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इस संसार में एक ऐसा घड़ा भी है जो कभी नहीं भरता। हम में से बहुत से लोगों के घर में भी है वो घडा

अन्त नहीं है लोभका

(सन्तशिरोमणि श्रीरामकृष्णजी परमहंस )

एक बार एक नाई कहीं जा रहा था। जाते-जाते स एक जगह एक पेड़के नीचे अचानक उसे सुनायी दिया, से कोई मानो कह रहा है, 'सात घड़ा धन लेगा?' नाईने आश्चर्यचकित हो चारों ओर देखा, किंतु कहीं कोई दिखायी नहीं दिया। परंतु सात घड़ा धनकी बात सुनकर उसके मनमें लालच पैदा हुआ और वह जोरसे बोल उठा-'हाँ, लूँगा !' त्योंही उसे फिर वही आवाज सुनायी दी- 'अच्छा, तेरे घरपर रख आया हूँ, जा, ले-ले।'
नाईने घर आकर देखा, सचमुच ही सात घड़े रखे हुए हैं।

उसने सब घड़ोंको खोलकर अच्छी तरह देखा, तो उसे दिखायी दिया कि छह घड़े तो सोनेकी मुहरोंसे भरे हैं, पर सातवाँ घड़ा कुछ खाली है। उसके मनमें सातवें घड़ेको भी पूरा भरनेकी तीव्र इच्छा उठी और उसने घरमें जितना भी धन, गहने आदि थे, वह सब लाकर उस घड़ेमें डाल दिया। पर भला इतनेसे वह घड़ा कैसे भरता! घड़ेको पूरा भरनेके लिये नाई बड़ा व्याकुल रहने लगा। घर-गृहस्थीके खर्चमें कटौती करते हुए वह बचा हुआ सारा धन घड़ेमें डालने लगा। पर वह घड़ा भरता ही न था । अन्तमें उसने राजासे प्रार्थना की कि उसे जो वेतन मिलता है, उससे उसका गुजारा नहीं हो पाता, दया करके वेतन बढ़ा दिया जाय। राजा उस नाईपर खुश था। उसके कहते ही राजाने वे दुगुना कर दिया। पर नाईकी दशा पहले जैसी ही रही। अब तो वह लोगों से माँगकर खाता और पूरा वेतन घड़म डाल 'देता। पर पड़ा था कि भरनेका नाम ही नहीं लेता।

दिनों-दिन नाईकी हालतको बिगड़ते देख एक दिन राजाने पूछा- 'क्यों रे! तुझे जब कम वेतन मिलता था, तब तो तेरी गुजर-बसर अच्छी तरहसे हो जाती थी, और अब दुगुना वेतन पाकर भी तेरी ऐसी दशा क्यों है ? तू क्या सात घड़ा धन ले आया है?' नाईने हक्का-बक्का होकर कहा-'जी, आपको किसने बताया ?' राजाने कहा 'अरे, वह तो यक्षका धन है। उस समय यक्षने आकर 'मुझसे भी पूछा था, 'सात घड़ा धन लोगे ?' मैंने पूछा 'वह धन जमा करनेके लिये है, या खर्च करनेके लिये ?' तब वह बिना उत्तर दिये भाग गया। वह धन कभी नहीं लेना चाहिये, उसे खर्च नहीं किया जा सकता, सिर्फ जमा ही करना पड़ता है। तू भला चाहता है तो जल्दी वह धन लौटा आ।'

