धर्मराज बोले- हे साध्वि ! भगवान् श्रीहरिकी सेवामें संलग्न रहनेवाला, विशुद्धात्मा, योगसिद्ध, व्रती, तपस्वी तथा ब्रह्मचारी पुरुष निश्चित ही नरकमें नहीं जाता ॥ 1 ॥
जो बलशाली मनुष्य बलके अभिमानमें आकर अपने कटुवचनसे बान्धवोंको दग्ध करता है, वह वह्निकुण्ड नामक नरकमें जाता है और अपने शरीरमें विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक उस | वह्निकुण्डमें वास करके वह तीन जन्मोंतक रौद्रदग्ध पशुयोनि प्राप्त करता है ॥ 2-3 ॥
जो मूर्ख घरपर आये हुए भूखे-प्यासे दुःखी ब्राह्मणको भोजन नहीं कराता है, वह तप्तकुण्ड नामक नरकमें जाता है। उस ब्राह्मणके शरीरमें विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक उस दुःखप्रद नरकमें वास करके वह सात जन्मोंतक पक्षीकी योनिमें पैदा होकर तपते हुए स्थानपर वह्निशय्यापर यातना भोगता है ।। 4-5 llजो मनुष्य रविवार, सूर्यसंक्रान्ति, अमावास्या और श्राद्धके अवसरपर क्षार पदार्थोंसे वस्त्र धोता है, वह क्षारकुण्ड नामक नरकमें जाता है और उस वस्त्रमें विद्यमान सूतोंकी संख्या बराबर वर्षोंतक वहाँ निवास करता है। इसके बाद भारतवर्षमें सात जन्मोंतक है। रजकयोनिमें उसे जन्म लेना पड़ता है ॥ 6-7 ॥
जो अधम मनुष्य मूलप्रकृति भगवती जगदम्बाकी निन्दा करता है, जो वेद-शास्त्र तथा पुराणोंकी निन्दा करता है, जो ब्रह्मा-विष्णु-शिव आदि देवताओंकी निन्दामें संलग्न रहता है और जो मनुष्य गौरी सरस्वती आदि देवियोंकी निन्दामें तत्पर रहता है वे सब उस भयानक नरककुण्डमें जाते हैं, जिससे बढ़कर दुःखदायी दूसरा कोई कुण्ड नहीं होता। उस कुण्डमें अनेक कल्पोंतक वास करके वह मनुष्य सर्पयोनिको प्राप्त होता है भगवतीकी निन्दाके अपराधका कोई प्रायश्चित्त ही नहीं है ॥ 8-11 ॥
जो मनुष्य अपने या दूसरेके द्वारा दी गयी देवता अथवा ब्राह्मणकी वृत्तिको छीनता है, वह साठ हजार वर्षोंके लिये विट्कुण्ड नामक नरकमें जाता है और उतने ही वर्षोंतक विष्ठाभोजी बनकर वहाँ रहता है। इसके बाद वह पुनः पृथ्वीपर साठ हजार वर्षोंतक विष्ठाका कृमि होता है ।। 12-13 ll
जो व्यक्ति दूसरोंके बनवाये तड़ागमें अपने नामसे निर्माण करता है और फिर जनताके लिये उसका उत्सर्ग (लोकार्पण) करता है, वह उस दोषके कारण मूत्रकुण्ड नामक नरकमें जाता है। वहाँपर वह उस तड़ागके रज कणकी संख्याके बराबर वर्षोंतक उसी मूत्र आदिको ग्रहण करते हुए रहता है और पुनः भारतवर्षमें पूरे सौ वर्षोंतक वृषको योनिमें रहता है ॥ 14-15 ॥
जो अकेले ही मिष्टान्न आदिका भक्षण करता है, वह श्लेष्मकुण्ड नामक नरकमें जाता है और उसी श्लेष्माको खाते हुए पूरे सौ वर्षोंतक वहाँ रहता है। इसके बाद वह भारतवर्षमें पूरे सौ वर्षोंतक प्रेतयोनिमें पड़ा रहता है; यहाँ श्लेष्मा, मूत्र तथा पीव आदिका उसे भक्षण करना पड़ता है, तत्पश्चात् उसकी शुद्धि हो जाती है। ll 16-17 ॥जो मनुष्य माता, पिता, गुरु, पत्नी, पुत्र, पुत्री और अनाथका भरण-पोषण नहीं करता; वह गरकुण्ड (विषकुण्ड) नामक नरकमें जाता है और वहाँपर उसी विषको खाते हुए वह पूरे सौ वर्षोंतक पड़ा रहता है। तदनन्तर वह सौ वर्षोंतकके लिये भूतयोनिमें जाता है, इसके बाद वह शुद्ध होता है ।। 18-19॥
