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संसारका स्वरूप  [आध्यात्मिक कथा]
हिन्दी कहानी - Spiritual Story (Story To Read)

एक युवक बचपनसे एक महात्माके पास आया- | --- जाया करता था। सत्संगके प्रभावसे भजनमें भी उसका चित्त लगता था। महात्माने देखा कि वह अधिकारी हैं, केवल मोहवश परिवारमें आसक्त हो रहा है। उन्होंने उसे समझाया-'बेटा! माता-पिताकी सेवा और पत्नीका पालन-पोषण तो कर्तव्य है। उसे धर्म समझकर करना चाहिये। परंतु मोहवश उनमें आसक्त होना उचित नहीं भगवान् ही अपने हैं। संसारमें दूसरा कोई किसीका नहीं है।'

युवकने कहा- 'भगवन्! आपकी यह बात मेरी समझमें नहीं आती। मेरे माता-पिता मुझे इतना स्नेह करते हैं कि एक दिन घर न जाऊँ तो उनकी भूख प्यास तथा नींद सब बंद हो जाती है। मेरी पतिव्रता पत्नीको तो मैं क्या कहूँ। मेरे बिना तीनमेंसे कोई जीवित नहीं रह सकता।'

महात्माने उसे परीक्षा करके देखनेको कहा और युक्ति बतलायी। उस दिन घर जाकर वह सीधा पलंगपर लेट गया। किसीकी बातका कुछ उत्तर नहीं दिया उसने। थोड़ी देरमें हाथ-पैर कड़े करके प्राणवायु मस्तकमें चढ़ाकर वह निश्चेष्ट हो गया। घरमें रोना पीटना मच गया उसे मृत समझकर। पास-पड़ोसके लोग एकत्र हो गये।

इसी समय महात्माजी पधारे। उन्होंने कहा- 'मैं इसे जीवित कर सकता हूँ। एक कटोरी पानी चाहिये।' घरके लोग तो साधुके चरणोंमें लोटने लगे। कटोरीका पानी लेकर महात्माजीने कुछ मन्त्र पढ़े और युवकके चारों ओर घुमाया। अब वे बोले-'इस जलको 6 कोई पी जाय। जल पीनेवाला मर जायगा और युवकजीवित हो जायगा।'

मेरे कौन? सब एक दूसरेका मुख देखने लगे। पड़ोसी, मित्र आदि धीरे-धीरे खिसक गये। साधुने युवकके पिताकी ओर देखा तो वे बोले-'मैं प्रसन्नतासे जल पी लेता; किंतु अभी कुछ आवश्यक कार्य रह गये हैं। उन्हें निबटा न दूँ तो इसे बहुत क्लेश होगा। मेरी स्त्री |

परंतु बुढ़िया बीचमें ही आँख निकालकर बोली "बूढ़े! तू मेरे बिना रह सकेगा? और देखता नहीं कि बहू कितनी बच्ची है। वह अभी घर सम्हाल सकती है ?" 'देवि! तुम तो पतिव्रता हो। पतिके बिना वैसे भी तुम जीवित रहना नहीं चाहोगी।' साधुने युवककी पत्नीकी ओर देखा।

उस नारीने उत्तर दिया- 'भगवन्! मैं न रही तो जीवित होकर भी ये बहुत दुखी होंगे और मेरे माता पिता तो मेरी मृत्युका समाचार पाते ही मर जायँगे। उनके और कोई संतान नहीं है। विपत्तिके दिन मैं उनके पास रहकर काहूँगी तो उनको कुछ तो धैर्य रहेगा।'

'तब मैं पी लूँ यह पानी ?' साधुने पूछा। अब तो सभी एक साथ बोल उठे-'आप धन्य हैं। महात्माओंका तो जीवन ही परोपकारके लिये होता है। आप कृपा करें। आप तो मुक्तात्मा हैं। आपके लिये तो जीवन-मरण एक-से हैं।'

