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भगवान् लूट लिये गये  [Shikshaprad Kahani]
छोटी सी कहानी - शिक्षदायक कहानी (Shikshaprad Kahani)

भक्त नीलन्-तिरुमंगैयाळवार भगवान् के दास्यभावके उपासक थे। ये वाणविद्यामें अत्यन्त कुशल और योद्धा थे चोदेशके राजाने इनकी वीरतासे प्रभावित होकर इन्हें अपने सेनापतिके पदपर प्रतिष्ठित किया था।

ये दक्षिणके तिरुवालि नामक क्षेत्रमें रहनेवाली कुमुदवल्ली नामक सुन्दरी कन्यासे विवाह करना चाहते थे। उस लावण्यवतीसे विवाह करनेके लिये कितने ही बड़े राजा भी इच्छुक थे। कुमुदवल्लीका पालन एक भक्तने किया था। यह नारायणकी भक्ता थी। नीलन्‌के आग्रहपर उसने उत्तर दिया- 'विष्णु-भक्तसे ही मेरा विवाह हो सकता है।' उत्तर सुनकर नीलन एक वैष्णव भक्तसे दीक्षित होकर उसके सम्मुख उपस्थित हो गये। कुमुदवल्लौने कहा 'मुझसे विवाह करनेके लिये इतना ही पर्याप्त नहीं। एक वर्षतक प्रतिदिन एक सहस्र आठ भक्तोंको भोजन कराकर उनका प्रसाद लाकर मुझे देना होगा।' नीलन्ने यह भी स्वीकार किया और उन दोनोंका विवाह हो गया। प्रतिदिन एक सहस्र आठ भक्त भोजन करने लगे। इससे नीलन्के जीवनमें महान् परिवर्तन होने लगा। उनका मन धीरे-धीरे भगवान् नारायणके चरणोंमें अनुरक्त होने लगा और पहलेकी अपेक्षा अत्यधिक प्रेमसे ये भक्तोंकी सेवा करने लगे। पर सम्पत्ति कितने दिन साथ देती। वह समाप्त हो गयी। यहाँतक कि चोळदेशके राजाको वार्षिक कर देनेके लिये जो रुपया बचा था, वह भी खर्च हो गया। नरेशको पता चला तो उन्होंने इनके विरुद्ध सेना भेज दी। पर इनकी वीरताके सम्मुख सेना टिक न सकी, भाग गयी। दूसरी बार राजाने बड़ी वाहिनी भेजी, वह भी इनके सम्मुख नहीं टिक सकती थी पर उनकी वीरताकी प्रशंसा करके राजाने संधिका प्रस्ताव रखा और कर न देनेके कारण इनको कारावासमें डाल दिया। ये एक सहस्र आठ भक्तोंको भोजन करानेका व्रत भङ्ग नहीं करना चाहते थे और कारागारमें इसकी व्यवस्था सम्भव नहीं थी इस कारण ये उपवास करने लगे। भक्तप्राणधन भगवान्ने उन्हें स्वप्रमें दर्शन देकर कहा "काशीनगरीमें वेगवती नदी के तटपर अमुक स्थानमें विपुल सम्पत्ति गाड़ी हुई है, उससे 'कर' देकर अपना सेवाकार्य चालू कर सकते हो।" नीलन्ने नरेशसे वहाँ जाकर करदेनेकी बात कही तो राजाने कई अधिकारियों वहाँ जाने दिया। निर्दिष्ट स्थानपर विपुल धनराशि ि नीलन्ने व्याजसहित राजाको कर दे दिया और भ भोजन एवं भजनका कार्यक्रम चलने लगा। काञ्चीमे भगवान् वरदराजने नीलन‌को दर्शन दिये और चोदेशके नरेशको भी निश्चय हो गया कि नीलन् असाधारण पुरुष और भगवान्के भक्त हैं। उन्होंने नीलन्से क्षमायाचना की।

भक्तोंको भोजन करानेमें दम्पतिका उत्साह और बढ़ा पर सम्पत्ति पुनः समाप्त हो गयी। अब आयका कोई मार्ग नहीं था इन्होंने भक्तोंकी सेवाके लिये धनवानों को लूटना आरम्भ किया। जहाँ कहीं धनवान् मिलता, इनका दल उसपर टूट पड़ता और ये उसका धन लेकर दीन-असहाय और भगवान के भक्तोंमें वितरित कर देते। किंतु भगवान्को यह मार्ग अनुचित प्रतीत हुआ। एक दिन भगवान् श्रीलक्ष्मी नारायण एक धनवान् दम्पतिके रूपमें मार्गसे निकले कि इनका दल उनपर टूट पड़ा, वे लूट लिये गये। होरे-मोती आदि लाखोंका माल गठरी में बांधा गया, पर नील उनके साथियोंके उठानेपर भी वह गठरी उठ नहीं सकी। नीलन्ने खीझकर कहा-इसने किसी जादूसे इसे भारी कर दिया है। दम्पतिसे बोले- 'मुझे भी जादू बता दो. अन्यथा तुम्हारा कल्याण नहीं।' पुरुषने कानमें भीसे कहा

