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जब एक कंजूस ने अपनी कंजूसी से भगवान को प्रगट होने पर विवश कर दिया



एक वैश्य था। उसके पास धन तो खूब था, किंतु वह था स्वभावसे कंजूस। उसने गुसाँईजीके पास जाकर कहा-'महाराज, आप कहते हैं तो मैं भगवत्सेवा करनेके लिये तैयार हूँ, किंतु बिना एक पैसेका खर्च किये कोई देव-सेवा हो तो बताइये।' गुसाईजीने उससे कहा- 'मानसिक सेवा कर, इसमें एक पैसेका खर्च नहीं होगा। भगवान्‌को स्नान करा, वस्त्र पहना, माला अर्पण कर, भोग लगा।' वैश्यने पूछा- 'महाराज ! क्या ये सब चीजें बाजारसे लानी पड़ेंगी ?' गुसाँईजी बोले- 'नहीं, केवल मनमें यह संकल्प करना कि मैं भोग लगा रहा हूँ और भगवान् भोग स्वीकार कर रहे हैं।'

वैश्यने बालकृष्णकी मानसिक सेवा करना प्रारम्भ कर दिया। रोज प्रेमसे मानसिक सेवा करते-करते वह उसमें तन्मय होने लगा। उसने बारह वर्षतक नियमित सेवा की। अब तो उसे सभी वस्तुएँ प्रत्यक्ष दिखायी देने लगीं- बालकृष्ण हँसते हुए मुझे देखते हैं और प्रेमसे नैवेद्य स्वीकार करते हैं।


एक दिन वह सेवामें तन्मय हो गया। मनमें ही
दूधका कटोरा ले आया। दूधमें शक्कर डाली, किंतु उसे ऐसा लगा कि आज दूधमें शक्कर अधिक गिर गयी। वैश्य कंजूस था, इसलिये यह कैसे चल सकता था ? दूधमें से अतिरिक्त शक्करको निकालनेका उसने विचार किया। वहाँ न तो कटोरा था, न दूध था और न शक्कर, किंतु वह सेवामें इतना तन्मय हो गया था कि उसे सब कुछ प्रत्यक्ष नजर आता था। अतः दूधमेंसे अतिरिक्त शक्कर बाहर निकाल रहा हो, ऐसे उसने किया।

श्रीकृष्णने सोचा कि चाहे जो हो, इस वैश्यने बारह वर्षतक नियमित सेवा की है। वे प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर वैश्यका हाथ पकड़ लिया। बोले-'शक्कर ज्यादा गिर गयी, उसमें तेरा क्या जाता है ? तूने कहाँ पैसे खर्च हैं, जो माथापच्ची करता है ?'

भगवत्स्पर्श होते ही वैश्य तो सच्चा वैष्णव हो गया। भगवानूका अनन्य भक्त बन गया।

कोई भी शुभ कर्म बारह वर्षतक नियमितरूपसे करनेपर फल अवश्य प्रदान करता है।

तुम नियम बनाओ, उसका पालन करो और अन्तमें उसका प्रभाव देखो।



jab ek kanjoos ne apanee kanjoosee se bhagavaan ko pragat hone par vivash kar diyaa



ek vaishy thaa. usake paas dhan to khoob tha, kintu vah tha svabhaavase kanjoosa. usane gusaaneejeeke paas jaakar kahaa-'mahaaraaj, aap kahate hain to main bhagavatseva karaneke liye taiyaar hoon, kintu bina ek paiseka kharch kiye koee deva-seva ho to bataaiye.' gusaaeejeene usase kahaa- 'maanasik seva kar, isamen ek paiseka kharch naheen hogaa. bhagavaan‌ko snaan kara, vastr pahana, maala arpan kar, bhog lagaa.' vaishyane poochhaa- 'mahaaraaj ! kya ye sab cheejen baajaarase laanee pada़engee ?' gusaaneejee bole- 'naheen, keval manamen yah sankalp karana ki main bhog laga raha hoon aur bhagavaan bhog sveekaar kar rahe hain.'

vaishyane baalakrishnakee maanasik seva karana praarambh kar diyaa. roj premase maanasik seva karate-karate vah usamen tanmay hone lagaa. usane baarah varshatak niyamit seva kee. ab to use sabhee vastuen pratyaksh dikhaayee dene lageen- baalakrishn hansate hue mujhe dekhate hain aur premase naivedy sveekaar karate hain.


ek din vah sevaamen tanmay ho gayaa. manamen hee
doodhaka katora le aayaa. doodhamen shakkar daalee, kintu use aisa laga ki aaj doodhamen shakkar adhik gir gayee. vaishy kanjoos tha, isaliye yah kaise chal sakata tha ? doodhamen se atirikt shakkarako nikaalaneka usane vichaar kiyaa. vahaan n to katora tha, n doodh tha aur n shakkar, kintu vah sevaamen itana tanmay ho gaya tha ki use sab kuchh pratyaksh najar aata thaa. atah doodhamense atirikt shakkar baahar nikaal raha ho, aise usane kiyaa.

shreekrishnane socha ki chaahe jo ho, is vaishyane baarah varshatak niyamit seva kee hai. ve prasann hue. unhonne prakat hokar vaishyaka haath pakada़ liyaa. bole-'shakkar jyaada gir gayee, usamen tera kya jaata hai ? toone kahaan paise kharch hain, jo maathaapachchee karata hai ?'

bhagavatsparsh hote hee vaishy to sachcha vaishnav ho gayaa. bhagavaanooka anany bhakt ban gayaa.

koee bhee shubh karm baarah varshatak niyamitaroopase karanepar phal avashy pradaan karata hai.

tum niyam banaao, usaka paalan karo aur antamen usaka prabhaav dekho.



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