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सहायता लेनेमें संकोच  [शिक्षदायक कहानी]
Hindi Story - शिक्षदायक कहानी (हिन्दी कहानी)

एक घुड़सवार कहीं जा रहा था। उसके हाथसे चाबुक गिर पड़ा। उसके साथ उस समय बहुत से मुसाफिर पैदल चल रहे थे; परंतु उसने किसीसे चाबुक उठाकर दे देनेके लिये नहीं कहा। खुद घोड़ेसे उतरा और चाबुक उठाकर फिर सवार हो गया। यह देखकर साथ चलनेवाले मुसाफिरोंने कहा- 'भाई साहब! आपने इतनी तकलीफ क्यों की? चाबुक हमीं लोग उठाकर दे देते, इतने से कामके लिये आप क्यों उतरे ?"

घुड़सवारने कहा- 'भाइयो! आपका कहना तो बहुत ही सज्जनताका है, परंतु मैं आपसे ऐसी मदद क्योंकर ले सकता हूँ! प्रभुकी यही आज्ञा है कि जिससे उपकार प्राप्त हो, बदलेमें जहाँतक हो सके, उसका उपकार करना चाहिये। उपकारके बदलेमें प्रत्युपकार करनेकी स्थिति हो, तभी उपकारका भार सिर उठाना चाहिये। मैं आपको पहचानता नहीं, न तो आप ही मुझको जानते हैं। राहमें अचानक हमलोगोंका साथ हो गया है, फिर कब मिलना होगा, इसका कुछ भी पता नहीं है। ऐसी हालतमें मैं उपकारका भार कैसे उठाऊँ ?'यह सुनकर मुसाफिरोंने कहा- 'अरे भाई साहब! इसमें उपकार क्या है ? आप जैसे भले आदमीके हाथसे चाबुक गिर पड़ा, उसे उठाकर हमने दे दिया। हमें इसमें मेहनत ही क्या हुई ?'

घुड़सवारने कहा- 'चाहे छोटी-सी बात या छोटा सा ही काम क्यों न हो, मैं लेता तो आपकी मदद ही न? छोटे-छोटे कामोंमें मदद लेते-लेते ही बड़े कामों में भी मदद लेनेकी आदत पड़ जाती है और आगे चलकर मनुष्य अपने स्वावलम्बी स्वभावको खोकर पराधीन बन जाता है। आत्मामें एक तरहकी सुस्ती आ जाती है और फिर छोटी-छोटी बातोंमें दूसरोंका मुँह ताकनेकी बान पड़ जाती है। यही मनमें रहता है, मेरा यह काम कोई दूसरा कर दे, मुझे हाथ-पैर कुछ भी न हिलाने पड़ें। इसलिये जबतक कोई विपत्ति न आवे या आत्माकी उन्नतिके लिये आवश्यक न हो, तबतक केवल आरामके लिये किसीसे किसी तरहकी भी मदद नहीं लेनी चाहिये। जिनको मददकी जरूरत न हो, वे जब मदद लेने लगते हैं, तब जिनको जरूरत होती है, उन्हें मदद मिलनी मुश्किल हो जाती है।'



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sahaayata lenemen sankocha

ek ghuda़savaar kaheen ja raha thaa. usake haathase chaabuk gir pada़aa. usake saath us samay bahut se musaaphir paidal chal rahe the; parantu usane kiseese chaabuk uthaakar de deneke liye naheen kahaa. khud ghoda़ese utara aur chaabuk uthaakar phir savaar ho gayaa. yah dekhakar saath chalanevaale musaaphironne kahaa- 'bhaaee saahaba! aapane itanee takaleeph kyon kee? chaabuk hameen log uthaakar de dete, itane se kaamake liye aap kyon utare ?"

ghuda़savaarane kahaa- 'bhaaiyo! aapaka kahana to bahut hee sajjanataaka hai, parantu main aapase aisee madad kyonkar le sakata hoon! prabhukee yahee aajna hai ki jisase upakaar praapt ho, badalemen jahaantak ho sake, usaka upakaar karana chaahiye. upakaarake badalemen pratyupakaar karanekee sthiti ho, tabhee upakaaraka bhaar sir uthaana chaahiye. main aapako pahachaanata naheen, n to aap hee mujhako jaanate hain. raahamen achaanak hamalogonka saath ho gaya hai, phir kab milana hoga, isaka kuchh bhee pata naheen hai. aisee haalatamen main upakaaraka bhaar kaise uthaaoon ?'yah sunakar musaaphironne kahaa- 'are bhaaee saahaba! isamen upakaar kya hai ? aap jaise bhale aadameeke haathase chaabuk gir pada़a, use uthaakar hamane de diyaa. hamen isamen mehanat hee kya huee ?'

ghuda़savaarane kahaa- 'chaahe chhotee-see baat ya chhota sa hee kaam kyon n ho, main leta to aapakee madad hee na? chhote-chhote kaamonmen madad lete-lete hee bada़e kaamon men bhee madad lenekee aadat pada़ jaatee hai aur aage chalakar manushy apane svaavalambee svabhaavako khokar paraadheen ban jaata hai. aatmaamen ek tarahakee sustee a jaatee hai aur phir chhotee-chhotee baatonmen doosaronka munh taakanekee baan pada़ jaatee hai. yahee manamen rahata hai, mera yah kaam koee doosara kar de, mujhe haatha-pair kuchh bhee n hilaane pada़en. isaliye jabatak koee vipatti n aave ya aatmaakee unnatike liye aavashyak n ho, tabatak keval aaraamake liye kiseese kisee tarahakee bhee madad naheen lenee chaahiye. jinako madadakee jaroorat n ho, ve jab madad lene lagate hain, tab jinako jaroorat hotee hai, unhen madad milanee mushkil ho jaatee hai.'

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