar jo shabd hua, useeko mahaaraaj dasharathane doorase haatheeke jal peeneka shabd samajhakar baan chhoda़ diya thaa.

mahaaraaj dasharathake pashchaattaapaka paar naheen thaa. unaka vaan shravanakumaarakee chhaateemen laga thaa. ve bhoomipar chhatapata rahe the. mahaaraaj apane baanase ek tapasveeko ghaayal dekhakar bhayake maare peele pada़ gaye. shravanakumaarane mahaaraajaka parichay paakar kahaa- 'main braahman naheen hoon, atah aapako brahmahatya naheen lagegee. parantu meree chhaatee se baan nikaal leejiye aur mere pyaase maataa-pitaako jalapila deejiye.'

chhaateese baan nikaalate hee pranavakumaarake praan bhee shareerase nikal gaye. mahaaraaj dasharath jal lekar unake | maataa-pitaake paas pahunche aur bina bole hee unhen jal dene lage, tab un vriddh andhe dampatine poochhaa- 'betaa! aaj tum bolate kyon naheen ?'

vivash hokar mahaaraajako apana parichay dena pada़a aur saaree ghatana bataanee paड़ee apane ekamaatr putrakee mrityu sunakar ve donon duhkhase atyant vyaakul ho gaye. 'beta shravana! tum kahaan ho ?' is prakaar chillaate hue sarayoo-kinaare jaaneko uth pada़e. haath pakada़kar mahaaraaj unhen vahaan le aaye, jahaan shravanakumaaraka shareer pada़a thaa. mahaaraajako hee chita banaanee pada़ee. donon vriddh dampati putrake shareerake saath hee chitaamen baith gaye. mahaaraaj dasharathake bahut praarthana karanepar bhee unhonne jeevit rahana sveekaar naheen kiya aur bahut kshama maanganepar bhee unhonne mahaaraajako kshama naheen kiyaa. unhonne mahaaraajako shaap diya jaise ham putrake viyog men mar rahe hain, vaise hee tum bhee putrake viyogamen tada़pa-tada़p kar maroge.'

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