युवकको अब और कुछ देखना सुनना नहीं था। उसने प्राणायाम समाप्त कर दिया। और बोल उठा 'भगवन्! आप पानी पियें, यह आवश्यक नहीं है। मुझे आपने सचमुच आज जीवन दे दिया है-प्रबुद्ध जीवन।' -सु0 सिं0



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sansaaraka svaroopa

ek yuvak bachapanase ek mahaatmaake paas aayaa- | --- jaaya karata thaa. satsangake prabhaavase bhajanamen bhee usaka chitt lagata thaa. mahaatmaane dekha ki vah adhikaaree hain, keval mohavash parivaaramen aasakt ho raha hai. unhonne use samajhaayaa-'betaa! maataa-pitaakee seva aur patneeka paalana-poshan to kartavy hai. use dharm samajhakar karana chaahiye. parantu mohavash unamen aasakt hona uchit naheen bhagavaan hee apane hain. sansaaramen doosara koee kiseeka naheen hai.'

yuvakane kahaa- 'bhagavan! aapakee yah baat meree samajhamen naheen aatee. mere maataa-pita mujhe itana sneh karate hain ki ek din ghar n jaaoon to unakee bhookh pyaas tatha neend sab band ho jaatee hai. meree pativrata patneeko to main kya kahoon. mere bina teenamense koee jeevit naheen rah sakataa.'

mahaatmaane use pareeksha karake dekhaneko kaha aur yukti batalaayee. us din ghar jaakar vah seedha palangapar let gayaa. kiseekee baataka kuchh uttar naheen diya usane. thoda़ee deramen haatha-pair kada़e karake praanavaayu mastakamen chadha़aakar vah nishchesht ho gayaa. gharamen rona peetana mach gaya use mrit samajhakara. paasa-pada़osake log ekatr ho gaye.

isee samay mahaatmaajee padhaare. unhonne kahaa- 'main ise jeevit kar sakata hoon. ek katoree paanee chaahiye.' gharake log to saadhuke charanonmen lotane lage. katoreeka paanee lekar mahaatmaajeene kuchh mantr padha़e aur yuvakake chaaron or ghumaayaa. ab ve bole-'is jalako 6 koee pee jaaya. jal peenevaala mar jaayaga aur yuvakajeevit ho jaayagaa.'

mere kauna? sab ek doosareka mukh dekhane lage. pada़osee, mitr aadi dheere-dheere khisak gaye. saadhune yuvakake pitaakee or dekha to ve bole-'main prasannataase jal pee letaa; kintu abhee kuchh aavashyak kaary rah gaye hain. unhen nibata n doon to ise bahut klesh hogaa. meree stree |

parantu budha़iya beechamen hee aankh nikaalakar bolee "boodha़e! too mere bina rah sakegaa? aur dekhata naheen ki bahoo kitanee bachchee hai. vah abhee ghar samhaal sakatee hai ?" 'devi! tum to pativrata ho. patike bina vaise bhee tum jeevit rahana naheen chaahogee.' saadhune yuvakakee patneekee or dekhaa.

us naareene uttar diyaa- 'bhagavan! main n rahee to jeevit hokar bhee ye bahut dukhee honge aur mere maata pita to meree mrityuka samaachaar paate hee mar jaayange. unake aur koee santaan naheen hai. vipattike din main unake paas rahakar kaahoongee to unako kuchh to dhairy rahegaa.'

'tab main pee loon yah paanee ?' saadhune poochhaa. ab to sabhee ek saath bol uthe-'aap dhany hain. mahaatmaaonka to jeevan hee paropakaarake liye hota hai. aap kripa karen. aap to muktaatma hain. aapake liye to jeevana-maran eka-se hain.'

yuvakako ab aur kuchh dekhana sunana naheen thaa. usane praanaayaam samaapt kar diyaa. aur bol utha 'bhagavan! aap paanee piyen, yah aavashyak naheen hai. mujhe aapane sachamuch aaj jeevan de diya hai-prabuddh jeevana.' -su0 sin0

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