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मस्तक-विक्रय  [प्रेरक कथा]
Wisdom Story - Hindi Story (शिक्षदायक कहानी)

कोसलके राजाका नाम दिग्-दिगन्तमें फैल रहा था। वे दीनोंके रक्षक और निराधारके आधार थे। काशीपतिने जब उनकी कीर्ति सुनी, तब वे जल भुन गये। झट उन्होंने एक बड़ी सेना ली और कोसलपर चढ़ आये। युद्धमें कोसलनरेश हार गये और वनमें भाग गये। पर किसीने काशिराजका स्वागत नहीं किया। कोसलनरेशकी पराजयसे वहाँकी प्रजा रात दिन रोने लगी। काशिराजने देखा कि प्रजा उसका सहयोगकर कहीं पुनः विद्रोह न कर बैठे, इसलिये शत्रुको निःशेष करनेके लिये उन्होंने घोषणा करा दी कि- 'जो कोसलपतिको ढूँढ़ लायेगा, उसे सौ मोहरें दी जायेंगी।' जिसने भी यह घोषणा सुनी आँख-कान बंदकर जीभ दबा ली।

इधर कोसलनरेश दीन मलीन हो जंगलोंमें भटक रहे थे। एक दिन एक पथिक उनके सामने आया और पूछने लगा- 'वनवासी! इस वनका कहाँ जाकर अन्त होता है और कोसलपुरका मार्ग कौन-सा है ?' राजाने पूछा- 'तुम्हारे वहाँ जानेका कारण क्या है ?' पथिक बोला- 'मैं व्यापारी हूँ। मेरी नौका डूब गयी है। अब द्वार-द्वार कहाँ भीख माँगता फिरूँ। सुना था कि कोसलका राजा बड़ा उदार है, अतएव उसीके'दरवाजे जा रहा हूँ।' थोड़ी देरतक कुछ सोचकर राजाने कहा—'चलो, तुम्हें वहाँतक पहुँचा ही आऊँ। तुम बहुत दूरसे हैरान होकर आये हो ।'

काशिराजकी सभा में एक जटाधारी व्यक्ति आया। काशीनरेशने पूछा—'कहिये किस लिये पधारे ?' जटाधारीने कहा- 'मैं कोसलराज हूँ । तुमने मुझे पकड़ लानेवालेको सौ स्वर्णमुद्रा देनेकी घोषणा करायी है। बस, मेरे इस | साथीको वह धन दे दो। इसने मुझे पकड़कर तुम्हारे पास उपस्थित किया है।'

सारी सभा सन्न रह गयी । प्रहरीकी आँखोंमें भी आँसू आ गये। काशीपति सारी बातें जान-सुनकर स्तब्ध रह गये। क्षणभरके बाद वे बोल उठे-'महाराज ! आज युद्धस्थलमें इस दुरन्त आशाको ही जीतूंगा; आपका राज्य भी लौटा देता हूँ, साथ ही अपना हृदय भी प्रदान करता हूँ।' बस, झट उन्होंने उनका हाथ पकड़कर सिंहासन पर बिठला दिया और उनके मलिन मस्तकपर मुकुट चढ़ा दिया। सारी सभा 'धन्य-धन्य' कह उठी। व्यापारीको मुँहमाँगी मुद्राएँ तो मिलनी ही थीं। जा0 श0 (कवीन्द्र श्रीरवीन्द्रनाथ ठाकुरकी कृति बँगला 'मस्तक-विक्रय' का भाषान्तर)



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mastaka-vikraya

kosalake raajaaka naam dig-digantamen phail raha thaa. ve deenonke rakshak aur niraadhaarake aadhaar the. kaasheepatine jab unakee keerti sunee, tab ve jal bhun gaye. jhat unhonne ek bada़ee sena lee aur kosalapar chadha़ aaye. yuddhamen kosalanaresh haar gaye aur vanamen bhaag gaye. par kiseene kaashiraajaka svaagat naheen kiyaa. kosalanareshakee paraajayase vahaankee praja raat din rone lagee. kaashiraajane dekha ki praja usaka sahayogakar kaheen punah vidroh n kar baithe, isaliye shatruko nihshesh karaneke liye unhonne ghoshana kara dee ki- 'jo kosalapatiko dhoonढ़ laayega, use sau moharen dee jaayengee.' jisane bhee yah ghoshana sunee aankha-kaan bandakar jeebh daba lee.

idhar kosalanaresh deen maleen ho jangalonmen bhatak rahe the. ek din ek pathik unake saamane aaya aur poochhane lagaa- 'vanavaasee! is vanaka kahaan jaakar ant hota hai aur kosalapuraka maarg kauna-sa hai ?' raajaane poochhaa- 'tumhaare vahaan jaaneka kaaran kya hai ?' pathik bolaa- 'main vyaapaaree hoon. meree nauka doob gayee hai. ab dvaara-dvaar kahaan bheekh maangata phiroon. suna tha ki kosalaka raaja bada़a udaar hai, ataev useeke'daravaaje ja raha hoon.' thoda़ee deratak kuchh sochakar raajaane kahaa—'chalo, tumhen vahaantak pahuncha hee aaoon. tum bahut doorase hairaan hokar aaye ho .'

kaashiraajakee sabha men ek jataadhaaree vyakti aayaa. kaasheenareshane poochhaa—'kahiye kis liye padhaare ?' jataadhaareene kahaa- 'main kosalaraaj hoon . tumane mujhe pakada़ laanevaaleko sau svarnamudra denekee ghoshana karaayee hai. bas, mere is | saatheeko vah dhan de do. isane mujhe pakada़kar tumhaare paas upasthit kiya hai.'

saaree sabha sann rah gayee . prahareekee aankhonmen bhee aansoo a gaye. kaasheepati saaree baaten jaana-sunakar stabdh rah gaye. kshanabharake baad ve bol uthe-'mahaaraaj ! aaj yuddhasthalamen is durant aashaako hee jeetoongaa; aapaka raajy bhee lauta deta hoon, saath hee apana hriday bhee pradaan karata hoon.' bas, jhat unhonne unaka haath pakada़kar sinhaasan par bithala diya aur unake malin mastakapar mukut chadha़a diyaa. saaree sabha 'dhanya-dhanya' kah uthee. vyaapaareeko munhamaangee mudraaen to milanee hee theen. jaa0 sha0 (kaveendr shreeraveendranaath thaakurakee kriti bangala 'mastaka-vikraya' ka bhaashaantara)

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