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परोपकार महान् धर्म  [बोध कथा]
हिन्दी कहानी - छोटी सी कहानी (हिन्दी कथा)

दुरात्मा रावणने मारीचको माया-मृग बननेके लिये बाध्य किया। मायासे स्वर्ण मृग बने मारीचका आखेट करने धनुष लेकर श्रीराम उसके पीछे गये। वह उन्हें दूर वनमें ले गया और अन्तमें जब उनके बाणसे मरा, तब मरते-मरते भी 'हा लक्ष्मण!' पुकारकर उसने छल किया। उस आर्तस्वरको सुनकर श्रीजानकी व्याकुल हो । गयीं। उनके आग्रहसे लक्ष्मणजीको अपने ज्येष्ठ भ्राताका पता लगाने वनमें जाना पड़ा। पञ्चवटीमें श्रीवैदेहीको अकेली देखकर रावण वहाँ आया और उसने बलपूर्वक उन जनककुमारीको रथमें बैठा लिया।

श्रीसीताजीको रथमें बैठाकर राक्षसराज रावण शीघ्रतासे भागा जा रहा था। वे श्रीमैथिली आर्त क्रन्दन कर रही थीं। उनकी वह आर्त क्रन्दन-ध्वनि पक्षिराज जटायुने भी सुनी। जटायु वृद्ध थे; उनको पता था कि रावण विश्वविजयी है, अत्यन्त क्रूर है और ब्रह्माजीके वरदानके प्रभावसे अमेयप्राय है। जटायु समझते थे कि वे न रावणको मार सकते हैं न पराजित कर सकते हैं। श्रीजनकनन्दिनीको वे छुड़ा सकेंगे उस क्रूर राक्षससे, इसकी कोई आशा न उन्हें थी न हो सकती थी। उलटे रावणका विरोध करनेपर मृत्यु निश्चित थी। परंतु सफलता विफलतायें चित्तको समान रखकर प्राणीको अपने कर्तव्यका दृढ़तासे पालन करना चाहिये। यही जटायुने किया। वे पूरे वेगसे रावणपर टूट पड़े। उसका रथ अपने आघातोंसे तोड़ डाला। अपने पंजों तथा चोंचकी मारसे रावणके शरीरको नोच डाला। पर अन्तमें रावणने तलवार निकालकर उनके पंख काट दिये। जटायु भूमिपर गिर पड़े। रावण श्रीजानकीको लेकर आकाश मार्गसे चला गया।मारीचको मारकर श्रीराम लौटे। लक्ष्मण उन्हें मार्गमें ही मिल गये कुटियामें श्रीजानकीको न देखकर वे व्याकुल हो गये। नाना प्रकारका विलाप करते हुए वैदेहीको ढूँढ़ते आगे बढ़े। मार्गमें उनकी प्रतीक्षा करते जरायु अन्तिम स्थितिमें मृत्युके क्षण गिन रहे थे। मर्यादापुरुषोत्तमको उन्होंने विदेह- नन्दिनीका समाचार दिया। उस दिन श्रीराघवेन्द्रने नरनाट्य त्यागकर कहा 'तात! आप अपने शरीरको रखें मैं आपको अभी स्वस्थ कर दूँगा।'

जटायु इसे कैसे स्वीकार कर लेते। श्रीराम सम्मुख खड़े हों, मृत्युके लिये ऐसा सौभाग्यशाली क्षण क्या बार-बार प्राप्त होता है? वे त्रिभुवनके स्वामी जटायुको गोदमें लेकर अपनी जटाओंसे उनके रकमें सने शरीरकी धूलि पाँछ रहे थे, उन्हें अपने अधुओंसे आन करा रहे थे। वे अनुभव कर रहे थे कि सर्वसमर्थ होनेपर भी वे जटायुको कुछ नहीं दे सकते। नेत्रोंमें अश्रु भरकर उन श्रीराघवेन्द्रने कहा-

