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सर्वस्वदान  [Story To Read]
Wisdom Story - Moral Story (Hindi Story)

'भारतके सार्वभौम सम्राट महाराजाधिराज शिलादित्य - हर्षवर्धनकी जय हो वे चिरायु हो।' सरस्वती पुत्रोंने प्रशस्ति गायी। गङ्गा-यमुनाके सङ्गमके ठीक सामने ऊँची सैकत-भूमिपर असंख्य जनताकी भीड़ एकत्र थी। देश-देशके सामन्त और कामरूप, गौड़, वल्लभी आदिके नरेशोंसे परिवेष्टित महाराज हर्षने मोक्ष सभामें पदार्पण किया। बहिन राज्य श्री साथ थी। विशेष अतिथि आसनपर चीनके धर्मदूत हेनसांग उपस्थित थे। उनके गैरिक कौशेय परिधान, ठिगने और पीत वर्णके शरीर तथा छोटी-छोटी दाढ़ीने लोगोंके लिये अद्भुत कौतूहल उपस्थित किया था।

'महाराज! आपने समस्त धमकि प्रति उदारता प्रकटकर आर्य संस्कृतिको उदार मनोवृत्तिका परिचय दिया है। आपने पाँच वर्षसे संचित कोपराशिका इन पचहत्तर दिनोंमें दानकर इस 'महादान भूमि पर जो दिव्य कीर्ति कमायी है, उससे इन्द्रकी भी स्पर्धावृत्ति बढ़ गयी है। आप धन्य हैं।' चीनी यात्री ह्वेनसांगकी प्रशस्ति थी।'महाराज! दशबल और दिक्पालोंकी पूजाका समय आ गया।' धर्माचार्यने सम्राटका ध्यान आकृष्ट किया। सम्राट् गम्भीर हो उठे।

वसन्त ऋतुका पहला चरण था। शीतल मलयानिल सङ्गमके स्पर्शसे अपने-आपको पवित्र कर रहा था। मोक्ष-सभाका अन्तिम उत्सव था यह और सम्राट् स्थाण्वीश्वर-गमनका आदेश महामन्त्रीको दे चुके थे।

'महाराजकी दान-वृत्ति सराहनीय है, सत्य दानकी ही नीवपर स्थित है। दान सर्वश्रेष्ठ धर्म है, पर एक ब्राह्मणने सभामें अचानक प्रवेशकर लोगोंको आश्चर्य चकित कर दिया। यह एक विचित्र घटना थी।

'कहो विप्र, कहो! यह धर्मसभा है, इसमें सत्यपर कोई रोक नहीं है।' महाराज दिक्पालोंके पूजनके लिये प्रस्थान करना चाहते थे।

'आपने हरिश्चन्द्र, शिवि, दधीचि, रघु और कर्णके दान-यशको अमर कर दिया है सम्राट् !' वह उनके स्वर्णमुकुट और कण्ठ- देशकी रत्नमालाकी ओर होदेख रहा था।

'मैं 'पर' का आशय समझ गया।' सम्राट्ने अपनी शेष सम्पत्ति (मुकुट और रत्नमाला) ब्राह्मणके कर कमलोंमें रख दी। उनकी जयसे जनताकी कण्ठ-वाणी सम्प्लावित थी।

'बहिन ! भारत-सम्राट्ने आजतक किसीसे याचना नहीं की।' हर्षने राज्य श्रीको देखा। वह चकित थी। 'मेरे पास दशबल और दिक्पालोंके पूजनके लिये अब कोई वस्त्र शेष नहीं है। मैंने शत्रुसे केवल उनकेसिरकी ही याचना की है। मुझे इन्द्रके सिंहासनकी भी अपेक्षा नहीं है।' सम्राट्ने भिक्षा माँगी।

'भैया! इस महादानभूमिमें आपके पहनने योग्य मेरे पास भी कोई वस्त्र नहीं रह गया है। इस पवित्र - तीर्थसे कुछ भी बचाकर ले जाना दानराज्यमें अधर्म है।' देवी राज्यश्रीने एक जीर्ण-शीर्ण वस्त्र सम्राट्के हाथमें रख दिया।

