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योगक्षेमं वहाम्यहम्  [छोटी सी कहानी]
Story To Read - Wisdom Story (Hindi Story)

भगवान्की भक्तिमें तल्लीन नामदेवका घरसे बिलकुल ही ध्यान जाता रहा। उनकी पत्नी राजाईको पुत्र भी हो चुका था। घर दाने-दानेके लिये मुँहताज हो गया। पास-पड़ोसके लोग व्यंग्य कसने लगे। माता गोणाई भी नामदेवको उनकी करनीपर कठोर वचन कहा करतीं

एक दिन इन्हीं सबसे अत्यन्त अनुतप्त हो नामदेव घरसे निकल पड़े और पंढरिनाथके द्वारपर आकर सजल नेत्रोंसे उनकी प्रार्थना करने लगे- 'नाथ! क्यों आपने मुझे संसारके इस कठोर बन्धनमें बाँधा । कहाँ हो? आओ, शीघ्र सहारा दो।' भगवान्ने प्रकट होकर नामदेवको आश्वासन दिया।

इधर नामदेव के घरसे चले जानेपर उनकी माता गोणाई किसी तरह पेटकी ज्वाला शान्त करनेके निमित्त इधर-उधरसे कुछ माँगनेको निकल पड़ी। इसी बीच भगवान् केशव सेठका रूप धारण कर नामदेवके घरका पता पूछते-पूछते वहाँ आ पहुँचे। पास-पड़ोसकी स्त्रियाँ हँसी उड़ाती राजाईके पास दौड़ी आयीं और कहने लगीं- 'पाहुने आये हैं, आव-भगत करो न।'

राजाई बड़े संकटमें पड़ गयी। वह उनसे कहने लगी- 'घरमें एक दाना अन्न नहीं और ये अतिथि आये हैं। क्या करूँ? कह दूँ, वे नहीं हैं, उनके आनेपर पधारियेगा।'

अतिथि दरवाजेके बाहरसे सारी बातें सुन रहा था। उसने राजाईको पुकारकर कहा-'नामदेव मेरा बचपनका साथी है। मुझे पता चला कि इन दिनों वह बड़ी ।विपत्तिमें है। इसलिये मैं अशर्फियोंकी थैलियाँ लाया हूँ। इन्हें ले लीजिये। बस इतना ही काम है।'

राजाई बाहर आयी और उससे थैलियाँ ले लीं। अतिथि जाने लगा तो राजाईने कहा 'जरा ठहरिये, नहा-धोकर भोजन कीजिये और फिर जाइये।' अतिथिने कहा—'नहीं, नामदेवके बिना मैं ठहर नहीं सकता।' और वह चला गया।

राजाईने भीतर जाकर अशर्फियोंकी थैलियाँ उँडेलीं, सोनेका ढेर देख वह आनन्द-विभोर हो उठी। तत्काल कुछ अशर्फियाँ ले दूकानदारके पास पहुँची और बहुत सा सामान खरीदकर घर ले गयी। फिर जल्दीसे विविध पकवान बनाने में जुट गयी।

इधर माता गोणाई कुछ सामान माँगकर भगवान् विट्ठलके मन्दिर पहुँचीं।

नामदेवको लेकर घर आयीं। राजाईको प्रसन्नमुखसे विविध पकवान बनाते देख उनके आश्चर्यका ठिकाना न रहा। राजाईने माताके चरण छुये और पतिको प्रणाम कर उनके मित्र केशव सेठका सारा वृत्तान्त कह सुनाया।

नामदेवको रहस्य समझते देर न लगी। उनकी आँखोंसे अश्रुधाराएँ बहने लगीं। अपने लिये भगवान्‌को यह कष्ट देख उन्होंने प्रभुसे बार-बार क्षमा माँगी। उनका हृदय द्रवित हो उठा।

इसी उपलक्ष्य में नामदेवने गाँवके सब ब्राह्मणोंको निमन्त्रित किया और भरपेट भोजन कराकर सारा धन उन्हें लुटा दिया।- गो0 न0 बै0 (भक्तिविजय, अध्याय 4)



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yogaksheman vahaamyaham

bhagavaankee bhaktimen talleen naamadevaka gharase bilakul hee dhyaan jaata rahaa. unakee patnee raajaaeeko putr bhee ho chuka thaa. ghar daane-daaneke liye munhataaj ho gayaa. paasa-pada़osake log vyangy kasane lage. maata gonaaee bhee naamadevako unakee karaneepar kathor vachan kaha karateen

ek din inheen sabase atyant anutapt ho naamadev gharase nikal pada़e aur pandharinaathake dvaarapar aakar sajal netronse unakee praarthana karane lage- 'naatha! kyon aapane mujhe sansaarake is kathor bandhanamen baandha . kahaan ho? aao, sheeghr sahaara do.' bhagavaanne prakat hokar naamadevako aashvaasan diyaa.

idhar naamadev ke gharase chale jaanepar unakee maata gonaaee kisee tarah petakee jvaala shaant karaneke nimitt idhara-udharase kuchh maanganeko nikal pada़ee. isee beech bhagavaan keshav sethaka roop dhaaran kar naamadevake gharaka pata poochhate-poochhate vahaan a pahunche. paasa-pada़osakee striyaan hansee uda़aatee raajaaeeke paas dauda़ee aayeen aur kahane lageen- 'paahune aaye hain, aava-bhagat karo na.'

raajaaee bada़e sankatamen pada़ gayee. vah unase kahane lagee- 'gharamen ek daana ann naheen aur ye atithi aaye hain. kya karoon? kah doon, ve naheen hain, unake aanepar padhaariyegaa.'

atithi daravaajeke baaharase saaree baaten sun raha thaa. usane raajaaeeko pukaarakar kahaa-'naamadev mera bachapanaka saathee hai. mujhe pata chala ki in dinon vah bada़ee .vipattimen hai. isaliye main asharphiyonkee thailiyaan laaya hoon. inhen le leejiye. bas itana hee kaam hai.'

raajaaee baahar aayee aur usase thailiyaan le leen. atithi jaane laga to raajaaeene kaha 'jara thahariye, nahaa-dhokar bhojan keejiye aur phir jaaiye.' atithine kahaa—'naheen, naamadevake bina main thahar naheen sakataa.' aur vah chala gayaa.

raajaaeene bheetar jaakar asharphiyonkee thailiyaan undeleen, soneka dher dekh vah aananda-vibhor ho uthee. tatkaal kuchh asharphiyaan le dookaanadaarake paas pahunchee aur bahut sa saamaan khareedakar ghar le gayee. phir jaldeese vividh pakavaan banaane men jut gayee.

idhar maata gonaaee kuchh saamaan maangakar bhagavaan vitthalake mandir pahuncheen.

naamadevako lekar ghar aayeen. raajaaeeko prasannamukhase vividh pakavaan banaate dekh unake aashcharyaka thikaana n rahaa. raajaaeene maataake charan chhuye aur patiko pranaam kar unake mitr keshav sethaka saara vrittaant kah sunaayaa.

naamadevako rahasy samajhate der n lagee. unakee aankhonse ashrudhaaraaen bahane lageen. apane liye bhagavaan‌ko yah kasht dekh unhonne prabhuse baara-baar kshama maangee. unaka hriday dravit ho uthaa.

isee upalakshy men naamadevane gaanvake sab braahmanonko nimantrit kiya aur bharapet bhojan karaakar saara dhan unhen luta diyaa.- go0 na0 bai0 (bhaktivijay, adhyaay 4)

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