*ॐ नमो नारायणाय' मन्त्र कानमें पड़ते ही नीलनको विचित्र दशा हो गयी। उनके शरीरमें जैसे विद्युत्-धारा प्रविष्ट हो गयी। उन्होंने आँख खोलकर देखा तो सामने कोई नहीं था। उनकी दृष्टि ऊपर उठी। वहाँ गरुड़पर भगवान् श्रीलक्ष्मीनारायण विराजित थे। नीलन्‌का हृदय भर आया। वे बिक गये। भगवान्‌की अद्भुत कृपा, उनका अतुलित स्नेह! वे कुछ सोच ही नहीं पाते। लगे करुण क्रंदन करने और भगवान्की प्रार्थना करने। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान् | कहा – 'प्रिय नीलन् मैं तुमपर प्रसन्न हूँ। तुम मनमें ग्लानि न करो। अब तुम श्रीरङ्गम् जाकर वहाँके मन्दिरको पूर्ण करवाओं और भजनकी पुष्पमालाओंसे मेरी पूजा करो। आजीवन मेरी भक्ति और मेरे प्रेमका प्रचार करो। शरीर त्यागके अनन्तर मेरे धाममें पुनः मुझसे मिलोगे।'

- शि0 दु0



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bhagavaan loot liye gaye

bhakt neelan-tirumangaiyaalavaar bhagavaan ke daasyabhaavake upaasak the. ye vaanavidyaamen atyant kushal aur yoddha the chodeshake raajaane inakee veerataase prabhaavit hokar inhen apane senaapatike padapar pratishthit kiya thaa.

ye dakshinake tiruvaali naamak kshetramen rahanevaalee kumudavallee naamak sundaree kanyaase vivaah karana chaahate the. us laavanyavateese vivaah karaneke liye kitane hee bada़e raaja bhee ichchhuk the. kumudavalleeka paalan ek bhaktane kiya thaa. yah naaraayanakee bhakta thee. neelan‌ke aagrahapar usane uttar diyaa- 'vishnu-bhaktase hee mera vivaah ho sakata hai.' uttar sunakar neelan ek vaishnav bhaktase deekshit hokar usake sammukh upasthit ho gaye. kumudavallaune kaha 'mujhase vivaah karaneke liye itana hee paryaapt naheen. ek varshatak pratidin ek sahasr aath bhaktonko bhojan karaakar unaka prasaad laakar mujhe dena hogaa.' neelanne yah bhee sveekaar kiya aur un dononka vivaah ho gayaa. pratidin ek sahasr aath bhakt bhojan karane lage. isase neelanke jeevanamen mahaan parivartan hone lagaa. unaka man dheere-dheere bhagavaan naaraayanake charanonmen anurakt hone laga aur pahalekee apeksha atyadhik premase ye bhaktonkee seva karane lage. par sampatti kitane din saath detee. vah samaapt ho gayee. yahaantak ki choladeshake raajaako vaarshik kar deneke liye jo rupaya bacha tha, vah bhee kharch ho gayaa. nareshako pata chala to unhonne inake viruddh sena bhej dee. par inakee veerataake sammukh sena tik n sakee, bhaag gayee. doosaree baar raajaane bada़ee vaahinee bhejee, vah bhee inake sammukh naheen tik sakatee thee par unakee veerataakee prashansa karake raajaane sandhika prastaav rakha aur kar n deneke kaaran inako kaaraavaasamen daal diyaa. ye ek sahasr aath bhaktonko bhojan karaaneka vrat bhang naheen karana chaahate the aur kaaraagaaramen isakee vyavastha sambhav naheen thee is kaaran ye upavaas karane lage. bhaktapraanadhan bhagavaanne unhen svapramen darshan dekar kaha "kaasheenagareemen vegavatee nadee ke tatapar amuk sthaanamen vipul sampatti gaada़ee huee hai, usase 'kara' dekar apana sevaakaary chaaloo kar sakate ho." neelanne nareshase vahaan jaakar karadenekee baat kahee to raajaane kaee adhikaariyon vahaan jaane diyaa. nirdisht sthaanapar vipul dhanaraashi i neelanne vyaajasahit raajaako kar de diya aur bh bhojan evan bhajanaka kaaryakram chalane lagaa. kaancheeme bhagavaan varadaraajane neelana‌ko darshan diye aur chodeshake nareshako bhee nishchay ho gaya ki neelan asaadhaaran purush aur bhagavaanke bhakt hain. unhonne neelanse kshamaayaachana kee.

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- shi0 du0

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