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शत्रुता और मित्रता साथ-साथ नहीं रह सकती : नीति और समझदारी सीखने वाली कहानी

काम्पिल्य नगरमै ब्रह्मदत्त नामका राजा राज करता ।। उसके महलमें पूजनी नामक सर्वज्ञ, सम्पूर्ण तत्त्वोंको जाननेवाली तथा नीतिशास्त्रकी ज्ञाता एक चिड़िया रहती

एक बार पूजनी चिड़ियाको एक बच्चा हुआ। उधर रानीने भी एक बालकको जन्म दिया। दोनों बच्चे प्रेमपूर्वक पलने लगे। पूजनी चिड़िया समुद्रतटसे दो फल जाती। एक अपने बच्चेको तथा दूसरा फल राजकुमारको देती, यह उसका नित्यका क्रम था।

कुछ दिन बीते। एक दिन राजकुमारको गोदमें लिये चाय घूम रही थी। राजकुमारने पूजनीके बच्चेको देखा तो उसे पकड़नेके लिये मचल उठा। वह उसके साथ खेलने लगा। खेल-खेल में राजकुमारसे चिड़ियाका बच्चा भर गया।

पूजनी फल लेकर लौटी। अपने बच्चेकी मृत्युका समाचार पाकर उसने राजकुमारको खूब भला-बुरा कहाऔर बदला लेनेके लिये राजकुमारकी दोनों आँखें फोड़ डालीं। फिर आकाशमें उड़कर उसने राजासे कहा ‘राजन्। स्वेच्छासे किये पापका फल तुरंत मिलता है। यदि ऐसा न हो तो उसके पुत्रों-पौत्रों और नातियोंको उसका फल भोगना पड़ता है।’

पहले राजा क्रोधित पर फिर वे समझ गये कि राजकुमारको उसके कुकर्मका ही बदला मिला है। अतः उन्होंने पूजनीसे कहा-‘पूजनी! तुमने राजकुमारको उसके अपराधकी सजा देकर बदला चुका लिया। दोनोंका कार्य बराबर हो गया। अतः अब यहीं रहो।’

पूजनी बोली- ‘राजन्। नीति यह बताती है कि बैर रखने वालोंको परस्पर विश्वास नहीं करना चाहिये। विश्वासमें भय और उससे विनाश होता है। शत्रुकी मीठी बातों और सान्त्वनाको सन्देहकी दृष्टिसे देखना चाहिये।

राजन्। क्रोधाग्नि न धनसे, न कठोरता दिखानेसे, न मीठे वचनोंसे, न शास्त्रज्ञानसे ही शान्त होती है। इसके साथ ही एक बात और भी है कि अपने पुत्रकी दशा देख-देखकर आपका बैर ताजा होता रहेगा।

राजन् ! मैंने तुम्हारे पुत्रके साथ दुर्व्यवहार किया है, अतः अब मैं यहाँ नहीं रह सकती। दुष्ट भार्या, दुष्ट पुत्र, कुटिल राजा, दुष्ट मित्र, दूषित सम्बन्ध और दुष्ट देशको दूरसे ही त्याग देना चाहिये, कुमित्रका स्नेह कभी स्थिर नहीं रह सकता। मित्र वहीं श्रेष्ठ है, जिसपर विश्वास बना रहे और देश भी वही उत्तम है, जहाँ जीविका चल सके।’

इतना कहकर पूजनी चिड़िया वहाँसे उड़कर अन्यत्र चली गयी। राजा मन-ही-मन उसकी विद्वत्तापूर्ण बातों और नीतिशास्त्रके ज्ञानसे प्रभावित हो गये। सच है, शत्रुता और मित्रता साथ-साथ नहीं रह सकती।



shatruta aur mitrata saatha-saath naheen rah sakatee : neeti aur samajhadaaree seekhane vaalee kahaanee

kaampily nagaramai brahmadatt naamaka raaja raaj karata .. usake mahalamen poojanee naamak sarvajn, sampoorn tattvonko jaananevaalee tatha neetishaastrakee jnaata ek chida़iya rahatee

ek baar poojanee chiड़iyaako ek bachcha huaa. udhar raaneene bhee ek baalakako janm diyaa. donon bachche premapoorvak palane lage. poojanee chiड़iya samudratatase do phal jaatee. ek apane bachcheko tatha doosara phal raajakumaarako detee, yah usaka nityaka kram thaa.

kuchh din beete. ek din raajakumaarako godamen liye chaay ghoom rahee thee. raajakumaarane poojaneeke bachcheko dekha to use pakada़neke liye machal uthaa. vah usake saath khelane lagaa. khela-khel men raajakumaarase chida़iyaaka bachcha bhar gayaa.

poojanee phal lekar lautee. apane bachchekee mrityuka samaachaar paakar usane raajakumaarako khoob bhalaa-bura kahaaaur badala leneke liye raajakumaarakee donon aankhen phoda़ daaleen. phir aakaashamen uda़kar usane raajaase kaha ‘raajan. svechchhaase kiye paapaka phal turant milata hai. yadi aisa n ho to usake putron-pautron aur naatiyonko usaka phal bhogana pada़ta hai.’

pahale raaja krodhit par phir ve samajh gaye ki raajakumaarako usake kukarmaka hee badala mila hai. atah unhonne poojaneese kahaa-‘poojanee! tumane raajakumaarako usake aparaadhakee saja dekar badala chuka liyaa. dononka kaary baraabar ho gayaa. atah ab yaheen raho.’

poojanee bolee- ‘raajan. neeti yah bataatee hai ki bair rakhane vaalonko paraspar vishvaas naheen karana chaahiye. vishvaasamen bhay aur usase vinaash hota hai. shatrukee meethee baaton aur saantvanaako sandehakee drishtise dekhana chaahiye.

raajan. krodhaagni n dhanase, n kathorata dikhaanese, n meethe vachanonse, n shaastrajnaanase hee shaant hotee hai. isake saath hee ek baat aur bhee hai ki apane putrakee dasha dekha-dekhakar aapaka bair taaja hota rahegaa.

raajan ! mainne tumhaare putrake saath durvyavahaar kiya hai, atah ab main yahaan naheen rah sakatee. dusht bhaarya, dusht putr, kutil raaja, dusht mitr, dooshit sambandh aur dusht deshako doorase hee tyaag dena chaahiye, kumitraka sneh kabhee sthir naheen rah sakataa. mitr vaheen shreshth hai, jisapar vishvaas bana rahe aur desh bhee vahee uttam hai, jahaan jeevika chal sake.’

itana kahakar poojanee chiड़iya vahaanse uda़kar anyatr chalee gayee. raaja mana-hee-man usakee vidvattaapoorn baaton aur neetishaastrake jnaanase prabhaavit ho gaye. sach hai, shatruta aur mitrata saatha-saath naheen rah sakatee.



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