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दुर्योधनके मेवा त्यागे  [Shikshaprad Kahani]
Hindi Story - प्रेरक कथा (हिन्दी कहानी)

द्वारकाधीश श्रीकृष्णचन्द्र पाण्डवोंके संधि- दूत बनकर आ रहे थे। धृतराष्ट्रके विशेष आदेशसे हस्तिनापुर सजाया गया था। दुःशासनका भवन, जो राजभवनसे भी सुन्दर था, वासुदेवके लिये खाली कर दिया गया था। धृतराष्ट्रने आदेश दिया था- 'अश्व, गज, रथ, गायें, रत्न, आभरण और दूसरी जो भी वस्तुएँ हमारे यहाँ सर्वोत्तम हों, बहुमूल्य हों, वे दुःशासनके भवनमें एकत्र कर दी जायँ। वे सब श्रीवासुदेवको भेंट कर दी जायें।'

दुर्योधनके मनमें प्रेम नहीं था, पर वह ऊपरसे बड़े ही उत्साहपूर्वक पिताकी आज्ञाका पालन कर रहा था। उसने राज्यके सब कारीगर जुटा रखे थे भवन, मार्ग तथा नगरमें तोरण-द्वार सजानेके लिये। श्रीकृष्णचन्द्रके भोजनके लिये इतने पदार्थ बनवाये गये थे जिनकी गणना करना भी कठिन था। ऐसी साज-सज्जा की गयी थी कि वह हस्तिनापुरके इतिहासके लिये नवीन थी।

वासुदेवका रथ आया नगरसे बाहर जाकर दुर्योधनने भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, विदुर आदि वृद्ध सम्मान्य पुरुषों तथा भाइयोंके साथ उनका स्वागत किया। उनके साथ सव नगरमें आये।'आप पधारें!' बड़ी नम्रतासे दुर्योधनने मार्ग दिखलाया। परंतु वासुदेव बोले- 'राजन्! आपके उदार स्वागतके लिये धन्यवाद ! किंतु दूतका कर्तव्य है कि जबतक उसका कार्य न हो जाय, वह दूसरे पक्षके यहाँ भोजनादि न करे।'

दुर्योधनको बुरा लगा; किंतु अपनेको संयत करके वह बोला- आप दूत हैं, यह बात पीछे देखनेकी है। आप हमारे सम्मान्य सम्बन्धी हैं। हम जो कुछ सेवा कर सकते हैं, हमने उसका प्रयास किया है। आप हमारा स्वागत क्यों अस्वीकार कर रहे हैं?'

अब श्रीकृष्णचन्द्रने स्पष्ट सुना दिया- 'राजन्! जो भूखसे मर रहा हो, वह चाहे जहाँ भोजन कर लेता है; किंतु जो ऐसा नहीं है, वह तो दूसरे घर तभी भोजन करता है, जब उसके प्रति वहाँ प्रेम हो भूखसे मैं मर नहीं रहा हूँ और प्रेम आपमें है नहीं।'

द्वारकानाथका रथ मुड़ गया विदुरके भवनकी ओर। उनके लिये जो दुःशासनका भवन सजाया गया था, उसकी ओर तो उन्होंने ताकातक नहीं।

-सु0 सिं0 (महाभारत, उद्योग0 91 )



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duryodhanake meva tyaage

dvaarakaadheesh shreekrishnachandr paandavonke sandhi- doot banakar a rahe the. dhritaraashtrake vishesh aadeshase hastinaapur sajaaya gaya thaa. duhshaasanaka bhavan, jo raajabhavanase bhee sundar tha, vaasudevake liye khaalee kar diya gaya thaa. dhritaraashtrane aadesh diya thaa- 'ashv, gaj, rath, gaayen, ratn, aabharan aur doosaree jo bhee vastuen hamaare yahaan sarvottam hon, bahumooly hon, ve duhshaasanake bhavanamen ekatr kar dee jaayan. ve sab shreevaasudevako bhent kar dee jaayen.'

duryodhanake manamen prem naheen tha, par vah ooparase bada़e hee utsaahapoorvak pitaakee aajnaaka paalan kar raha thaa. usane raajyake sab kaareegar juta rakhe the bhavan, maarg tatha nagaramen torana-dvaar sajaaneke liye. shreekrishnachandrake bhojanake liye itane padaarth banavaaye gaye the jinakee ganana karana bhee kathin thaa. aisee saaja-sajja kee gayee thee ki vah hastinaapurake itihaasake liye naveen thee.

vaasudevaka rath aaya nagarase baahar jaakar duryodhanane bheeshm, dron, kripaachaary, vidur aadi vriddh sammaany purushon tatha bhaaiyonke saath unaka svaagat kiyaa. unake saath sav nagaramen aaye.'aap padhaaren!' bada़ee namrataase duryodhanane maarg dikhalaayaa. parantu vaasudev bole- 'raajan! aapake udaar svaagatake liye dhanyavaad ! kintu dootaka kartavy hai ki jabatak usaka kaary n ho jaay, vah doosare pakshake yahaan bhojanaadi n kare.'

duryodhanako bura lagaa; kintu apaneko sanyat karake vah bolaa- aap doot hain, yah baat peechhe dekhanekee hai. aap hamaare sammaany sambandhee hain. ham jo kuchh seva kar sakate hain, hamane usaka prayaas kiya hai. aap hamaara svaagat kyon asveekaar kar rahe hain?'

ab shreekrishnachandrane spasht suna diyaa- 'raajan! jo bhookhase mar raha ho, vah chaahe jahaan bhojan kar leta hai; kintu jo aisa naheen hai, vah to doosare ghar tabhee bhojan karata hai, jab usake prati vahaan prem ho bhookhase main mar naheen raha hoon aur prem aapamen hai naheen.'

dvaarakaanaathaka rath muda़ gaya vidurake bhavanakee ora. unake liye jo duhshaasanaka bhavan sajaaya gaya tha, usakee or to unhonne taakaatak naheen.

-su0 sin0 (mahaabhaarat, udyoga0 91 )

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