हर्ष प्रसन्न थे मानो उन्हें सर्वस्व मिल गया। सम्राट् भगवान् दशबल और दिक्पालोंकी पूजामें लग गये।



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sarvasvadaana

'bhaaratake saarvabhaum samraat mahaaraajaadhiraaj shilaadity - harshavardhanakee jay ho ve chiraayu ho.' sarasvatee putronne prashasti gaayee. gangaa-yamunaake sangamake theek saamane oonchee saikata-bhoomipar asankhy janataakee bheeda़ ekatr thee. desha-deshake saamant aur kaamaroop, gauda़, vallabhee aadike nareshonse pariveshtit mahaaraaj harshane moksh sabhaamen padaarpan kiyaa. bahin raajy shree saath thee. vishesh atithi aasanapar cheenake dharmadoot henasaang upasthit the. unake gairik kaushey paridhaan, thigane aur peet varnake shareer tatha chhotee-chhotee daadha़eene logonke liye adbhut kautoohal upasthit kiya thaa.

'mahaaraaja! aapane samast dhamaki prati udaarata prakatakar aary sanskritiko udaar manovrittika parichay diya hai. aapane paanch varshase sanchit koparaashika in pachahattar dinonmen daanakar is 'mahaadaan bhoomi par jo divy keerti kamaayee hai, usase indrakee bhee spardhaavritti baढ़ gayee hai. aap dhany hain.' cheenee yaatree hvenasaangakee prashasti thee.'mahaaraaja! dashabal aur dikpaalonkee poojaaka samay a gayaa.' dharmaachaaryane samraataka dhyaan aakrisht kiyaa. samraat gambheer ho uthe.

vasant rituka pahala charan thaa. sheetal malayaanil sangamake sparshase apane-aapako pavitr kar raha thaa. moksha-sabhaaka antim utsav tha yah aur samraat sthaanveeshvara-gamanaka aadesh mahaamantreeko de chuke the.

'mahaaraajakee daana-vritti saraahaneey hai, saty daanakee hee neevapar sthit hai. daan sarvashreshth dharm hai, par ek braahmanane sabhaamen achaanak praveshakar logonko aashchary chakit kar diyaa. yah ek vichitr ghatana thee.

'kaho vipr, kaho! yah dharmasabha hai, isamen satyapar koee rok naheen hai.' mahaaraaj dikpaalonke poojanake liye prasthaan karana chaahate the.

'aapane harishchandr, shivi, dadheechi, raghu aur karnake daana-yashako amar kar diya hai samraat !' vah unake svarnamukut aur kantha- deshakee ratnamaalaakee or hodekh raha thaa.

'main 'para' ka aashay samajh gayaa.' samraatne apanee shesh sampatti (mukut aur ratnamaalaa) braahmanake kar kamalonmen rakh dee. unakee jayase janataakee kantha-vaanee samplaavit thee.

'bahin ! bhaarata-samraatne aajatak kiseese yaachana naheen kee.' harshane raajy shreeko dekhaa. vah chakit thee. 'mere paas dashabal aur dikpaalonke poojanake liye ab koee vastr shesh naheen hai. mainne shatruse keval unakesirakee hee yaachana kee hai. mujhe indrake sinhaasanakee bhee apeksha naheen hai.' samraatne bhiksha maangee.

'bhaiyaa! is mahaadaanabhoomimen aapake pahanane yogy mere paas bhee koee vastr naheen rah gaya hai. is pavitr - teerthase kuchh bhee bachaakar le jaana daanaraajyamen adharm hai.' devee raajyashreene ek jeerna-sheern vastr samraatke haathamen rakh diyaa.

harsh prasann the maano unhen sarvasv mil gayaa. samraat bhagavaan dashabal aur dikpaalonkee poojaamen lag gaye.

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