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संतकी सेवा-वृत्ति  [Short Story]
Story To Read - Moral Story (Hindi Story)

मिश्र देशके प्रसिद्ध संत सेरापियोकी त्याग वृत्ति उच्च कोटिकी थी। चौथी शताब्दीके संत-साहित्यमें उनका नाम अमित प्रसिद्ध है। वे सदा मोटे कपड़ेका चोगा पहनते थे और समय- समयपर दीन-दुखियोंकी सहायताके लिये उसे बेच दिया करते थे। कभी-कभी तो आवश्यकता पड़नेपर अपने-आपको भी निश्चित अवधिके लिये बेचकर गरीबोंको आर्थिक सहायता देते थे।

एक समय उनकी अपने घनिष्ठ मित्रसे भेंट हुई। वह उनको बिलकुल फटे हाल देखकर आश्चर्यचकित हो गया।

'भाई! आपको नंगा और भूखा रहनेके लिये कौन विवश कर दिया करता है?' मित्रने पूछा।

'यह बात पूछनेकी नहीं, समझनेकी है। गरीब और असहाय लोगोंकी आवश्यकताको देखकर मैं अपने आपको नहीं सम्हाल पाता। मेरी धर्म पुस्तकका आदेशहै कि दीन-दुखियोंकी सेवाके लिये अपनी सारी वस्तुएँ बेच डालो। मैंने भगवान्‌की आज्ञाके पालनको ही अपने जीवनका उद्देश्य बनाया है।' संतने मित्रका समाधान किया।

'पर आपकी वह धर्म-पुस्तक कहाँ है ?' मित्रका प्रश्न था।
'मैंने असहायोंकी आवश्यकताके लिये उसे भी बेच दिया है। जो पुस्तक परसेवाके लिये सारे सामान बेच देनेका आदेश देती है, समय पड़नेपर उसको भी बेचा जा सकता है। इससे दो लाभ हैं; पहला तो यह है कि जिसके हाथमें ऐसी दिव्य पुस्तक पड़ेगी, वह धन्य हो जायगा, उसकी त्याग-वृत्ति निखर उठेगी; और दूसरा यह कि पुस्तकके बदलेमें जो पैसे मिलेंगे, उनसे असहायों और दुखियों तथा अभावग्रस्त व्यक्तियोंकी ठीक-ठीक सेवा हो सकेगी।' सेरापियोने सरलता और विनम्रतासे उत्तर दिया।

- रा0 श्री0



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santakee sevaa-vritti

mishr deshake prasiddh sant seraapiyokee tyaag vritti uchch kotikee thee. chauthee shataabdeeke santa-saahityamen unaka naam amit prasiddh hai. ve sada mote kapada़eka choga pahanate the aur samaya- samayapar deena-dukhiyonkee sahaayataake liye use bech diya karate the. kabhee-kabhee to aavashyakata pada़nepar apane-aapako bhee nishchit avadhike liye bechakar gareebonko aarthik sahaayata dete the.

ek samay unakee apane ghanishth mitrase bhent huee. vah unako bilakul phate haal dekhakar aashcharyachakit ho gayaa.

'bhaaee! aapako nanga aur bhookha rahaneke liye kaun vivash kar diya karata hai?' mitrane poochhaa.

'yah baat poochhanekee naheen, samajhanekee hai. gareeb aur asahaay logonkee aavashyakataako dekhakar main apane aapako naheen samhaal paataa. meree dharm pustakaka aadeshahai ki deena-dukhiyonkee sevaake liye apanee saaree vastuen bech daalo. mainne bhagavaan‌kee aajnaake paalanako hee apane jeevanaka uddeshy banaaya hai.' santane mitraka samaadhaan kiyaa.

'par aapakee vah dharma-pustak kahaan hai ?' mitraka prashn thaa.
'mainne asahaayonkee aavashyakataake liye use bhee bech diya hai. jo pustak parasevaake liye saare saamaan bech deneka aadesh detee hai, samay paड़nepar usako bhee becha ja sakata hai. isase do laabh hain; pahala to yah hai ki jisake haathamen aisee divy pustak pada़egee, vah dhany ho jaayaga, usakee tyaaga-vritti nikhar uthegee; aur doosara yah ki pustakake badalemen jo paise milenge, unase asahaayon aur dukhiyon tatha abhaavagrast vyaktiyonkee theeka-theek seva ho sakegee.' seraapiyone saralata aur vinamrataase uttar diyaa.

- raa0 shree0

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