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अनन्य आशा  [शिक्षदायक कहानी]
आध्यात्मिक कथा - Wisdom Story (प्रेरक कथा)

कवि श्रीपतिजी निर्धन ब्राह्मण थे, पर थे बड़े तपस्वी, धर्मपरायण, निर्भीक भगवद्धक भगवान्‌में आपका पूर्ण विश्वास था। आप भिक्षा माँगकर लाते, उसीसे अपने परिवारका पालन पोषण करते। ब्राह्मणी आपसे बार-बार कहती- 'नाथ! आप कोई काम कीजिये, जिससे घरका काम चले।' पर आप उसे यही उत्तर देते कि 'ब्राह्मणोंका परम धर्म भजन करना ही है।' एक दिन पत्नीने आपको बहुत विवश करके प्रार्थना की- 'आप इतने बड़े कवि हैं और आपका काव्य-सौन्दर्य अत्यन्त मन मोहक है। सुना है बादशाह अकबरको कविता सुननेका बहुत शौक है आप उनके दरबारमें एक बार अवश्य जायें।' पत्नीके बहुत आग्रह करनेपर श्रीपतिजी अकबरके दरबारमें गये और गुणग्राही बादशाहको जब अपनी स्वरचित कवितामें भगवान् श्रीरामके गुणसमूहको सुनाया, तब बादशाह गद्गद हो गये और इनको अपने दरबारमें रख लिया ये दरबारी कवि हो गये, परंतु इन्होंने बादशाहकी प्रशंसामें कभी एक भी रचना नहीं की; ये केवल भगवत्सम्बन्धी रचना ही करते थे। दरबारकेदूसरे कविगण दिन-रात बादशाहके गुण-गानमें ही लगे रहते थे। वे मानो भगवान्की सत्ताको ही भूले हुए थे। अकबर श्रीपतिजीकी कवितापर प्रसन्न होकर उन्हें समय-समयपर अच्छा इनाम दिया करते थे, इससे वे सब इनसे जलते थे। उन सबने मिलकर इन्हें नीचा दिखानेकी युक्ति सोची और बादशाहको समझाने की चेष्टा की कि श्रीपति तो आपका अपमान करता है।

एक दिन दरबारमें सबने मिलकर एक समस्या रखी – 'करौ मिलि आस अकब्बरकी' और प्रस्ताव किया कि कल सब कवि इसी समस्याकी पूर्ति करें। सबने सोचा- देखें अब श्रीपति क्या करते हैं।' उन्हें कहाँ पता था कि यह लोभी टुकड़खोर ब्राह्मण नहीं है, यह तो भगवान्का परम विश्वासी है। दूसरे दिन दरबारमें भीड़ लग गयी। सभीकी दृष्टि श्रीपतिजीकी ओर थी। इधर श्रीपतिजी भगवान्पर विश्वास करके निश्चिन्त अपने स्थानपर बैठे प्रभुका स्मरण कर रहे थे। सब कवियोंने बारी-बारीसे बादशाहकी प्रशंसामें लिखी कविताएँ सुनायीं। सबने दिल खोलकर अकबरकीप्रशंसाके पुल बाँधे। तदनन्तर भक्त श्रीपतिजीकी बारी आयी। वे निर्भय निश्चिन्त मुसकराते हुए उठे और उन्होंने निम्नलिखित कवित्त सुनाया-

अबके सुलतां फनियान समान हैं, बाँधत पाग अटब्बरकी ।

तजि एक को दूसरे को जु भजै, कटि जीभ गिरै वा लब्बरकी ॥

सरनागत 'श्रीपति' रामहि की, नहिं त्रास है काहुहि जब्बरकी ।

जिनको हरिमें परतीति नहीं, सो करौ मिलि आस अकब्बरकी ॥

इस कवित्तको सुनते ही सब द्वेषी लोग भौंचक्के हो गये, उनके होश गुम हो गये और चेहरे फीके पड़ गये । भगवत्प्रेमी दरबारी और दर्शकोंके मुख खिल उठे। बादशाह प्रसन्न हो गये श्रीपतिजीकी निष्ठा और रचना चातुरी देखकर । धन्य विश्वास !



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anany aashaa

kavi shreepatijee nirdhan braahman the, par the bada़e tapasvee, dharmaparaayan, nirbheek bhagavaddhak bhagavaan‌men aapaka poorn vishvaas thaa. aap bhiksha maangakar laate, useese apane parivaaraka paalan poshan karate. braahmanee aapase baara-baar kahatee- 'naatha! aap koee kaam keejiye, jisase gharaka kaam chale.' par aap use yahee uttar dete ki 'braahmanonka param dharm bhajan karana hee hai.' ek din patneene aapako bahut vivash karake praarthana kee- 'aap itane bada़e kavi hain aur aapaka kaavya-saundary atyant man mohak hai. suna hai baadashaah akabarako kavita sunaneka bahut shauk hai aap unake darabaaramen ek baar avashy jaayen.' patneeke bahut aagrah karanepar shreepatijee akabarake darabaaramen gaye aur gunagraahee baadashaahako jab apanee svarachit kavitaamen bhagavaan shreeraamake gunasamoohako sunaaya, tab baadashaah gadgad ho gaye aur inako apane darabaaramen rakh liya ye darabaaree kavi ho gaye, parantu inhonne baadashaahakee prashansaamen kabhee ek bhee rachana naheen kee; ye keval bhagavatsambandhee rachana hee karate the. darabaarakedoosare kavigan dina-raat baadashaahake guna-gaanamen hee lage rahate the. ve maano bhagavaankee sattaako hee bhoole hue the. akabar shreepatijeekee kavitaapar prasann hokar unhen samaya-samayapar achchha inaam diya karate the, isase ve sab inase jalate the. un sabane milakar inhen neecha dikhaanekee yukti sochee aur baadashaahako samajhaane kee cheshta kee ki shreepati to aapaka apamaan karata hai.

ek din darabaaramen sabane milakar ek samasya rakhee – 'karau mili aas akabbarakee' aur prastaav kiya ki kal sab kavi isee samasyaakee poorti karen. sabane sochaa- dekhen ab shreepati kya karate hain.' unhen kahaan pata tha ki yah lobhee tukada़khor braahman naheen hai, yah to bhagavaanka param vishvaasee hai. doosare din darabaaramen bheeda़ lag gayee. sabheekee drishti shreepatijeekee or thee. idhar shreepatijee bhagavaanpar vishvaas karake nishchint apane sthaanapar baithe prabhuka smaran kar rahe the. sab kaviyonne baaree-baareese baadashaahakee prashansaamen likhee kavitaaen sunaayeen. sabane dil kholakar akabarakeeprashansaake pul baandhe. tadanantar bhakt shreepatijeekee baaree aayee. ve nirbhay nishchint musakaraate hue uthe aur unhonne nimnalikhit kavitt sunaayaa-

abake sulataan phaniyaan samaan hain, baandhat paag atabbarakee .

taji ek ko doosare ko ju bhajai, kati jeebh girai va labbarakee ..

saranaagat 'shreepati' raamahi kee, nahin traas hai kaahuhi jabbarakee .

jinako harimen parateeti naheen, so karau mili aas akabbarakee ..

is kavittako sunate hee sab dveshee log bhaunchakke ho gaye, unake hosh gum ho gaye aur chehare pheeke pada़ gaye . bhagavatpremee darabaaree aur darshakonke mukh khil uthe. baadashaah prasann ho gaye shreepatijeekee nishtha aur rachana chaaturee dekhakar . dhany vishvaas !

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