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दरिद्रनारायणकी सेवा  [हिन्दी कथा]
बोध कथा - Short Story (छोटी सी कहानी)

यूरोपियन संत-साहित्यके इतिहासमें इटलीके प्रसिद्ध संत अस्सीसाईवाले फ्रांसिसका नाम अमर है। विरक्त जीवनसे पूर्व समयकी एक घटना है। वे नौजवान थे। राग-रंगमें उनकी बड़ी रुचि थी। कलाकारों और संगीतज्ञोंका वे बड़ा सम्मान करते थे तथा साथ-ही-साथ बारहवीं शताब्दीके इटलीके प्रसिद्ध धनी व्यापारी बरनरडोनके पुत्र होनेके नाते उदारता और दानशीलतामें भी वे सबसे आगे थे। कोई भिखारी उनके सामनेसे खाली हाथ नहीं जाने पाता था।

एक समय वे अपनी रेशमी कपड़ेकी दूकानपर बैठे हुए थे। उनके पिता दूकानके भीतर थे। फ्रांसिसएक धनी ग्राहकसे बात कर रहे थे कि अचानक दूकानके सामने उन्हें एक भिखारी दीख पड़ा। वह कुछ पानेके लोभसे खड़ा था। फ्रांसिस बातमें उलझ गये थे। सौदेकी बात हो जानेपर ग्राहक चला गया तब फ्रांसिसको भिखारीका स्मरण हो आया, पर वह वहाँ था ही नहीं ।

'कितना भयानक पाप कर डाला मैंने!' वे भिखारीकी खोजमें निकल पड़े। दूकान खुली पड़ी रह गयी। लाखोंकी सम्पत्ति थी, पर इसकी उन्हें तनिक भी चिन्ता नहीं थी
वे प्रत्येक दूकानदार और यात्रीसे उस भिखारीके सम्बन्धमें पूछते दौड़ रहे थे। उनका सारा शरीर पसीने सेलथपथ था। लोगोंने समझा कि भिखारीने माल चुरा लिया है। फ्रांसिसके हृदयकी वेदना अद्भुत थी; उनके नयन तो भिखारीको ही खोज रहे थे और वे अपने आपको धिक्कार रहे थे कि अतिथि भिखारीके रूपमें दरवाजेसे तिरस्कृत होकर लौट गया। अचानक उनका मन प्रसन्नतासे नाच उठा। भिखारी थोड़ी ही दूरपर दीख पड़ा और वे दौड़कर उससे लिपट गये।'भैया! मुझसे बड़ी भूल हो गयी। रुपये-पैसेका सौदा ही ऐसा है कि आदमी उसमें उलझकर अंधा हो जाता है।' फ्रांसिसने विवशता बतायी; अपने पासके सारे रुपये उसे दे दिये और कोट पहना दिया।

'आपका कल्याण हो।' भिखारीने आशीर्वाद दिया! फ्रांसिसने संतोषकी साँस ली दरिद्रनारायणको प्रसन्न देखकर ।

- रा0 श्री0



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daridranaaraayanakee sevaa

yooropiyan santa-saahityake itihaasamen italeeke prasiddh sant asseesaaeevaale phraansisaka naam amar hai. virakt jeevanase poorv samayakee ek ghatana hai. ve naujavaan the. raaga-rangamen unakee bada़ee ruchi thee. kalaakaaron aur sangeetajnonka ve bada़a sammaan karate the tatha saatha-hee-saath baarahaveen shataabdeeke italeeke prasiddh dhanee vyaapaaree baranaradonake putr honeke naate udaarata aur daanasheelataamen bhee ve sabase aage the. koee bhikhaaree unake saamanese khaalee haath naheen jaane paata thaa.

ek samay ve apanee reshamee kapada़ekee dookaanapar baithe hue the. unake pita dookaanake bheetar the. phraansisaek dhanee graahakase baat kar rahe the ki achaanak dookaanake saamane unhen ek bhikhaaree deekh pada़aa. vah kuchh paaneke lobhase khada़a thaa. phraansis baatamen ulajh gaye the. saudekee baat ho jaanepar graahak chala gaya tab phraansisako bhikhaareeka smaran ho aaya, par vah vahaan tha hee naheen .

'kitana bhayaanak paap kar daala mainne!' ve bhikhaareekee khojamen nikal pada़e. dookaan khulee pada़ee rah gayee. laakhonkee sampatti thee, par isakee unhen tanik bhee chinta naheen thee
ve pratyek dookaanadaar aur yaatreese us bhikhaareeke sambandhamen poochhate dauda़ rahe the. unaka saara shareer paseene selathapath thaa. logonne samajha ki bhikhaareene maal chura liya hai. phraansisake hridayakee vedana adbhut thee; unake nayan to bhikhaareeko hee khoj rahe the aur ve apane aapako dhikkaar rahe the ki atithi bhikhaareeke roopamen daravaajese tiraskrit hokar laut gayaa. achaanak unaka man prasannataase naach uthaa. bhikhaaree thoda़ee hee doorapar deekh pada़a aur ve dauda़kar usase lipat gaye.'bhaiyaa! mujhase bada़ee bhool ho gayee. rupaye-paiseka sauda hee aisa hai ki aadamee usamen ulajhakar andha ho jaata hai.' phraansisane vivashata bataayee; apane paasake saare rupaye use de diye aur kot pahana diyaa.

'aapaka kalyaan ho.' bhikhaareene aasheervaad diyaa! phraansisane santoshakee saans lee daridranaaraayanako prasann dekhakar .

- raa0 shree0

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