'तात कर्म निज तें गति पाई ॥

परहित बस जिन्ह के मन माहीं।

तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥'

'जटायु तुमने तो अपने कर्मसे ही परमगति प्राप्त कर ली है। तुम पूर्णकाम हो गये हो, तुम्हें मैं दे क्या सकता हूँ।'

शरीर त्यागकर जटायु जब चतुर्भुज दिव्य भगवत्पाद देहसे वैकुण्ठ चले गये, तब श्रीरामने अपने हाथों उनके उस गोधदेहका बड़े सम्मानपूर्वक अग्नि-संस्कार किया।

-सु0 सिं0 (रामचरितमानस, अरण्यकाण्ड),



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paropakaar mahaan dharma

duraatma raavanane maareechako maayaa-mrig bananeke liye baadhy kiyaa. maayaase svarn mrig bane maareechaka aakhet karane dhanush lekar shreeraam usake peechhe gaye. vah unhen door vanamen le gaya aur antamen jab unake baanase mara, tab marate-marate bhee 'ha lakshmana!' pukaarakar usane chhal kiyaa. us aartasvarako sunakar shreejaanakee vyaakul ho . gayeen. unake aagrahase lakshmanajeeko apane jyeshth bhraataaka pata lagaane vanamen jaana pada़aa. panchavateemen shreevaideheeko akelee dekhakar raavan vahaan aaya aur usane balapoorvak un janakakumaareeko rathamen baitha liyaa.

shreeseetaajeeko rathamen baithaakar raakshasaraaj raavan sheeghrataase bhaaga ja raha thaa. ve shreemaithilee aart krandan kar rahee theen. unakee vah aart krandana-dhvani pakshiraaj jataayune bhee sunee. jataayu vriddh the; unako pata tha ki raavan vishvavijayee hai, atyant kroor hai aur brahmaajeeke varadaanake prabhaavase ameyapraay hai. jataayu samajhate the ki ve n raavanako maar sakate hain n paraajit kar sakate hain. shreejanakanandineeko ve chhuda़a sakenge us kroor raakshasase, isakee koee aasha n unhen thee n ho sakatee thee. ulate raavanaka virodh karanepar mrityu nishchit thee. parantu saphalata viphalataayen chittako samaan rakhakar praaneeko apane kartavyaka dridha़taase paalan karana chaahiye. yahee jataayune kiyaa. ve poore vegase raavanapar toot pada़e. usaka rath apane aaghaatonse toda़ daalaa. apane panjon tatha chonchakee maarase raavanake shareerako noch daalaa. par antamen raavanane talavaar nikaalakar unake pankh kaat diye. jataayu bhoomipar gir pada़e. raavan shreejaanakeeko lekar aakaash maargase chala gayaa.maareechako maarakar shreeraam laute. lakshman unhen maargamen hee mil gaye kutiyaamen shreejaanakeeko n dekhakar ve vyaakul ho gaye. naana prakaaraka vilaap karate hue vaideheeko dhoonढ़te aage badha़e. maargamen unakee prateeksha karate jaraayu antim sthitimen mrityuke kshan gin rahe the. maryaadaapurushottamako unhonne videha- nandineeka samaachaar diyaa. us din shreeraaghavendrane naranaaty tyaagakar kaha 'taata! aap apane shareerako rakhen main aapako abhee svasth kar doongaa.'

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'taat karm nij ten gati paaee ..

parahit bas jinh ke man maaheen.

tinh kahun jag durlabh kachhu naaheen ..'

'jataayu tumane to apane karmase hee paramagati praapt kar lee hai. tum poornakaam ho gaye ho, tumhen main de kya sakata hoon.'

shareer tyaagakar jataayu jab chaturbhuj divy bhagavatpaad dehase vaikunth chale gaye, tab shreeraamane apane haathon unake us godhadehaka bada़e sammaanapoorvak agni-sanskaar kiyaa.

-su0 sin0 (raamacharitamaanas, aranyakaanda),

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