तब नाईको होश आया और वह झटपट उस जगहपर जाकर, चिल्लाकर बोल आया- 'तुम्हारा धन तुम ले जाओ, मुझे नहीं चाहिये।' यक्षने कहा- 'ठीक है।' घर लौटकर नाईने देखा कि वे सातों घड़े गायब हो गये हैं। दुःखकी बात यह थी कि इतने दिनोंतक पेटको काटते हुए उसने उस खाली घड़ेमें जो कुछ भी धन डाला था, वह भी चला गया।
वास्तवमें लोभरूपी सातवाँ घड़ा कभी नहीं भरता ।



is sansaar men ek aisa ghaड़a bhee hai jo kabhee naheen bharataa. ham men se bahut se logon ke ghar men bhee hai vo ghadaa

ant naheen hai lobhakaa

(santashiromani shreeraamakrishnajee paramahans )

ek baar ek naaee kaheen ja raha thaa. jaate-jaate s ek jagah ek peda़ke neeche achaanak use sunaayee diya, se koee maano kah raha hai, 'saat ghada़a dhan legaa?' naaeene aashcharyachakit ho chaaron or dekha, kintu kaheen koee dikhaayee naheen diyaa. parantu saat ghada़a dhanakee baat sunakar usake manamen laalach paida hua aur vah jorase bol uthaa-'haan, loonga !' tyonhee use phir vahee aavaaj sunaayee dee- 'achchha, tere gharapar rakh aaya hoon, ja, le-le.'
naaeene ghar aakar dekha, sachamuch hee saat ghada़e rakhe hue hain.

usane sab ghada़onko kholakar achchhee tarah dekha, to use dikhaayee diya ki chhah ghada़e to sonekee muharonse bhare hain, par saatavaan ghada़a kuchh khaalee hai. usake manamen saataven ghada़eko bhee poora bharanekee teevr ichchha uthee aur usane gharamen jitana bhee dhan, gahane aadi the, vah sab laakar us ghada़emen daal diyaa. par bhala itanese vah ghada़a kaise bharataa! ghada़eko poora bharaneke liye naaee bada़a vyaakul rahane lagaa. ghara-grihastheeke kharchamen katautee karate hue vah bacha hua saara dhan ghada़emen daalane lagaa. par vah ghada़a bharata hee n tha . antamen usane raajaase praarthana kee ki use jo vetan milata hai, usase usaka gujaara naheen ho paata, daya karake vetan badha़a diya jaaya. raaja us naaeepar khush thaa. usake kahate hee raajaane ve duguna kar diyaa. par naaeekee dasha pahale jaisee hee rahee. ab to vah logon se maangakar khaata aur poora vetan ghada़m daal 'detaa. par pada़a tha ki bharaneka naam hee naheen letaa.

dinon-din naaeekee haalatako bigada़te dekh ek din raajaane poochhaa- 'kyon re! tujhe jab kam vetan milata tha, tab to teree gujara-basar achchhee tarahase ho jaatee thee, aur ab duguna vetan paakar bhee teree aisee dasha kyon hai ? too kya saat ghada़a dhan le aaya hai?' naaeene hakkaa-bakka hokar kahaa-'jee, aapako kisane bataaya ?' raajaane kaha 'are, vah to yakshaka dhan hai. us samay yakshane aakar 'mujhase bhee poochha tha, 'saat ghada़a dhan loge ?' mainne poochha 'vah dhan jama karaneke liye hai, ya kharch karaneke liye ?' tab vah bina uttar diye bhaag gayaa. vah dhan kabhee naheen lena chaahiye, use kharch naheen kiya ja sakata, sirph jama hee karana pada़ta hai. too bhala chaahata hai to jaldee vah dhan lauta aa.'

tab naaeeko hosh aaya aur vah jhatapat us jagahapar jaakar, chillaakar bol aayaa- 'tumhaara dhan tum le jaao, mujhe naheen chaahiye.' yakshane kahaa- 'theek hai.' ghar lautakar naaeene dekha ki ve saaton ghada़e gaayab ho gaye hain. duhkhakee baat yah thee ki itane dinontak petako kaatate hue usane us khaalee ghada़emen jo kuchh bhee dhan daala tha, vah bhee chala gayaa.
vaastavamen lobharoopee saatavaan ghada़a kabhee naheen bharata .



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