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सुरक्षार्थ  [Short Story]
हिन्दी कहानी - Hindi Story (Short Story)

एक सौदागर था नेशापुरमें। उसके यहाँ एक दासी थी अत्यन्त सुन्दरी । उसका एक ऋणी गाँव छोड़कर चला गया। सौदागरको तकाजोंके लिये जाना था; किंतु लावण्यमयी युवती दासीको कहाँ रखे, यह प्रश्न था । गाँवमें उसकी दृष्टिमें एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसके वहाँ वह उसे रख जाता । अन्तमें उसे संत अबु उस्मान खैरीका स्मरण आया। वह उनके पास गया और दासीको अपने पास रख लेनेकी प्रार्थना की। पहले तो उन्होंने अस्वीकार किया, किंतु बहुत प्रार्थना करनेपर मान गये। दासी उस्मानके यहाँ आकर रहने लगी। दैवयोगसे एक दिन उस्मानकी दृष्टि दासीपर पड़ी। उसका सौन्दर्य देखकर वे मुग्ध हो गये। उनका चित्त अस्थिर रहने लगा। प्रयत्न करनेपर भी उनका मन स्थिर नहीं होता, वे अशान्त रहने लगे। रह-रहकर उनका मन उस सौन्दर्यमयी पुत्तलिकाकी स्मृतिमें लग जाता । विवशतः वे धर्माचार्य अबु हाफिजके पास पहुँचे औरअपनी सम्पूर्ण व्यथा-कथा उन्हें सुनायी। हाफिज़ने कहा- आप संत यूसुफके पास जायें। तलाश करते हुए वे यूसुफके नगरमें पहुँचे। उन्हें देखकर लोगोंने कहा 'आप फकीर हैं, आपका चरित्र निर्मल है। आश्चर्य है, आप सर्वथा चरित्रहीन और विधर्मी यूसुफके पास जाना चाहते हैं। उसके पास जानेसे अपयशके अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं आ सकेगा।'

निराश होकर अबु उस्मान पुनः नेशापुर लौट आये। अबु हाफिजने सारा समाचार सुनकर पुनः समझा-बुझाकर उन्हें महात्मा यूसुफके पास भेजा। अबकी बार उन्होंने यूसुफकी और अधिक निन्दा सुनी। पर अबकी बार उन्होंने संतसे मिलनेका निश्चय कर लिया था ।

पूछते हुए वे यूसुफकी झोपड़ीके समीप पहुँचे। उन्होंने देखा झोपड़ीके द्वारपर एक तेजस्वी वृद्ध पुरुष बैठा है और उसके पास बोतल और प्याला पड़ा है।उस्मानने उन्हें सलाम किया और उनके चरणोंमें बैठ गये। यूसुफने उन्हें बहुत अच्छे उपदेश दिये। भगवान्की भक्ति, उनका प्रेम तथा जीवनका उपयोग आदि अत्यन्त मूल्यवान् बातें बतलायीं; जिससे उस्मान बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने विनयपूर्वक निवेदन किया- 'आपकी विद्या - बुद्धि, ज्ञान-वैराग्य, तप-तेज आदि सभी अद्भुत हैं; किंतु आप अपने पास बोतल और प्याला लिये लोगों पर बुरा प्रभाव क्यों डालते हैं? इससे आपकी बड़ी निन्दा होती है।'

यूसुफने कहा- 'मेरे पास पानीके लिये कोई बर्तन नहीं है। इसलिये बोतल साफ करके इसमें पानी भर लिया है। पानी पीनेके लिये यह प्याला रख लिया है।'उस्मानने विनयपूर्वक निवेदन किया-'पर बदनामी तो इसीसे होती है। लोग व्यर्थ ही भाँति-भाँतिके आक्षेप करते हैं। आप इसे फेंक क्यों नहीं देते ?'