जो मनुष्य अतिथिको देखकर [उसके प्रति उपेक्षाभावसे] अपनी दृष्टिको वक्र कर लेता है, उस पापीके जलको देवता तथा पितर ग्रहण नहीं करते और ब्रह्महत्या आदि जो कुछ भी पाप हैं, उन सबका फल उसे इसी लोकमें भोगना पड़ता है। अन्तमें वह दूषिकाकुण्ड नामक नरकमें जाता है और वहाँपर दूषित पदार्थोंको खाते हुए पूरे सौ वर्षोंतक निवास करता है। तत्पश्चात् सौ वर्षोंतक भूतयोनिमें रहनेके अनन्तर उसकी शुद्धि हो जाती है ll 20-22 ॥
यदि कोई मनुष्य ब्राह्मणको द्रव्यका दान करनेके बाद वह द्रव्य किसी अन्यको दे देता है, तो वह वसाकुण्ड नामक नरकमें जाता है और उसी वसाको खाते हुए उसे सौ वर्षोंतक वहीं रहना पड़ता है। तदनन्तर उसे भारतवर्षमें सात जन्मोंतक गिरगिट होना पड़ता है। उसके बाद वह महान् क्रोधी, दरिद्र तथा अल्पायु प्राणीके रूपमें जन्म लेता है ।। 23-24 ॥
यदि कोई स्त्री परपुरुषसे सम्बन्ध रखती है अथवा कोई पुरुष परनारीमें वीर्याधान करता है, वह शुक्रकुण्ड नामक नरकमें जाता है वहाँपर उसी वीर्यको खाते हुए उसे पूरे सौ वर्षोंतक रहना पड़ता है। इसके बाद वह सौ वर्षोंतक कीटयोनिमें रहता है, तदनन्तर शुद्ध होता है ।। 25-26 ll
जो व्यक्ति गुरु अथवा ब्राह्मणको मारकर उनके शरीरसे रक्त बहाता है, वह अस्कृकुण्ड नामक नरकमें जाता है और उसी रक्तका पान करते हुए उसे वहाँ सौ वर्षोंतक रहना पड़ता है। तदनन्तर वह भारतवर्षमें सात जन्मोंतक व्याघ्रका जन्म प्राप्त करता है। इस प्रकार वह क्रमसे शुद्ध होता है और वह फिरसे मानवयोनिमें जन्म लेता है ॥ 27-28 ॥भगवान् श्रीकृष्णका प्रेमपूर्वक गुणगान करनेवाले भक्तको देखकर जो मनुष्य खेदपूर्वक आँसू बहाता है तथा उनके गुणसम्बन्धी संगीतके अवसरपर जो उपहास करता है, वह सौ वर्षोंतक अश्रुकुण्ड नामक नरकमें वास करता है और वहाँ उसी अनुको भोजनके रूपमें उसे ग्रहण करना पड़ता है, तत्पश्चात् वह तीन जन्मोंतक चाण्डालकी योनिमें पैदा होता है, तब वह शुद्ध होता है ।। 29-30 ॥
उसी प्रकार जो मनुष्य सहृदय व्यक्तिके साथ सदा शठताका व्यवहार करता है, वह गात्रमलकुण्ड नामक नरकमें जाता है और सौ वर्षोंतक वहाँ वास करता है। तदनन्तर वह तीन जन्मोंतक गर्दभ योनिमें तथा तीन जन्मोंतक श्रृंगाल-योनिमें जन्म लेता है, इसके बाद वह निश्चित ही शुद्ध हो जाता है ।। 31-32 ।।
जो मनुष्य किसी बहरेको देखकर हँसता है और अभिमानपूर्वक उसको निन्दा करता है, वह कर्णविरकुण्ड नामक नरकमें सौ वर्षोंतक वास करता है और वहाँ रहते हुए कानकी मैलका भोजन करता है। तत्पश्चात् वह सात जन्मोंतक दरिद्र तथा बहरा होता है। पुनः सात जन्मोंतक अंगहीन होकर वह जन्म लेता है, तदनन्तर उसकी शुद्धि होती है ॥ 33-34 ll
