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भगवान् नारायणका भजन ही सार है  [छोटी सी कहानी]
हिन्दी कथा - प्रेरक कहानी (Story To Read)

महान संत श्रीविष्णुचित पेरियार बाल्यकालमे हो भगवद्भक्तिके चिह्न दीखने लगे थे यज्ञोपवीत संस्कार होनेके बाद ही बालकने बिना जाने-पहचाने अपना तन-मन और प्राण भगवान् श्रीनारायणके चरणों में समर्पित कर दिया था। श्रीनारायणके रूपका ध्यान, उनके नामका जप तथा श्रीविष्णुसहस्रनामका गायन वे किया करते थे। युवावस्था में पदार्पण करते ही उन्होंने अपनी समस्त सम्पत्ति बेचकर एक उर्वरा भूमि ले ली और उसमें एक सुन्दर बगीचा लगाया। प्रतिदिन वे प्रातः काल उठकर 'नारायण' नामका जप करते हुए पुष्प - चयन करते और उसकी माला बनाकर भगवान् नारायणको पहनाते और मन ही मन प्रसन्न होते। एक दिन रात्रिमें उन्हें श्रीनारायणने स्वप्रमें कहा- "तुम मदुराके धर्मात्मा राजा बलदेवसे मिलो, यहाँ सब धर्मोक लोग एकत्र होंगे। वहाँ जाकर तुम मेरे प्रेम और ठिका प्रचार करो। तुम वहाँ भगवान्‌ सविशेष रूपकी उपासना ही आनन्द प्राप्त करनेका सच्चा और सरल मार्ग है' यह प्रमाणित कर दो।" विष्णुचित्त भगवान्‌का आदेश पाकर प्रसन्नतासे खिल उठे। वे बोले, 'प्रभो! मैं अभी मदुराके लियेप्रस्थान करता हूँ; किंतु मुझे शास्त्रोंका किंचित् भी ज्ञान नहीं। आपके चरणोंको अपने हृद्देशमें विराजितकर मैं सभामें जा रहा हूँ। आप जैसा चाहें, यन्त्रवत् मुझसे करा लें ।' विष्णुचित्त मदुरा चले बलदेव नामक राजा मदुरा और तिन्नेवेली जिलोंपर शासन करते थे। उन्हें प्रजाके सुखका अत्यधिक ध्यान था। इसी कारण वे कभी-कभी अपना वेश बदलकर रात्रिमें घूमा करते थे। एक दिन रात्रिमें घूमते हुए उन्होंने • वृक्षके नीचे विश्राम करते हुए एक ब्राह्मणको देखा। राजाने उनसे परिचय पूछा और ब्राह्मणने बताया कि मैं गङ्गा-स्नान करने गया था और अब सेठू नदीमें स्नान करनेके लिये जा रहा हूँ । रातभर विश्राम करनेके लिये | यहाँ ठहर गया हूँ। राजाने उनसे कुछ अनुभवकी बात पूछी। ब्राह्मणने कहा-

वर्षार्थमष्टौ प्रयतेत मासान् निशार्थमर्थं दिवसं यतेत ।

वार्द्धक्यहेतोर्वयसा नवेन परत्र हेतोरिहजन्मना च ॥

राजाके पूछनेपर उन्होंने अर्थ किया- 'मनुष्यको चाहिये कि आठ महीनेतक खूब परिश्रम करे, जिससे वह वर्षा ऋतु सुखपूर्वक खा सके; दिनभर इसलियेपरिश्रम करे कि रातको सुखकी नींद सो सके; जवानीमें बुढ़ापेके लिये संग्रह करे और इस जन्ममें परलोकके लिये कमाई करे।'

इस उपदेशसे राजा बहुत प्रभावित हुए। ब्राह्मणने उनके मनमें भक्तिका बीज डाल दिया था। लौटकर उन्होंने समस्त धर्मोके आचार्योंको एकत्रकर उपर्युक्त निश्चय किया था, जिससे उन्हें संतोंका सङ्ग एवं उनका उपदेश सुननेका अवसर मिल जाय।

पण्डित - मण्डलीमें विष्णुचित्त शान्तभावसे भगवान् श्रीनारायणका स्मरण करते हुए बैठे। उन्होंने सबकी शङ्काओं का बड़े ही सरल शब्दोंमें समाधान कर दिया। उनका प्रभाव सबपर पड़ा। उन्होंने विस्तारसे समझाया'भगवान् श्रीनारायण ही सृष्टिके निर्माता, पालक एवं प्रलयकालमें समेट लेनेवाले हैं। वे ही सर्वोपरि देव हैं। सर्वतोभावेन अपना जीवन उनके चरणप्रान्तमें अर्पित कर देना ही कल्याणका एकमात्र मार्ग है। वे ही हमारे रक्षक हैं। महात्मा पुरुषोंकी रक्षा एवं दुष्टोंका दलन करनेके लिये वे ही समय-समयपर पृथ्वीपर अवतरित होकर धर्म-संस्थापनका कार्य करते हैं। इस मायामय जगत्से त्राण पानेके लिये विश्वासपूर्वक उनपर तन-मन न्योछावरकर उनकी आराधना करनी चाहिये। उनके नामका जप एवं उनके गुणोंका गान करना चाहिये ।

भगवान् नारायणका भजन ही जीवनका सार है। इनके दिव्य उपदेशसे सभी प्रभावित हुए और भगवान् नारायणकी भक्तिमें लग गये। - शि0 दु0



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bhagavaan naaraayanaka bhajan hee saar hai

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vaarddhakyahetorvayasa naven paratr hetorihajanmana ch ..

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is upadeshase raaja bahut prabhaavit hue. braahmanane unake manamen bhaktika beej daal diya thaa. lautakar unhonne samast dharmoke aachaaryonko ekatrakar uparyukt nishchay kiya tha, jisase unhen santonka sang evan unaka upadesh sunaneka avasar mil jaaya.

pandit - mandaleemen vishnuchitt shaantabhaavase bhagavaan shreenaaraayanaka smaran karate hue baithe. unhonne sabakee shankaaon ka bada़e hee saral shabdonmen samaadhaan kar diyaa. unaka prabhaav sabapar pada़aa. unhonne vistaarase samajhaayaa'bhagavaan shreenaaraayan hee srishtike nirmaata, paalak evan pralayakaalamen samet lenevaale hain. ve hee sarvopari dev hain. sarvatobhaaven apana jeevan unake charanapraantamen arpit kar dena hee kalyaanaka ekamaatr maarg hai. ve hee hamaare rakshak hain. mahaatma purushonkee raksha evan dushtonka dalan karaneke liye ve hee samaya-samayapar prithveepar avatarit hokar dharma-sansthaapanaka kaary karate hain. is maayaamay jagatse traan paaneke liye vishvaasapoorvak unapar tana-man nyochhaavarakar unakee aaraadhana karanee chaahiye. unake naamaka jap evan unake gunonka gaan karana chaahiye .

bhagavaan naaraayanaka bhajan hee jeevanaka saar hai. inake divy upadeshase sabhee prabhaavit hue aur bhagavaan naaraayanakee bhaktimen lag gaye. - shi0 du0

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