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जिह्वाको वशमें रखना चाहिये  [हिन्दी कथा]
हिन्दी कथा - Spiritual Story (Hindi Story)

श्रीमहादेव गोविन्द रानडेके यहाँ एक दिन उनके अ किसी मित्रने आम भेजे। श्रीरानडेकी पत्नी रमाबाईने वे आम धोकर, बनाकर रानडेके सम्मुख रखे । रानडेने आमके दो-एक टुकड़े खाकर उनके स्वादकी प्रशंसा की और कहा - 'इसे तुम भी खाकर देखो और सेवकोंको भी देना ।'

रमाबाईको आश्चर्य हुआ कि उनके पतिदेवनेआमके केवल दो-तीन टुकड़े ही क्यों खाये ? उन्होंने पूछा- 'आपका स्वास्थ्य तो ठीक है ?'

रानडे हँसे - 'तुम यही तो पूछती हो कि आम स्वादिष्ट हैं, सुपाच्य हैं तो मैं अधिक क्यों नहीं लेता ? देखो, ये मुझे बहुत स्वादिष्ट लगे, इसलिये मैं अधिक नहीं लेता ।'

यह अच्छा उत्तर है कि स्वादिष्ट लगता है, इसलियेअधिक नहीं लेना है ! पतिकी यह अटपटी बात रमाबाई | समझ नहीं सकीं। रानडेने कहा-' -"तुम्हारी समझमें मेरी बात नहीं आती दीखती। देखो, बचपनमें जब मैं बंबई में पढ़ता था, तब मेरे पड़ोसमें एक महिला रहती थीं। वे पहिले सम्पन्न परिवारकी सदस्या रह चुकी थीं, किंतु भाग्यके फेरसे सम्पत्ति नष्ट हो गयी थी। किसी प्रकार अपना और पुत्रका निर्वाह हो, इतनी आय रही थी। वे अनेक बार जब अकेली होतीं, तब अपने-आप कहती थीं—'मेरी जीभ बहुत चटोरी हो गयी है। इसे बहुत समझाती हूँ कि अब चार-छः साग मिलनेके दिन गये।अनेक प्रकारकी मिठाइयाँ अब दुर्लभ हैं। पकवानोंका स्मरण करनेसे कोई लाभ नहीं। फिर भी मेरी जीभ मानती नहीं। मेरा बेटा रूखी-सूखी खाकर पेट भर लेता है, किंतु दो-तीन साग बनाये बिना मेरा पेट नहीं भरता।"

श्रीरानडेने यह घटना सुनाकर बताया- - 'पड़ोसमें रहनेके कारण उस महिलाकी बातें मैंने बार-बार सुनीं। मैंने तभीसे नियम बना लिया कि जीभ जिस पदार्थको पसंद करे, उसे बहुत ही थोड़ा खाना। जीभके वशमें न होना। यदि उस महिलाके समान दुःख न भोगना हो तो जीभको वशमें रखना चाहिये।' -सु0 सिं0



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jihvaako vashamen rakhana chaahiye

shreemahaadev govind raanadeke yahaan ek din unake kisee mitrane aam bheje. shreeraanadekee patnee ramaabaaeene ve aam dhokar, banaakar raanadeke sammukh rakhe . raanadene aamake do-ek tukada़e khaakar unake svaadakee prashansa kee aur kaha - 'ise tum bhee khaakar dekho aur sevakonko bhee dena .'

ramaabaaeeko aashchary hua ki unake patidevaneaamake keval do-teen tukada़e hee kyon khaaye ? unhonne poochhaa- 'aapaka svaasthy to theek hai ?'

raanade hanse - 'tum yahee to poochhatee ho ki aam svaadisht hain, supaachy hain to main adhik kyon naheen leta ? dekho, ye mujhe bahut svaadisht lage, isaliye main adhik naheen leta .'

yah achchha uttar hai ki svaadisht lagata hai, isaliyeadhik naheen lena hai ! patikee yah atapatee baat ramaabaaee | samajh naheen sakeen. raanadene kahaa-' -"tumhaaree samajhamen meree baat naheen aatee deekhatee. dekho, bachapanamen jab main banbaee men padha़ta tha, tab mere pada़osamen ek mahila rahatee theen. ve pahile sampann parivaarakee sadasya rah chukee theen, kintu bhaagyake pherase sampatti nasht ho gayee thee. kisee prakaar apana aur putraka nirvaah ho, itanee aay rahee thee. ve anek baar jab akelee hoteen, tab apane-aap kahatee theen—'meree jeebh bahut chatoree ho gayee hai. ise bahut samajhaatee hoon ki ab chaara-chhah saag milaneke din gaye.anek prakaarakee mithaaiyaan ab durlabh hain. pakavaanonka smaran karanese koee laabh naheen. phir bhee meree jeebh maanatee naheen. mera beta rookhee-sookhee khaakar pet bhar leta hai, kintu do-teen saag banaaye bina mera pet naheen bharataa."

shreeraanadene yah ghatana sunaakar bataayaa- - 'pada़osamen rahaneke kaaran us mahilaakee baaten mainne baara-baar suneen. mainne tabheese niyam bana liya ki jeebh jis padaarthako pasand kare, use bahut hee thoda़a khaanaa. jeebhake vashamen n honaa. yadi us mahilaake samaan duhkh n bhogana ho to jeebhako vashamen rakhana chaahiye.' -su0 sin0

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