जो मनुष्य लोभके वशीभूत होकर अपने भरण पोषणके लिये जीवोंकी हत्या करता है, वह मज्जाकुण्ड नामक नरकमें लाख वर्षोंतक वास करता है और वहाँपर भोजनमें उसे वही मज्जा ही मिलती है। तदनन्तर वह सात जन्मोंतक खरगोश और मछली, तीन जन्मोंतक सूअर और सात जन्मोंतक कुक्कुट होकर जन्म लेता है, फिर कर्मोंके प्रभावसे वह मृग आदि योनियाँ प्राप्त करता है, तत्पश्चात् वह शुद्धि प्राप्त कर लेता है । ll35-363 ।।
जो मनुष्य अपनी कन्याको पाल-पोसकर धनके लोभसे उसे बेच देता है, वह महामूर्ख मांसकुण्ड नामक नरकमें जाता है। उस कन्याके शरीर में | विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षांतक वह उस | नरकमें रहता है और वहाँपर उसे भोजनके रूपमें वहीमांस खाना पड़ता है। यमदूत उसपर दण्ड प्रहार करते हैं। उसे मांस तथा रक्तका बोझ मस्तकपर उठाकर ढोना पड़ता है और रक्त आदिको चाटकर वह अपनी क्षुधा शान्त करता है। तत्पश्चात् वह पापी साठ हजार वर्षोंतक भारतवर्षमें उस कन्याकी विष्ठाका कीड़ा बनकर रहता है। इसके बाद भारतवर्षमें सात जन्मोंतक व्याध, तीन जन्मोंतक सूअर, सात जन्मोंतक कुक्कुट, सात जन्मोंतक मेढक और जोंक तथा पुनः सात जन्मोंतक कौएकी योनि प्राप्त करता है, तत्पश्चात् वह शुद्ध होता है । ll 37-413 ।।
जो मनुष्य व्रतों, उपवासों और श्राद्धों आदिके अवसरपर क्षौरकर्म करता है, वह सम्पूर्ण कर्मोंके लिये अपवित्र हो जाता है। हे सुन्दरि ! वह नख आदि कुण्डोंमें उन दिनोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक वास करता है, उन्हीं दुष्पदार्थोंका भक्षण करता है और डण्डोंसे पीटा जाता है ।। 42-436 ॥
जो भारतवर्षमें केशयुक्त मिट्टीसे बने पार्थिव लिंगकी पूजा करता है, वह उस मृदामें विद्यमान रजकणोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक केशकुण्ड नामक नरकमें निवास करता है। तदनन्तर भगवान् शिवके कोपके कारण वह यवनयोनिमें जन्म लेता है और फिर वह राक्षसयोनिमें जन्म ग्रहण करता है तथा सौ वर्षके पश्चात् उसकी शुद्धि हो जाती है ।। 44-45 ।।
जो मनुष्य विष्णुपदतीर्थ ( गयातीर्थ) में पितरोंको पिण्ड नहीं देता, वह अपने शरीरके रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक अस्थिकुण्ड नामक अत्यन्त भयानक कुण्डमें वास करता है। तत्पश्चात् वह मानवयोनि प्राप्तकर सात जन्मोंतक लंगड़ा तथा महान् दरिद्र होता है। तत्पश्चात् उसकी देहशुद्धि हो जाती है ll 46-476 ॥
जो महामूर्ख मनुष्य अपनी गर्भवती स्त्रीके साथ सहवास करता है, वह सौ वर्षोंतक अत्यन्त तपते हुए ताम्रकुण्ड नामक नरकमें निवास करता है ।। 48 । जो व्यक्ति पति पुत्रहीन स्त्री तथा ऋतुस्नाता स्त्रीका अन्न खाता है, वह जलते हुए लोहकुण्ड नामक नरकमें सौ वर्षोंतक रहता है। इसके बाद वहसात जन्मोंतक रजक तथा कौएकी योनि पाता है। उस समय वह दरिद्र रहता है और विशाल घावोंसे युक्त रहता है, तदनन्तर वह मनुष्य शुद्ध हो जाता है ।। 49-503 ।।
