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जब एक स्वार्थी भक्त की स्वार्थपूर्ण भक्ति उसके लिए ही हानिकारक सिद्ध हो गई

एक राक्षस बड़ा स्वार्थी था, वह स्वार्थ साधनेके लिये शिवकी उपासना करने लगा। वह रोज चिता भस्म लाता और शिवजीको चढ़ाकर उनकी पूजा करता। इसीसे उसका नाम भस्मासुर पड़ गया। औढरदानी आशुतोष सर्वान्तर्यामी होनेपर भी राक्षसके मनकी बुरी नीयतका कुछ भी खयाल न कर उसके सामने प्रकट हो गये और बोले कि 'मनमाना वर माँग ले।'

राक्षसने कहा- 'महाराज! मैं जिसके सिरपर हाथ रखें, वही भस्म हो जाय! बस, मुझे तो यही चाहिये।' भगवान् भोलेनाथने 'तथास्तु' कह दिया। राक्षस मनमाना दुर्लभ वर पाकर उन्मत्त हो उठा। देवता घबराये। इधर भस्मासुरने भगवान् शिवजीके पास जाकर कहा कि 'मैं तो पहले तुम्हारे ही सिरपर हाथ रखकर वरकी परीक्षा करूंगा।'

शिवजीने बहुत समझाया बुझाया, परंतु दुष्ट राक्षसने उनकी एक न सुनी। उसके मनमें भगवती पार्वतीजीके सम्बन्धमें पाप आ गया और वह शिवजीको भस्म करके अपना मतलब साधनेकी चेष्टा करने लगा। भगवान् शंकर चाहते तो उसे भस्म कर सकते थे अथवा शक्तिका ही हरण कर सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया और अपने दिये हुए वरदानकी सत्यता सिद्ध कर दिखानेके लिये डरकर भागनेका सा स्वाँग रचा।

श्रीशिवजीके साथ इस प्रकार औद्धत्य और कृतघ्नता करना शिवजीके ही अभिन्नस्वरूप भगवान् विष्णुको असह्य हो गया, परंतु उन्हें भी शिवजीके वरदानका खयाल था। इसलिये वे अन्य उपायोंसे काम न लेकर मोहिनीरूप बनाकर राक्षसके सामने प्रकट हो गये। राक्षस तो उन्हें देखते ही मोहित हो गया।

मोहिनीरूप भगवान् उसके सामने नाचने लगे और वह भी मोहित हुआ उन्हींका अनुसरण करने लगा। नाचते-नाचते मोहिनीने अपना हाथ सिरपर रखा, उसीकी देखा-देखी मोहित असुरने भी अपना हाथ सिरपर रख लिया। हाथ रखना था कि तत्काल उसके अंगसे आगकी लपटें निकलने लगीं और बात की बातमें वह जलकर भस्म हो गया।

भस्मासुर नामकी सार्थकता सिद्ध हुई और कृतघ्नताका फल भी प्रकट हो गया।



jab ek svaarthee bhakt kee svaarthapoorn bhakti usake lie hee haanikaarak siddh ho gaee

ek raakshas bada़a svaarthee tha, vah svaarth saadhaneke liye shivakee upaasana karane lagaa. vah roj chita bhasm laata aur shivajeeko chadha़aakar unakee pooja karataa. iseese usaka naam bhasmaasur pada़ gayaa. audharadaanee aashutosh sarvaantaryaamee honepar bhee raakshasake manakee buree neeyataka kuchh bhee khayaal n kar usake saamane prakat ho gaye aur bole ki 'manamaana var maang le.'

raakshasane kahaa- 'mahaaraaja! main jisake sirapar haath rakhen, vahee bhasm ho jaaya! bas, mujhe to yahee chaahiye.' bhagavaan bholenaathane 'tathaastu' kah diyaa. raakshas manamaana durlabh var paakar unmatt ho uthaa. devata ghabaraaye. idhar bhasmaasurane bhagavaan shivajeeke paas jaakar kaha ki 'main to pahale tumhaare hee sirapar haath rakhakar varakee pareeksha karoongaa.'

shivajeene bahut samajhaaya bujhaaya, parantu dusht raakshasane unakee ek n sunee. usake manamen bhagavatee paarvateejeeke sambandhamen paap a gaya aur vah shivajeeko bhasm karake apana matalab saadhanekee cheshta karane lagaa. bhagavaan shankar chaahate to use bhasm kar sakate the athava shaktika hee haran kar sakate the, parantu unhonne aisa kuchh bhee naheen kiya aur apane diye hue varadaanakee satyata siddh kar dikhaaneke liye darakar bhaaganeka sa svaang rachaa.

shreeshivajeeke saath is prakaar auddhaty aur kritaghnata karana shivajeeke hee abhinnasvaroop bhagavaan vishnuko asahy ho gaya, parantu unhen bhee shivajeeke varadaanaka khayaal thaa. isaliye ve any upaayonse kaam n lekar mohineeroop banaakar raakshasake saamane prakat ho gaye. raakshas to unhen dekhate hee mohit ho gayaa.

mohineeroop bhagavaan usake saamane naachane lage aur vah bhee mohit hua unheenka anusaran karane lagaa. naachate-naachate mohineene apana haath sirapar rakha, useekee dekhaa-dekhee mohit asurane bhee apana haath sirapar rakh liyaa. haath rakhana tha ki tatkaal usake angase aagakee lapaten nikalane lageen aur baat kee baatamen vah jalakar bhasm ho gayaa.

bhasmaasur naamakee saarthakata siddh huee aur kritaghnataaka phal bhee prakat ho gayaa.



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