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विचित्र सहानुभूति  [Spiritual Story]
आध्यात्मिक कहानी - Hindi Story (हिन्दी कथा)

कोसलका राजा ब्रह्मदत्त प्रायः आखेटमें ही रहता था। जब वह शिकारमें निकलता था, तब उसके पीछे पीछे उसकी बड़ी भारी सेना तथा बहुत सी प्रजा भी जाती। इस तरह बहुत से वन्य जन्तुओं एवं मृग, पक्षियोंका भारी संहार प्रतिदिन होता ही रहता था ।

उन्हीं दिनों काशीके समीप मृगदाव नामक वन ( आधुनिक सारनाथ) में एक नन्दीय नामका मृग अपने माता-पिताके साथ सुखपूर्वक निवास करता था। उसे इस महासंहारसे बड़ा कष्ट हुआ। | उसने मृग-जन्तुओंकी एक सभा बुलायी। सबने निर्णय किया कि हममें से एक मृग प्रतिदिन राजासे मिलने स्वयं चला जाय। इससे वन्य मृगपक्षियोंका भयंकर संहार रुक जायगा, साथ ही बहुत कुछ शान्ति भी बनी रहेगी। निवेदित किये जानेपर राजाने भी इस प्रस्तावको स्वीकार कर लिया।

बहुत दिनोंके बाद नन्दीयकी बारी आयी। पर उसकी शान्ति और सौम्यभावने राजाका मन परिवर्तित कर दिया। वह उसके अस्वाभाविक चरित्रसे इतना प्रभावित हुआ कि उसके धनुष-बाण हाथमें ही रह गये, वह उनका संधान ही न कर सका।

नन्दीय बोला-'राजन्। तुम मुझे मारते क्यों नहीं ?'राजाने कहा- 'मृग ! तुममें बहुत-से दिव्य गुण हैं, तुम धर्मात्मा हो; मैं तुम्हें नहीं मार सकता। मैं तुम्हें पूर्ण आयुके उपभोगका सौभाग्य प्रदान करता हूँ।'

'राजन्! क्या तुम अवशेष मृगोंको इसी प्रकार अभय अथवा पूर्णायु उपभोगका सौभाग्य नहीं प्रदान कर सकते ?' मृग बोला !

'मैं अवश्य कर दूँगा' - राजाने कहा।

'और क्या तुम इन हवामें उड़नेवाले पक्षियों तथा जलमें रहनेवाली मछलियोंको भी इस प्रकारका आश्वासन नहीं दे सकते ?' मृगने पूछा ।

'अवश्यमेव!' राजा बोला।

तदनन्तर उसने दूतोंद्वारा सारे राज्यमें घोषणा करा दी कि अबसे सभी वन्य जन्तु, पक्षी एवं जलचरोंको अभयदान दिया जा रहा है। कोई भी व्यक्ति इनकी हिंसा न करे।

प्राचीन जातक कथाएँ बतलाती हैं कि गौतम बुद्धके पूर्वमें सौ अवतार हुए थे। मृगदावका यह नन्दीय मृग भी उन्हींमेंसे एक है। - जा0 श0

(जातक भाग 3, कथा 385, फ्रांसिस और वेलके अंग्रेजी

अनुवादसे)



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vichitr sahaanubhooti

kosalaka raaja brahmadatt praayah aakhetamen hee rahata thaa. jab vah shikaaramen nikalata tha, tab usake peechhe peechhe usakee bada़ee bhaaree sena tatha bahut see praja bhee jaatee. is tarah bahut se vany jantuon evan mrig, pakshiyonka bhaaree sanhaar pratidin hota hee rahata tha .

unheen dinon kaasheeke sameep mrigadaav naamak van ( aadhunik saaranaatha) men ek nandeey naamaka mrig apane maataa-pitaake saath sukhapoorvak nivaas karata thaa. use is mahaasanhaarase bada़a kasht huaa. | usane mriga-jantuonkee ek sabha bulaayee. sabane nirnay kiya ki hamamen se ek mrig pratidin raajaase milane svayan chala jaaya. isase vany mrigapakshiyonka bhayankar sanhaar ruk jaayaga, saath hee bahut kuchh shaanti bhee banee rahegee. nivedit kiye jaanepar raajaane bhee is prastaavako sveekaar kar liyaa.

bahut dinonke baad nandeeyakee baaree aayee. par usakee shaanti aur saumyabhaavane raajaaka man parivartit kar diyaa. vah usake asvaabhaavik charitrase itana prabhaavit hua ki usake dhanusha-baan haathamen hee rah gaye, vah unaka sandhaan hee n kar sakaa.

nandeey bolaa-'raajan. tum mujhe maarate kyon naheen ?'raajaane kahaa- 'mrig ! tumamen bahuta-se divy gun hain, tum dharmaatma ho; main tumhen naheen maar sakataa. main tumhen poorn aayuke upabhogaka saubhaagy pradaan karata hoon.'

'raajan! kya tum avashesh mrigonko isee prakaar abhay athava poornaayu upabhogaka saubhaagy naheen pradaan kar sakate ?' mrig bola !

'main avashy kar doongaa' - raajaane kahaa.

'aur kya tum in havaamen uda़nevaale pakshiyon tatha jalamen rahanevaalee machhaliyonko bhee is prakaaraka aashvaasan naheen de sakate ?' mrigane poochha .

'avashyameva!' raaja bolaa.

tadanantar usane dootondvaara saare raajyamen ghoshana kara dee ki abase sabhee vany jantu, pakshee evan jalacharonko abhayadaan diya ja raha hai. koee bhee vyakti inakee hinsa n kare.

praacheen jaatak kathaaen batalaatee hain ki gautam buddhake poorvamen sau avataar hue the. mrigadaavaka yah nandeey mrig bhee unheenmense ek hai. - jaa0 sha0

(jaatak bhaag 3, katha 385, phraansis aur velake angrejee

anuvaadase)

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