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शोकके अवसरपर हर्ष क्यों  [प्रेरक कथा]
Short Story - Spiritual Story (प्रेरक कथा)

भीमका महावीर राक्षसपुत्र घटोत्कच मारा गया। पाण्डवशिविरमें शोक छाया है, सबकी आँखोंसे आँसू वह रहे हैं; केवल श्रीकृष्ण प्रसन्न हैं। वे बार-बार आनन्दसे सिंहनाद करते और हर्षसे झूमकर नाच उठते हैं तथा अर्जुनको गले लगाकर उसकी पीठ ठोंकते हैं!

भगवान्को इतना प्रसन्न देखकर अर्जुनने पूछा 'मधुसूदन ! घटोत्कचकी मृत्युसे अपना सारा परिवार शोक-सागरमें डूबा हुआ है। अपनी सारी सेना विमुख होकर भाग रही है। आप इस अवसरमें इतने प्रसन्न क्यों हैं? मामूली कारणसे तो आप ऐसा करते नहीं; क्या बात है, कृपया बताइये।'

भगवान् श्रीकृष्णने कहा- 'अर्जुन! मेरे लिये सचमुच आज बड़े ही आनन्दका अवसर है। घटोत्कच तो मरा, पर मेरा प्राणप्रिय अर्जुन बच गया। मुझे इसीकी प्रसन्नता है। कर्णके पास कवच कुण्डल थे। उनके रहते वह अजेय था, उनको तो इन्द्र माँगकर ले गये। पर इन्द्रकर्णको एक ऐसी शक्ति दे गये, जिसके उनके पास रहते मैं सदा तुम्हारे प्राणोंको संकटमें ही मानता था। कर्ण ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी, व्रतधारी, तपस्वी और शत्रुओं पर भी दया करनेवाले हैं। इसीलिये उनको 'वृष' या 'धर्म' कहते हैं। उन्हें यों ही कोई नहीं मार सकता, फिर 'शक्ति' रहते तो मार ही कौन सकता था। कर्ण उस शक्तिसे तुम्हें मारना चाहते थे। आज उस शक्तिसे घटोत्कच मारा गया, अतएव अब कर्णको मरा ही समझो। इसीसे मुझे प्रसन्नता है।

'रही घटोत्कचके मरनेकी बात, सो माना कि घटोत्कच अपने घरका बच्चा था और महावीर भी था; परंतु वह पापात्मा, ब्राह्मणद्वेषी और यज्ञोंका नाश करनेवाला था। ऐसे खलोंको भी मैं स्वयं मारना चाहता हूँ। इससे उसका विनाश तो मैंने ही करवाया है। मैं तो सदा वहीं क्रीडा किया करता हूँ जहाँ वेद, सत्य, दम, पवित्रता, धर्म, कुकृत्यमें लज्जा, श्री, धैर्य औरक्षमाका निवास है । इसीलिये मैं पाण्डवोंके साथ हूँ। अर्जुन! तुम मेरे प्राणप्रिय हो, आज इस प्रकार तुम्हारे बच जानेसे मुझे अत्यन्त हर्ष है।' भगवान्‌के प्रेमपूर्ण वाक्योंको सुनकर अर्जुन गद्गद हो गये। अर्जुनका समाधान हो गया।

फिर सात्यकिने पूछा- 'भगवन्! जब कर्णने वह अमोघ शक्ति अर्जुनपर ही छोड़नेका निश्चय किया था, तब उसे छोड़ा क्यों नहीं? अर्जुन तो नित्य ही समराङ्गणमें उनके सामने पड़ते थे।' इसपर भगवान् श्रीकृष्ण बोले- 'सात्यके! दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि और जयद्रथ- ये सभी प्रतिदिन कर्णको यह सलाह दिया करते थे कि तुम इस शक्तिका प्रयोग केवल अर्जुनपर ही करना। अर्जुनके मारे जानेपर सारे पाण्डव और सृञ्जय आप ही मर जायँगे और कर्ण भी यह प्रतिज्ञा कर चुके थे। वे प्रतिदिन ही उस शक्तिके द्वारामारनेकी बात सोचते थे, पर ज्यों ही वे सामने आते कि मैं उनको मोहित कर देता। यही कारण है कि वे शक्तिका प्रयोग अर्जुनपर नहीं कर सके। इतनेपर भी सात्यके! वह शक्ति अर्जुनके लिये मृत्युरूप है | इस चिन्ताके मारे मैं सदा उदास रहता था, मुझे रातको नींद नहीं आती थी। अब वह शक्ति घटोत्कचपर पड़कर नष्ट हो गयी। यह देखकर मुझे लगता है कि अर्जुन मृत्युके मुखसे छूट गये। मैं युद्धमें अर्जुनकी रक्षा करना जितनी आवश्यक समझता हूँ, उतनी पिता, माता, तुम जैसे भाई और अपने प्राणोंकी भी रक्षा आवश्यक नहीं समझता। तीनों लोकोंके राज्यकी अपेक्षा भी कोई दुर्लभ वस्तु मिलती हो तो उसे भी मैं अर्जुनके बिना नहीं चाहता। इसीलिये आज अर्जुन मानो मरकर पुनः वापस आ गये हैं, यह देखकर ही मुझे बड़ा भारी हर्ष हो रहा है।' *