जो व्यक्ति चर्मसे स्पर्शित हाथके द्वारा देवद्रव्यका स्पर्श करता है, वह सौ वर्षोंतक चर्मकुण्ड नामक नरकमें वास करता है ।। 513 ।।
जो ब्राह्मण किसी शूद्रसे स्वीकृति प्राप्तकर उसका अन्न खाता है, वह तप्तसुराकुण्ड नामक नरकमें सौ वर्षोंतक वास करता है। तत्पश्चात् वह सात जन्मोंतक शुद्रवाजी का यज्ञ करानेवाला ब्रह्मण होता है। और शूद्रोंका श्राद्धान्न ग्रहण करता है, तदनन्तर वह अवश्य ही शुद्ध हो जाता है ॥ 52-533 ॥
जो कटुभाषी मनुष्य कठोर वचनके द्वारा अपने स्वामीको सदा पीडित करता रहता है, वह तीक्ष्णकण्टककुण्ड नामक नरकमें वास करता है। और उसे वहाँपर कण्टक ही खानेको मिलते हैं। यमदूतके द्वारा डंडेसे वह चार गुना ताडित किया जाता है। उसके बाद वह सात जन्मतक अश्वकी योनि प्राप्त करता है, फिर वह शुद्ध हो जाता है ।। 54-553 ॥
जो दयाहीन मनुष्य विषके द्वारा किसी प्राणीको हत्या करता है, वह हजार वर्षोंतक विषकुण्ड नामक नरकमें रहता है और वहाँपर उसे उसी विषका भोजन करना पड़ता है। उसके बाद वह नरघाती सात जन्मोंतक बड़े-बड़े घावोंसे युक्त तथा सात जन्मोंतक कोढ़से ग्रस्त रहता है, तत्पश्चात् वह अवश्य ही शुद्ध हो जाता है ।। 56-573 ॥
पुण्यक्षेत्र भारतवर्षमें जो वृषवाहक गायको और बैलको डण्डेसे स्वयं मारता है अथवा सेवकके द्वारा मरवाता है, उसे चार युगोंतक तपते हुए तैलकुण्ड | नामक नरकमें वास करना पड़ता है और तत्पश्चात् उस गायके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने वर्षोंतक उसे बैल होना पड़ता है ॥ 58-593 ।।
हे साध्वि ! जो मनुष्य भालेसे अथवा अग्निमें तपाये गये लोहेसे किसी प्राणीकी उपेक्षापूर्वक हत्या कर देता है, वह दस हजार वर्षोंतक कुन्तकुण्डनामक नरक में वास करता है। तत्पश्चात् उत्तम मानवयोनिमें जन्म प्राप्त करके वह उदररोगसे पीडित होता है। इस प्रकार एक ही जन्ममें | कष्ट भोगनेके पश्चात् वह मनुष्य शुद्ध हो जाता है ।। 60-613 ।।
जो अधम द्विज भगवत्प्रसादका त्याग करके मांसस्वादके लोभसे व्यर्थ ही मांस भक्षण करता है, वह कृमिकुण्डमें जाता है। वहाँ अपने शरीरके रोमोंकी संख्याके समान वर्षोंतक रोमका ही भक्षण करता हुआ वह पड़ा रहता है। फिर तीन जन्मोंतक म्लेच्छ जातिमें जन्म लेकर पुनः द्विज होता है ।। 62-633 ॥
जो ब्राह्मण शूद्रोंका यज्ञ कराता है, शूद्रोंका श्राद्धान्न खाता है तथा शूद्रोंका शव जलाता है, वह अपने शरीरमें जितने रोएँ हैं उतने वर्षोंतक पूयकुण्ड नामक नरक में अवश्य वास करता है। हे सुव्रते ! वह उस नरकमे यमदूतके द्वारा यमदण्डसे पीटा जाता है तथा पीवका भोजन करते हुए पड़ा रहता है। तत्पश्चात् वह भारतवर्षमें जन्म लेकर सात जन्मोंतक शूद्र रहता है। उस समय वह अत्यन्त रोगी, दरिद्र, बहरा तथा गूँगा रहता है ॥ 64-663 ॥
