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परिहाससे ऋषिके तिरस्कारका कुफल  [Shikshaprad Kahani]
प्रेरक कथा - Wisdom Story (Shikshaprad Kahani)

अभिमन्युनन्दन राजा परीक्षित बड़े धर्मात्मा थे। एक दिन इन्हें मालूम हुआ कि मेरे राज्यमें कलियुग आ गया है। बस, ये उसे ढूँढ़नेके लिये निकल पड़े। एक स्थानपर उन्होंने देखा कि राजोचित वस्त्राभूषणसे सुसज्जित कोई शूद्र गौ और बैलको डंडोंसे पीट रहा है। बैलके तीन पैर टूट चुके थे, एक ही अवशेष था। उनका परिचय प्राप्त करनेपर मालूम हुआ कि यह बैल धर्म है, पृथ्वी गौ है और कलियुग ही शूद्र है। उन्होंने उस कलिको मारनेके लिये खड्ग उठाया, परंतु वह उनके चरणोंपर गिरकर गिड़गिड़ाने लगा। राजाको दया आ गयी। उन्होंने उसकी प्रार्थनास्वीकार करके और उसका यह गुण देखकर कि कलियुगमें और किसी साधन, योग, यज्ञ आदिकी आवश्यकता न होगी, केवल भगवान्‌के नामोंसे ही प्राणियोंका स्वार्थ, परमार्थ आदि सम्पन्न हो जायगा, उसे रहनेके लिये जूआ, शराब, स्त्री, हिंसा, सोना आदि स्थान बता दिये; क्योंकि इन स्थानोंमें झूठ, मद, अपवित्रता तथा क्रूरतादि दोष रहते हैं। कुछ दिनोंके बाद उस समयकी प्रथाके अनुसार वे शिकार खेलने निकले। एक मृगके पीछे दौड़ते हुए दूर निकल गये। थकावट और प्यासके कारण वे घबरा | उठे। पानी पीनेकी इच्छासे एक ऋषिके आश्रमपरगये, परंतु वे ध्यानमग्न थे। इनकी याचनासे उनका ध्यान भङ्ग नहीं हुआ। इसी समय कलियुगने इनपर आक्रमण किया। इनको क्रोध आ गया और क्रोधवश होकर ऋषिका परिहास करनेके लिये इन्होंने उन ध्यानमग्न ऋषिके गलेमें एक मरा साँप पहना दिया और आवेशमें ही राजधानी लौट आये।

जब कुछ समय बाद इन्हें होश आया, तब ये पश्चात्ताप करने लगे और इस अपराधका दण्ड भोगनेके लिये उद्यत होकर उसकी प्रतीक्षा करने लगे। उधर कई ऋषि- बालकोंने जाकर नदी किनारे खेलते हुए उनके बच्चेसे यह बात कह सुनायी। उसेक्रोध आ गया और उसने शाप दे दिया कि आजके सातवें दिन तक्षक साँप परीक्षित्को डँसेगा। अपमानके कारण उद्विग्न होकर वह रोने लगा। उसका रोना सुनकर धीरे-धीरे कुछ समयके बाद ऋषिका ध्यान टूटा । उन्होंने सब बात सुनकर अपने लड़केको बहुत डाँटा । संसारके एकमात्र धार्मिक सम्राट् हमारे आश्रममें आये और उनका सत्कार तो दूर रहा, अपमान हुआ और उन्हें मृत्युतकका शाप दे दिया गया! आगे आनेवाली अधर्मकी वृद्धिकी चिन्तासे ऋषि चिन्तित हो उठे, परंतु अब तो शाप दिया जा चुका था। राजाके पास संदेश भेज दिया। इसी शापसे परीक्षित्की मृत्यु हुई ।



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parihaasase rishike tiraskaaraka kuphala

abhimanyunandan raaja pareekshit baड़e dharmaatma the. ek din inhen maaloom hua ki mere raajyamen kaliyug a gaya hai. bas, ye use dhoondha़neke liye nikal pada़e. ek sthaanapar unhonne dekha ki raajochit vastraabhooshanase susajjit koee shoodr gau aur bailako dandonse peet raha hai. bailake teen pair toot chuke the, ek hee avashesh thaa. unaka parichay praapt karanepar maaloom hua ki yah bail dharm hai, prithvee gau hai aur kaliyug hee shoodr hai. unhonne us kaliko maaraneke liye khadg uthaaya, parantu vah unake charanonpar girakar gida़gida़aane lagaa. raajaako daya a gayee. unhonne usakee praarthanaasveekaar karake aur usaka yah gun dekhakar ki kaliyugamen aur kisee saadhan, yog, yajn aadikee aavashyakata n hogee, keval bhagavaan‌ke naamonse hee praaniyonka svaarth, paramaarth aadi sampann ho jaayaga, use rahaneke liye jooa, sharaab, stree, hinsa, sona aadi sthaan bata diye; kyonki in sthaanonmen jhooth, mad, apavitrata tatha kroorataadi dosh rahate hain. kuchh dinonke baad us samayakee prathaake anusaar ve shikaar khelane nikale. ek mrigake peechhe dauda़te hue door nikal gaye. thakaavat aur pyaasake kaaran ve ghabara | uthe. paanee peenekee ichchhaase ek rishike aashramaparagaye, parantu ve dhyaanamagn the. inakee yaachanaase unaka dhyaan bhang naheen huaa. isee samay kaliyugane inapar aakraman kiyaa. inako krodh a gaya aur krodhavash hokar rishika parihaas karaneke liye inhonne un dhyaanamagn rishike galemen ek mara saanp pahana diya aur aaveshamen hee raajadhaanee laut aaye.

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