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रामूकी तीर्थयात्रा  [Short Story]
बोध कथा - Spiritual Story (Story To Read)

एक संत किसी प्रसिद्ध तीर्थस्थानपर गये थे। वहाँ एक दिन वे तीर्थ स्नान करके रातको मन्दिरके पास सोये थे। उन्होंने स्वप्रमें देखा दो तीर्थ-देवता आपसमें बातें कर रहे हैं। एकने पूछा

'इस वर्ष कितने नर-नारी तीर्थमें आये ?''लगभग छः लाख आये होंगे।' दूसरेने उत्तर दिया। 'क्या भगवान्ने सबकी सेवा स्वीकार कर ली ?' 'तीर्थके माहात्म्यकी बात तो जुदी है, नहीं तो उनमें बहुत ही कम ऐसे होंगे जिनकी सेवा स्वीकृत हुई हो।'

'ऐसा क्यों ?'

'इसीलिये कि भगवान्में श्रद्धा रखकर पवित्र | भावसे तीर्थ करने बहुत थोड़े ही लोग आये, उन्होंने भी तीर्थों में नाना प्रकारके पाप किये।' 'कोई ऐसा भी मनुष्य है जो कभी तीर्थ नहीं गया, परंतु जिसको तीर्थोंका फल प्राप्त हो गया हो और जिसपर प्रभुकी प्रसन्नता बरस रही हो ?'

'कई होंगे, एकका नाम बताता हूँ, वह है रामू चमार, यहाँसे बहुत दूर केरल देशमें रहता है।'

इतनेमें संतकी नींद टूट गयी। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और इच्छा हुई केरल देशमें जाकर भाग्यवान् रामू | चमारका दर्शन करनेकी। संत उत्साही और दृढनिश्चयी तो होते ही हैं, चल दिये और बड़ी कठिनतासे केरल पहुँचे। पता लगाते-लगाते एक गाँवमें रामूका घर मिल गया। संतको आया देखकर रामू बाहर आया। संतने पूछा- 'क्या करते हो, भैया ?'

'जूते बनाकर बेचता हूँ, महाराज!' रामूने उत्तर दिया। 'तुमने कभी तीर्थयात्रा भी की है ?'

'नहीं, महाराज! मैं गरीब आदमी-पैसा कहाँसे लाता तीर्थयात्राके लिये। यात्राका मन तो था परंतु जा सका नहीं।'

'तुमने और कोई बड़ा पुण्य किया है ?'

'ना, मैं नीच पुण्य कहाँसे करता । ' तब संतने अपना स्वप्र सुनाकर उससे पूछा "फिर भगवान्की इतनी कृपा तुमपर कैसे हुई ?' भगवान् तो दयालु होते ही हैं, उनकी कृपादीनोंपर विशेष होती है। (इतना कहते-कहते वह गद्गद हो गया, फिर बोला ) महाराज! मेरे मनमें वर्षोंसे तीर्थ-यात्राकी चाह थी। बहुत मुश्किलसे पेटको खाली रख-रखकर मैंने कुछ पैसे बचाये थे, मैं तीर्थ यात्राके लिये जानेवाला ही था कि मेरी स्त्री गर्भवती हो गयी। एक दिन पड़ोसीके घरसे मेथीकी सुगन्ध आयी। मेरी स्त्रीने कहा-मेरी इच्छा है मेथीका साग खाऊँ; पड़ोसीके यहाँ बन रहा है, जरा माँग लाओ। मैंने जाकर साग माँगा। पड़ोसिन बोली-'ले जाइये, परंतु है यह बहुत अपवित्र। हमलोग सात दिनोंसे सब-के-सब भूखे थे, प्राण जा रहे थे। एक जगह एक मुर्देपर चढ़ाकर साग फेंका गया था। वही मेरे पति बीन लाये। उसीको मैं पका रही हूँ।' (रामू फिर गद्गद होकर कहने लगा-) मैं उसकी बात सुनकर काँप गया। मेरे मनमें आया, पड़ोसी सात-सात दिनोंतक भूखे रहें और हम पैसे बटोरकर तीर्थयात्रा करने जायँ ? यह तो ठीक नहीं है। मैंने बटोरे हुए सब पैसे आदरके साथ उनको दे दिये। वह परिवार अन्न-वस्त्रसे सुखी हो गया। रातको भगवान्ने स्वप्रमें दर्शन देकर कहा-'बेटा! तुझे सब तीर्थोंका फल मिल गया, तुझपर मेरी कृपा बरसेगी।' महाराज! तबसे मैं सचमुच सुखी हो गया। अब मैं तीर्थस्वरूप भगवान्को अपनी आँखोंके सामने ही निरन्तर देखा करता हूँ और बड़े आनन्दसे दिन कट रहे हैं। " रामूकी बात सुनकर संत रो पड़े। उन्होंने कहा सचमुच तीर्थयात्रा तो तूने ही की है।