कृष्णवर्णवाले तथा जिसके मस्तकपर कमल चिह्न विद्यमान हो, उस सर्पको जो मनुष्य भारता है. वह अपने शरीरके रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतकके लिये सर्पकुण्ड नामक नरकमें जाता है। उसे वहाँपर सर्प काटते हैं तथा यमदूत उसे पीटते हैं। सर्पकी विष्ठा खाते हुए वह उस नरकमें वास करता है। तत्पश्चात् उसे निश्चय ही सर्पयोनि प्राप्त होती है । तदनन्तर वह मानवयोनि प्राप्त करता है, उस समय वह दाद आदि रोगोंसे युक्त तथा अल्प आयुवाला होता है। उसके बाद सर्पके काटनेसे अत्यन्त कष्टपूर्वक उसकी मृत्यु होती है, यह निश्चित है ।। 67-693 ।।
ब्रह्माके विधानके अनुसार रक्तपान आदिपर जीवित रहनेवाले [मच्छर आदि] क्षुद्र जन्तुओंको जो व्यक्ति मारता है, वह उन जन्तुओंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक दंशकुण्ड और मशककुण्ड नामक नरकमेंनिवास करता है। वे जन्तु उसे दिन-रात काटते रहते हैं, उसे वहाँ खानेको कुछ भी नहीं मिलता और वह जोर-जोरसे रोता-चिल्लाता रहता है। यमदूत | उसके हाथ-पैर बांधकर उसे पीटते हैं। तत्पश्चात् वह | उन्हीं क्षुद्र जन्तुओंकी योनिमें जाता है और पुनः यवनजातिमें जन्म लेता है। तदनन्तर वह अंगहीन | मानव होकर जन्म लेता है, तब उसकी शुद्धि हो जाती है । ll 70-726 ॥
जो मूर्ख मनुष्य मधुमक्खियोंको मारकर मधुका भक्षण करता है, वह उन मारी गयी मक्खियोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक गरलकुण्डमें वास करता है। वहाँपर उसे मधुमक्खियों काटती रहती हैं, वह सदा विषसे जलता रहता है और यमदूत उसे पीटते रहते हैं। उसके बाद वह मक्खियोंकी योनिमें जन्म लेता है, तदनन्तर उसकी शुद्धि होती है ॥ 73-743 ॥
जो मनुष्य किसी विप्रको अथवा दण्ड न देनेयोग्य किसी व्यक्तिको दण्डित करता है, वह वज्रके समान दाँतोंवाले भयानक जन्तुओंसे भरे वज्रदंष्ट्रकुण्ड नामक नरकमें शीघ्र ही जाता है। उस दण्डित व्यक्तिके शरीरमें जितने रोम होते हैं उतने वर्षोंतक वह उस नरकमें निवास करता है। उसे | नरकके वे कीड़े दिन रात काटते रहते हैं और वह चीखता-चिल्लाता है। हे भद्रे ! यमदूत उसे सदा पीटते रहते हैं, जिससे वह रोता है और प्रतिक्षण हाहाकार करता रहता है। तदनन्तर वह सात जन्मोंतक सूअरकी योनिमें और तीन जन्मोंतक कौवेकी योनिमें उत्पन्न होता है, उसके बाद वह मनुष्य शुद्ध हो जाता है ।। 75–78 ।।
जो मूर्ख धनके लोभसे प्रजाको दण्ड देता है, वह वृश्चिककुण्ड नामक नरकमें जाता है और उस प्रजाके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने वर्षोंतक उस नरकमें वास करता है। तत्पश्चात् सात जन्मोंतक वह | भारतवर्ष में बिच्छुओंकी योनिमें जन्म लेता है। इसके पश्चात् मनुष्ययोनिमें जन्म प्राप्त करता है तथा अंगहीन और रोगी होकर वह शुद्ध हो जाता है यह सत्य है । ll79-80 ॥जो ब्राह्मण शस्त्र लेकर दूसरे लोगोंके लिये दूतका काम करता है, जो विप्र सन्ध्या-वन्दन नहीं करता तथा जो भगवान् श्रीहरिकी भक्तिसे विमुख है, वह शर आदिके कुण्डोंमें (शरकुण्ड, शूलकुण्ड, खड्गकुण्ड आदिमें) अपने शरीर के रोगोंकी संख्या के बराबर वर्षोंतक निवास करता है। वह वहाँपर निरन्तर शर आदिसे बेधा जाता है, इसके पश्चात् वह मनुष्य शुद्ध हो जाता है ॥ 81-82 ॥