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shokake avasarapar harsh kyon

bheemaka mahaaveer raakshasaputr ghatotkach maara gayaa. paandavashiviramen shok chhaaya hai, sabakee aankhonse aansoo vah rahe hain; keval shreekrishn prasann hain. ve baara-baar aanandase sinhanaad karate aur harshase jhoomakar naach uthate hain tatha arjunako gale lagaakar usakee peeth thonkate hain!

bhagavaanko itana prasann dekhakar arjunane poochha 'madhusoodan ! ghatotkachakee mrityuse apana saara parivaar shoka-saagaramen dooba hua hai. apanee saaree sena vimukh hokar bhaag rahee hai. aap is avasaramen itane prasann kyon hain? maamoolee kaaranase to aap aisa karate naheen; kya baat hai, kripaya bataaiye.'

bhagavaan shreekrishnane kahaa- 'arjuna! mere liye sachamuch aaj bada़e hee aanandaka avasar hai. ghatotkach to mara, par mera praanapriy arjun bach gayaa. mujhe iseekee prasannata hai. karnake paas kavach kundal the. unake rahate vah ajey tha, unako to indr maangakar le gaye. par indrakarnako ek aisee shakti de gaye, jisake unake paas rahate main sada tumhaare praanonko sankatamen hee maanata thaa. karn braahmanabhakt, satyavaadee, vratadhaaree, tapasvee aur shatruon par bhee daya karanevaale hain. iseeliye unako 'vrisha' ya 'dharma' kahate hain. unhen yon hee koee naheen maar sakata, phir 'shakti' rahate to maar hee kaun sakata thaa. karn us shaktise tumhen maarana chaahate the. aaj us shaktise ghatotkach maara gaya, ataev ab karnako mara hee samajho. iseese mujhe prasannata hai.

'rahee ghatotkachake maranekee baat, so maana ki ghatotkach apane gharaka bachcha tha aur mahaaveer bhee thaa; parantu vah paapaatma, braahmanadveshee aur yajnonka naash karanevaala thaa. aise khalonko bhee main svayan maarana chaahata hoon. isase usaka vinaash to mainne hee karavaaya hai. main to sada vaheen kreeda kiya karata hoon jahaan ved, saty, dam, pavitrata, dharm, kukrityamen lajja, shree, dhairy aurakshamaaka nivaas hai . iseeliye main paandavonke saath hoon. arjuna! tum mere praanapriy ho, aaj is prakaar tumhaare bach jaanese mujhe atyant harsh hai.' bhagavaan‌ke premapoorn vaakyonko sunakar arjun gadgad ho gaye. arjunaka samaadhaan ho gayaa.

phir saatyakine poochhaa- 'bhagavan! jab karnane vah amogh shakti arjunapar hee chhoda़neka nishchay kiya tha, tab use chhoda़a kyon naheen? arjun to nity hee samaraanganamen unake saamane pada़te the.' isapar bhagavaan shreekrishn bole- 'saatyake! duryodhan, duhshaasan, shakuni aur jayadratha- ye sabhee pratidin karnako yah salaah diya karate the ki tum is shaktika prayog keval arjunapar hee karanaa. arjunake maare jaanepar saare paandav aur srinjay aap hee mar jaayange aur karn bhee yah pratijna kar chuke the. ve pratidin hee us shaktike dvaaraamaaranekee baat sochate the, par jyon hee ve saamane aate ki main unako mohit kar detaa. yahee kaaran hai ki ve shaktika prayog arjunapar naheen kar sake. itanepar bhee saatyake! vah shakti arjunake liye mrityuroop hai | is chintaake maare main sada udaas rahata tha, mujhe raatako neend naheen aatee thee. ab vah shakti ghatotkachapar pada़kar nasht ho gayee. yah dekhakar mujhe lagata hai ki arjun mrityuke mukhase chhoot gaye. main yuddhamen arjunakee raksha karana jitanee aavashyak samajhata hoon, utanee pita, maata, tum jaise bhaaee aur apane praanonkee bhee raksha aavashyak naheen samajhataa. teenon lokonke raajyakee apeksha bhee koee durlabh vastu milatee ho to use bhee main arjunake bina naheen chaahataa. iseeliye aaj arjun maano marakar punah vaapas a gaye hain, yah dekhakar hee mujhe bada़a bhaaree harsh ho raha hai.' *

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