यूसुफने उत्तर दिया- 'इसीलिये तो मैंने यह बोतल और प्याला रख छोड़ा है। चरित्रहीन एवं निन्दित प्रसिद्ध होनेके कारण ही तो मेरे पास कोई नहीं आता। मैं निश्चिन्त होकर भगवद्भजनमें लगा रहता हूँ । यदि मेरी ख्याति हो जाय तो मेरे पास भी कोई सौदागर अपनी सुन्दरी दासी नहीं रख दे। कितने लाभमें हूँ मैं, सोच लो। '

उस्मान समझ गये। वे महात्मा यूसुफके चरणोंपर गिर पड़े और बड़ी देरतक रोते रहे। - शि0 दु0



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surakshaartha

ek saudaagar tha neshaapuramen. usake yahaan ek daasee thee atyant sundaree . usaka ek rinee gaanv chhoda़kar chala gayaa. saudaagarako takaajonke liye jaana thaa; kintu laavanyamayee yuvatee daaseeko kahaan rakhe, yah prashn tha . gaanvamen usakee drishtimen ek bhee aisa vyakti naheen tha, jisake vahaan vah use rakh jaata . antamen use sant abu usmaan khaireeka smaran aayaa. vah unake paas gaya aur daaseeko apane paas rakh lenekee praarthana kee. pahale to unhonne asveekaar kiya, kintu bahut praarthana karanepar maan gaye. daasee usmaanake yahaan aakar rahane lagee. daivayogase ek din usmaanakee drishti daaseepar pada़ee. usaka saundary dekhakar ve mugdh ho gaye. unaka chitt asthir rahane lagaa. prayatn karanepar bhee unaka man sthir naheen hota, ve ashaant rahane lage. raha-rahakar unaka man us saundaryamayee puttalikaakee smritimen lag jaata . vivashatah ve dharmaachaary abu haaphijake paas pahunche auraapanee sampoorn vyathaa-katha unhen sunaayee. haaphiज़ne kahaa- aap sant yoosuphake paas jaayen. talaash karate hue ve yoosuphake nagaramen pahunche. unhen dekhakar logonne kaha 'aap phakeer hain, aapaka charitr nirmal hai. aashchary hai, aap sarvatha charitraheen aur vidharmee yoosuphake paas jaana chaahate hain. usake paas jaanese apayashake atirikt aur kuchh haath naheen a sakegaa.'

niraash hokar abu usmaan punah neshaapur laut aaye. abu haaphijane saara samaachaar sunakar punah samajhaa-bujhaakar unhen mahaatma yoosuphake paas bhejaa. abakee baar unhonne yoosuphakee aur adhik ninda sunee. par abakee baar unhonne santase milaneka nishchay kar liya tha .

poochhate hue ve yoosuphakee jhopada़eeke sameep pahunche. unhonne dekha jhopada़eeke dvaarapar ek tejasvee vriddh purush baitha hai aur usake paas botal aur pyaala pada़a hai.usmaanane unhen salaam kiya aur unake charanonmen baith gaye. yoosuphane unhen bahut achchhe upadesh diye. bhagavaankee bhakti, unaka prem tatha jeevanaka upayog aadi atyant moolyavaan baaten batalaayeen; jisase usmaan bahut prabhaavit hue. unhonne vinayapoorvak nivedan kiyaa- 'aapakee vidya - buddhi, jnaana-vairaagy, tapa-tej aadi sabhee adbhut hain; kintu aap apane paas botal aur pyaala liye logon par bura prabhaav kyon daalate hain? isase aapakee bada़ee ninda hotee hai.'

yoosuphane kahaa- 'mere paas paaneeke liye koee bartan naheen hai. isaliye botal saaph karake isamen paanee bhar liya hai. paanee peeneke liye yah pyaala rakh liya hai.'usmaanane vinayapoorvak nivedan kiyaa-'par badanaamee to iseese hotee hai. log vyarth hee bhaanti-bhaantike aakshep karate hain. aap ise phenk kyon naheen dete ?'

yoosuphane uttar diyaa- 'iseeliye to mainne yah botal aur pyaala rakh chhoda़a hai. charitraheen evan nindit prasiddh honeke kaaran hee to mere paas koee naheen aataa. main nishchint hokar bhagavadbhajanamen laga rahata hoon . yadi meree khyaati ho jaay to mere paas bhee koee saudaagar apanee sundaree daasee naheen rakh de. kitane laabhamen hoon main, soch lo. '

usmaan samajh gaye. ve mahaatma yoosuphake charanonpar gir pada़e aur bada़ee deratak rote rahe. - shi0 du0

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