अभिमानमें चूर रहनेवाला जो व्यक्ति अन्धकारपूर्ण कारागारमें प्रजाओंको मारता पीटता है, वह अपने इस दोष के प्रभावसे गोलकुण्ड नामक नरकमें जाता है। वह गोलकुण्ड प्रतप्त कीचड़ तथा जलसे युक्त, अन्धकारपूर्ण, अत्यन्त भयंकर तथा तीखे दाँतोंवाले कीटोंसे परिपूर्ण है। उन कीड़ोंसे सदा काटा जाता हुआ वह व्यक्ति प्रजाओंके शरीरमें विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक उस नरकमें निवास करता है। तत्पश्चात् मनुष्यका जन्म पाकर वह उन प्रजाओंका सेवक बनता है, इस प्रकार क्रमसे वह शुद्ध हो जाता है । ll 83 - 85 ॥
जो मनुष्य सरोवरसे निकले हुए नक्र आदि जल-जन्तुओंकी हत्या करता है, वह नक्रकुण्ड नामक नरकमें जाता है और वहाँ उस नक्रके शरीरमें विद्यमान काँटोंकी संख्या बराबर वर्षोंतक निवास करता है। तत्पश्चात् वह निश्चितरूपसे नक्र आदि योनियोंमें जन्म लेता है और बार-बार दण्ड पानेपर शीघ्र ही उसकी शुद्धि हो जाती है । ll 86-87 ॥
जो मनुष्य पुण्यक्षेत्र भारतवर्षमें जन्म लेकर कामवासनाके वशीभूत हो परायी स्त्रीका वक्ष, नितम्ब, स्तन तथा मुख देखता है; वह अपने शरीरके रोमोंकी संख्या बराबर वर्षोंतक काककुण्ड नामक नरकमें वास करता है। वहाँ कौवे उसकी आँखें नोचते रहते हैं। तत्पश्चात् वह तीन जन्मोंतक संतप्त होता रहता है ।। 88-89 ॥
जो मूढ भारतवर्ष में जन्म पाकर देवता तथा ब्राह्मणका स्वर्ण चुराता है, वह अपने शरीरके रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक मन्धानकुण्ड नामक नरकमें अवश्य वास करता है। यमदूत उसकी आँखोंपर पट्टीबाँधकर उसे डण्डोंसे पीटते हैं। उसे वहाँ उनकी विष्ठा खानी पड़ती है। तत्पश्चात् वह तीन जन्मोंतक अन्धा तथा सात जन्मोंतक दरिद्र रहता है। तदनन्तर | वह पापी तथा अति क्रूर मनुष्य भारतमें स्वर्णकारका जन्म लेकर स्वर्णका व्यवसाय करता है ।। 90-92 ॥
हे सुन्दरि जो मनुष्य भारतवर्षमें जन्म पाकर ताँबे तथा लोहेकी चोरी करता है, वह बीजकुण्ड नामक नरकमें जाता है और अपने शरीरके रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक वहाँ निवास करता है। वहाँ कीड़ोंकी विष्ठा खाता हुआ कीड़ोंसे ढकी आँखोंवाला वह प्राणी यमदूतोंद्वारा पीटा जाता है और तब कालक्रमसे वह शुद्ध होता है । ll 93-94 ॥
जो व्यक्ति भारतवर्षमें जन्म पाकर देवताओंकी मूर्ति तथा देवसम्बन्धी द्रव्योंकी चोरी करता है, वह अपने शरीरमें विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक दुस्तर वज्रकुण्ड नामक नरकमें निश्चित रूपसे निवास करता है उसे वहाँ भूखा रहना पड़ता है उन वज्रोंके द्वारा यमदूतोंसे पीटे जानेपर उसका शरीर दग्ध हो जाता है और वह रोने चिल्लाने लगता है, तत्पश्चात् उस मनुष्यकी शुद्धि हो जाती है ।। 95-96 ।।