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raamookee teerthayaatraa

ek sant kisee prasiddh teerthasthaanapar gaye the. vahaan ek din ve teerth snaan karake raatako mandirake paas soye the. unhonne svapramen dekha do teertha-devata aapasamen baaten kar rahe hain. ekane poochhaa

'is varsh kitane nara-naaree teerthamen aaye ?''lagabhag chhah laakh aaye honge.' doosarene uttar diyaa. 'kya bhagavaanne sabakee seva sveekaar kar lee ?' 'teerthake maahaatmyakee baat to judee hai, naheen to unamen bahut hee kam aise honge jinakee seva sveekrit huee ho.'

'aisa kyon ?'

'iseeliye ki bhagavaanmen shraddha rakhakar pavitr | bhaavase teerth karane bahut thoda़e hee log aaye, unhonne bhee teerthon men naana prakaarake paap kiye.' 'koee aisa bhee manushy hai jo kabhee teerth naheen gaya, parantu jisako teerthonka phal praapt ho gaya ho aur jisapar prabhukee prasannata baras rahee ho ?'

'kaee honge, ekaka naam bataata hoon, vah hai raamoo chamaar, yahaanse bahut door keral deshamen rahata hai.'

itanemen santakee neend toot gayee. unhen bada़a aashchary hua aur ichchha huee keral deshamen jaakar bhaagyavaan raamoo | chamaaraka darshan karanekee. sant utsaahee aur dridhanishchayee to hote hee hain, chal diye aur bada़ee kathinataase keral pahunche. pata lagaate-lagaate ek gaanvamen raamooka ghar mil gayaa. santako aaya dekhakar raamoo baahar aayaa. santane poochhaa- 'kya karate ho, bhaiya ?'

'joote banaakar bechata hoon, mahaaraaja!' raamoone uttar diyaa. 'tumane kabhee teerthayaatra bhee kee hai ?'

'naheen, mahaaraaja! main gareeb aadamee-paisa kahaanse laata teerthayaatraake liye. yaatraaka man to tha parantu ja saka naheen.'

'tumane aur koee bada़a puny kiya hai ?'

'na, main neech puny kahaanse karata . ' tab santane apana svapr sunaakar usase poochha "phir bhagavaankee itanee kripa tumapar kaise huee ?' bhagavaan to dayaalu hote hee hain, unakee kripaadeenonpar vishesh hotee hai. (itana kahate-kahate vah gadgad ho gaya, phir bola ) mahaaraaja! mere manamen varshonse teertha-yaatraakee chaah thee. bahut mushkilase petako khaalee rakha-rakhakar mainne kuchh paise bachaaye the, main teerth yaatraake liye jaanevaala hee tha ki meree stree garbhavatee ho gayee. ek din pada़oseeke gharase metheekee sugandh aayee. meree streene kahaa-meree ichchha hai metheeka saag khaaoon; pada़oseeke yahaan ban raha hai, jara maang laao. mainne jaakar saag maangaa. pada़osin bolee-'le jaaiye, parantu hai yah bahut apavitra. hamalog saat dinonse saba-ke-sab bhookhe the, praan ja rahe the. ek jagah ek murdepar chadha़aakar saag phenka gaya thaa. vahee mere pati been laaye. useeko main paka rahee hoon.' (raamoo phir gadgad hokar kahane lagaa-) main usakee baat sunakar kaanp gayaa. mere manamen aaya, pada़osee saata-saat dinontak bhookhe rahen aur ham paise batorakar teerthayaatra karane jaayan ? yah to theek naheen hai. mainne batore hue sab paise aadarake saath unako de diye. vah parivaar anna-vastrase sukhee ho gayaa. raatako bhagavaanne svapramen darshan dekar kahaa-'betaa! tujhe sab teerthonka phal mil gaya, tujhapar meree kripa barasegee.' mahaaraaja! tabase main sachamuch sukhee ho gayaa. ab main teerthasvaroop bhagavaanko apanee aankhonke saamane hee nirantar dekha karata hoon aur bada़e aanandase din kat rahe hain. " raamookee baat sunakar sant ro pada़e. unhonne kaha sachamuch teerthayaatra to toone hee kee hai.

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ऊँचे स्वर से गए,