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ईश्वर और जीवका भेद  [Spiritual Story]
Spiritual Story - Shikshaprad Kahani (Short Story)

(5)

ईश्वर और जीवका भेद

एक महात्माने एक जिज्ञासुसे कहा कि हमको प्यास लगी है, यह तूंबा ले जा और यहाँसे थोड़ी दूरपर गंगाजी हैं, उनका जल ले आ। गंगाजल पानकर मैं तेरी समस्याका समाधान करूँगा। वह व्यक्ति गंगाजीसे जल भर लाया। तब महात्माने तँबामें गंगाजल भरा देखकर कहा कि 'यह गंगाजल नहीं है।' जिज्ञासुने कहा- 'हम कसम खाते हैं कि यह जल हम गंगाजीसे ही भरकर लाये हैं। यह गंगाजल ही है।' महात्माने कहा कि 'हम कैसे मान लें कि इस तूंबेमें गंगाजल है; क्योंकि गंगामें तो सैकड़ों मगरमच्छ रहते हैं, इसमें तो कुछ नहीं दीखता । गंगामें सैकड़ों नावें चलती हैं, इस तूंबेमें तो एक भी नौका नहीं दीख रही है।' तब जिज्ञासुने कहा-'महाराज ! इस तँबेमें यह सब दृश्य कैसे हो सकता है, गंगा तो बहुत बड़ा प्रवाह है, वैसा इस तँबेमें थोड़े ही है-उसका अंशमात्र है।'
महात्माने कहा- यही ईश्वर और जीवमें भेद है। इसलिये ईश्वर सर्वत्र दीखता है, सर्वत्र रह सकता है। जीव छोटा-सा अंश है, अतः उसमें यह शक्ति नहीं है, परंतु तत्त्वतः दोनों एक हैं—दोनोंमें कोई अन्तर नहीं है। जो ईश्वर है, वही जीव भी है।
यह बात सुनकर जिज्ञासु शान्त हो गया, उसकी समस्याका समाधान हो गया। फिर जिज्ञासुने प्रश्न किया- 'ज्ञानवान्की दृष्टिमें आत्मा सबके शरीरमें एक ही है, शुद्ध है, निर्दोष है, तब सबके साथ एक सा व्यवहार क्यों नहीं होता ?'
महात्माने उत्तर दिया- ज्ञानी दो प्रकारके होते हैंएक तो जीवन्मुक्त कहे जाते हैं, जिनको अपने शरीरकी भी खबर नहीं रहती और दूसरे चतुर्थी भूमिकावाले आचार्य कहे जाते हैं। जो जीवन्मुक्त हैं, वे तो अजगरकी-सी वृत्तिवाले होते हैं। किसीने उनके मुखमें अन्न डाल दिया तो खा लेते हैं, अन्यथा पड़े रहते हैं। उनको सब बराबर है, भूख-प्यास और भरा पेट दोनोंमें कोई अन्तर नहीं दीखता। वे आत्मानन्दमें डूबे रहते हैं। उन्हें भंगी, चमार, ब्राह्मण सब एक समान हैं, कोई भेद नहीं। किंतु दूसरे जो आचार्यकोटिके जीव हैं, वे सब जीवोंमें एक ही आत्माको तो देखते हैं, इसीसे उनको किसीसे राग या द्वेष नहीं है, परंतु वह समवर्ती (सबके साथ एक-सा व्यवहार करनेवाले) नहीं होते; क्योंकि समवर्तीका नाम ज्ञानी नहीं है। फिर ज्ञानका फल कहीं समवर्ती होना लिखा भी नहीं है, उसका फल तो राग-द्वेषसे मुक्त होना है। सो जो राग द्वेषरहित हैं, अपने आत्मानन्दमें आनन्दित हैं, वे ही ज्ञानी हैं। ज्ञानी- अज्ञानीमें इतना ही फर्क है कि ज्ञानीमें राग-द्वेष नहीं होता और अज्ञानीमें होता है।'



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eeshvar aur jeevaka bheda

(5)

eeshvar aur jeevaka bheda

ek mahaatmaane ek jijnaasuse kaha ki hamako pyaas lagee hai, yah toonba le ja aur yahaanse thoda़ee doorapar gangaajee hain, unaka jal le aa. gangaajal paanakar main teree samasyaaka samaadhaan karoongaa. vah vyakti gangaajeese jal bhar laayaa. tab mahaatmaane tanbaamen gangaajal bhara dekhakar kaha ki 'yah gangaajal naheen hai.' jijnaasune kahaa- 'ham kasam khaate hain ki yah jal ham gangaajeese hee bharakar laaye hain. yah gangaajal hee hai.' mahaatmaane kaha ki 'ham kaise maan len ki is toonbemen gangaajal hai; kyonki gangaamen to saikada़on magaramachchh rahate hain, isamen to kuchh naheen deekhata . gangaamen saikada़on naaven chalatee hain, is toonbemen to ek bhee nauka naheen deekh rahee hai.' tab jijnaasune kahaa-'mahaaraaj ! is tanbemen yah sab drishy kaise ho sakata hai, ganga to bahut bada़a pravaah hai, vaisa is tanbemen thoda़e hee hai-usaka anshamaatr hai.'
mahaatmaane kahaa- yahee eeshvar aur jeevamen bhed hai. isaliye eeshvar sarvatr deekhata hai, sarvatr rah sakata hai. jeev chhotaa-sa ansh hai, atah usamen yah shakti naheen hai, parantu tattvatah donon ek hain—dononmen koee antar naheen hai. jo eeshvar hai, vahee jeev bhee hai.
yah baat sunakar jijnaasu shaant ho gaya, usakee samasyaaka samaadhaan ho gayaa. phir jijnaasune prashn kiyaa- 'jnaanavaankee drishtimen aatma sabake shareeramen ek hee hai, shuddh hai, nirdosh hai, tab sabake saath ek sa vyavahaar kyon naheen hota ?'
mahaatmaane uttar diyaa- jnaanee do prakaarake hote hainek to jeevanmukt kahe jaate hain, jinako apane shareerakee bhee khabar naheen rahatee aur doosare chaturthee bhoomikaavaale aachaary kahe jaate hain. jo jeevanmukt hain, ve to ajagarakee-see vrittivaale hote hain. kiseene unake mukhamen ann daal diya to kha lete hain, anyatha pada़e rahate hain. unako sab baraabar hai, bhookha-pyaas aur bhara pet dononmen koee antar naheen deekhataa. ve aatmaanandamen doobe rahate hain. unhen bhangee, chamaar, braahman sab ek samaan hain, koee bhed naheen. kintu doosare jo aachaaryakotike jeev hain, ve sab jeevonmen ek hee aatmaako to dekhate hain, iseese unako kiseese raag ya dvesh naheen hai, parantu vah samavartee (sabake saath eka-sa vyavahaar karanevaale) naheen hote; kyonki samavarteeka naam jnaanee naheen hai. phir jnaanaka phal kaheen samavartee hona likha bhee naheen hai, usaka phal to raaga-dveshase mukt hona hai. so jo raag dvesharahit hain, apane aatmaanandamen aanandit hain, ve hee jnaanee hain. jnaanee- ajnaaneemen itana hee phark hai ki jnaaneemen raaga-dvesh naheen hota aur ajnaaneemen hota hai.'

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