जो मनुष्य ब्राह्मण और देवताके रजत, गव्य पदार्थ तथा वस्त्रोंको चुराता है; वह अपने शरीरके रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक तप्तपाषाणकुण्ड नामक नरकमें निश्चितरूपसे वास करता है। तत्पश्चात् तीन जन्मोंतक कच्छप, तीन जन्मोंतक श्वेतकुष्ठी, एक जन्ममें श्वेत दागवाला और फिर श्वेत पक्षी होता है। उसके बाद वह सात जन्मोंतक रक्तदोषसे युक्त, शूलरोगसे पीडित तथा अल्पायु मनुष्य होता है; तत्पश्चात् वह शुद्ध हो जाता है ।। 97–99 ॥
जो व्यक्ति देवता और ब्राह्मणके पीतल तथा कांसेके बर्तनोंका हरण करता है, वह अपने शरीरके | लोमसंख्यक वर्षोंतक तीक्ष्णपाषाणकुण्ड नामक नरक में वास करता है। फिर वह सात जन्मोंतक भारतवर्ष में घोड़ेकी योनिमें उत्पन्न होता है। उसके बाद वह अधिक अंगोंवाला तथा पैरके रोगसे ग्रस्त होता है। तत्पश्चात् वह शुद्ध हो जाता है ॥ 100-101 ॥जो मनुष्य किसी व्यभिचारिणी स्त्रीका अन्न तथा उस स्त्रीकी जीविकापर आश्रित रहनेवाले व्यक्तिका अन्न खाता है, वह अपने शरीरमें विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षो तक लालाकुण्ड नामक नरकमें निश्चितरूपसे निवास करता है। वहाँपर वह यमदूतोंद्वारा पीटा जाता है और अत्यन्त दुःखी होकर उसे वही लाला (लार) खानी पड़ती है। तदनन्तर वह मानवयोनिमें उत्पन्न होकर नेत्र तथा शूलके रोगसे पीड़ित होता है। इसके बाद वह क्रमसे शुद्ध हो जाता है । ll 102-103 ॥
जो ब्राह्मण भारतवर्ष में म्लेच्छोंकी सेवा करनेवाला तथा मसिजीवी (मसिपर आश्रित रहकर अपनी जीविका चलानेवाला) है, वह अपने शरीरके रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक मसीकुण्ड नामक नरकमें वास करता है और वहाँ बहुत दुःख पाता है। यमदूत उसे पीटते हैं और उसे वहाँपर उसी मसि (स्याही) - का सेवन करना पड़ता है। हे साध्वि! तत्पश्चात् वह तीन जन्मोंतक काले रंगका पशु होता है। तदनन्तर वह तीन जन्मोंतक काले रंगका छाग बकरा होता है और उसके बाद तीन जन्मोंतक ताड़का वृक्ष होता है; तत्पश्चात् वह शुद्ध हो जाता है । ll104 - 106 ॥
जो मनुष्य देवता अथवा ब्राह्मणके अन्न, फसल, ताम्बूल, आसन और शय्या आदिकी चोरी करता है; वह चूर्णकुण्ड नामक नरकमें जाता है और वहाँ सौ वर्षोंतक निवास करता है। वह यमदूतोंद्वारा पीटा जाता है। तत्पश्चात् वह तीन जन्मोंतक मेष और कुक्कुट होता है। उसके बाद वानर होता है। तदनन्तर भारतभूमिपर काशरोगसे पीड़ित, वंशहीन, दरिद्र तथा अल्पायु मनुष्य होता है; इसके बाद उसकी शुद्धि हो जाती है ॥ 107-109 ॥
