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नारद भक्ति सूत्र (नारद भक्ति दर्शन)
Narad Bhakti Sutra (Narada Bhakti Sutra)
सूत्र 9 - Sutra 9
तस्मिन्ननन्यता तद्विरोधिषूदासीनता च ॥ 9 ॥
9-उस प्रियतम भगवान्में अनन्यता और उसके प्रतिकूल
विषयमें उदासीनताको भी निरोध कहते हैं।
बाहरी ज्ञान बना रहनेकी स्थितिमें भी प्रेमी भक्त अपने प्रियतमके प्रति अनन्य भाव रखता हुआ उसके प्रतिकूल कार्योंसे सर्वथा उदासीन रहता है। इस प्रकार सावधानीसे होनेवाले कर्म भी निरोध कहलाते हैं।
प्रेमी भक्तके द्वारा होनेवाली प्रत्येक चेष्टा अपने प्रियतमके अनुकूल होती है और अनन्य भावसे उसीकी सेवाके लिये होती है।
प्रतिकूल चेष्टा तो उसके द्वारा वैसे ही नहीं होती जैसे सूर्यके द्वारा कहीं अँधेर नहीं होता या अमृतके द्वारा मृत्यु नहीं हो सकती।
नारद भक्ति सूत्र को नारद भक्ति दर्शन, Narad Bhakti Sutra, Narada Bhakti Sutra, Narad Bhakti Darshan, भक्ति सूत्र, Bhakti Sutra, प्रेम सूत्र, Prem Sutra, प्रेम दर्शन और Prem Darshan आदि नामों से भी जाना जाता है।