जो मनुष्य किसी ब्राह्मणके धनका हरण करके उससे चक्र (कोल्हू) सम्बन्धी व्यवसाय करता है, वह चक्रकुण्ड नामक नरकमें डण्डोंसे पीटा जाता हुआ सौ वर्षोंतक वास करता है। उसके बाद वह मानवयोनिमें उत्पन्न होता है और तीन जन्मोंतक अनेक प्रकारकी व्याधियोंसे युक्त रोगी तथा वंशहीन तैलकार (तेलका व्यापार करनेवाला) होता है; तत्पश्चात् उसकी शुद्धि हो जाती है ।। 110-11llहे साध्वि ! जो व्यक्ति गोआ और ब्राह्मणके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता है, वह सौ युगांतक | वक्रतुण्ड नामक नरकमें निवास करता है। तत्पश्चात् वह सात जन्मोंतक वक्र अंगोंवाला, हीन अंगवाला, दरिद्र, वंशहीन तथा भार्याहीन मानव होता है। उसके बाद वह तीन जन्मोंतक गीध, तीन जन्मोंतक सूअर, तीन जन्मोंतक बिल्ली और तीन जन्मोंतक मोर होता है; तत्पश्चात् उसकी शुद्धि हो जाती है । ll 112 - 114 ॥
जो ब्राह्मण कछुएका निषिद्ध मांस खाता है. वह सौ वर्षोंतक कूर्मकुण्ड नामक नरकमें निवास करता है। वहाँपर उसे कछुए सदा नोंच-नोंचकर खाते रहते हैं। तत्पश्चात् वह तीन जन्मोंतक कछुए, तीन जन्मोंतक सूअर, तीन जन्मोंतक बिल्ली और तीन जन्मोंतक मोरकी योनिमें जन्म लेता है। उसके बाद वह शुद्ध हो जाता है ॥ 115-116 ॥
जो व्यक्ति किसी देवता या ब्राह्मणका घृत, तेल आदि चुराता है, वह पापी ज्वालाकुण्ड और भस्मकुण्ड नामक नरकमें जाता है। वहाँपर वह एक सौ वर्षोंतक वास करते हुए तेलमें पकाया जाता है। इसके बाद वह सात जन्मोंतक मछली और सात जन्मोंतक चूहा होता है, तत्पश्चात् उसकी शुद्धि हो जाती है ।। 117-118 ॥
जो मनुष्य पुण्यक्षेत्र भारतवर्षमें किसी देवता या ब्राह्मणके सुगन्धित तेल, इत्र, आँवलाचूर्ण तथा अन्य सुगन्धित द्रव्यकी चोरी करता है; वह दग्धकुण्ड नामक नरकमें वास करता है। वहाँपर वह अपने शरीरमें विद्यमान रोमोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक निवास करता है और दिन-रात दग्ध होता रहता है। इसके बाद वह सात जन्मोंतक दुर्गन्धिक होता है। पुनः तीन जन्मोंतक कस्तूरी मृग और सात जन्मोंतक मन्थान नामक कीड़ा होता है, तत्पश्चात् वह मनुष्ययोनिम उत्पन्न होता है ॥ 119- 121 ॥
हे साध्वि ! जो बलिष्ठ पुरुष भारतवर्षमें अपने बलसे अथवा छलसे अथवा हिंसाके द्वारा किसी दूसरेकी पैतृकसम्पत्तिका हरण करता है, वह तप्तसूचीकुण्ड नामक नरकमें वास करता है। वहउस नरकमें| दिन-रात उसी तरह संतप्त होता रहता है, जैसे कोई जीव तप्त तेलमें निरन्तर दग्ध होता रहता है। जलाये जानेपर भी कर्मभोगके कारण उसका देह न तो भस्मसात् होता है और न तो उसका नाश ही होता है, अपितु वह पापी सात मन्वन्तरतक वहाँ सन्तप्त होता रहता है। वह सदा चिल्लाता रहता है, भूखा रहता है और यमदूत उसे पीटते रहते हैं। उसके बाद वह साठ हजार वर्षोंतक विष्ठाका कीड़ा होता है। तत्पश्चात् वह मानवयोनिमें उत्पन्न होकर भूमिहीन और दरिद्र होता है। उसके बाद वह शुद्ध हो जाता है और अपनी योनिमें जन्म प्राप्तकर पुनः शुभ आचरण करने लगता है ।। 122 - 126 ॥