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भक्त खीमसाहेब की मार्मिक कथा
भक्त खीमसाहेब की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त खीमसाहेब (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त खीमसाहेब]- भक्तमाल


प्रातःस्मरणीय सद्गुण भाणसाहेबके सुपुत्र खीमसाहेबका समय सं0 1790 से 1857 तक है। खीमसाहेब रविसाहेब के शिष्य थे। गुरु भाणके आज्ञानुसार रविसाहेबने खीमको कच्छके सापर गाँवमें जाकर रहनेका आदेश दिया। तदनुसार वे सापरमें रहे। ध्यानमें मस्त रहनेवाले खीमसाहेबने सुदीर्घकाल भगवत्स्मरणमें बिताया और वे एक बड़े ही प्रभावशाली संत हुए। उनके अनेकों चमत्कारकी कहानियाँ लोगोंमें प्रचलित हैं। उनको बहुतेरे 'वरुणका अवतार' मानते थे। नाविक लोग इनको 'दरियायी पीर' कहकर वन्दना करते थे। सापर गाँव समुद्र के किनारे था। इसलिये यात्रामें जानेके पहले नाविकलोग खीमसाहेबके चरणोंमें उपस्थित होते और उनका आशीर्वाद लेकर जाते थे। खीमसाहेबके आशीर्वादसे सदा ही उनका बेड़ा पार हो जाता। समुद्रमें डूबते समय प्रकट होकर नौकाको बचानेके चमत्कारकी भी अनेकों कथाएँ सुनी जाती हैं। हैबत नामका एक मुसलमान खलासी नौका लेकर समुद्रमें यात्रा कर रहा था, अचानक नौका डूबनेकी नौबत आयी। खलासीने खीमसाहेबको 1 स्मरण किया और उसकी नौका बच गयी। वह तभीसेउनका शिष्य बन गया। हैबतका भी विस्तृत चरित्र है। खीमसाहेब जैसे भवसागरसे तारनेवाले गुरु थे, वैसे ही दानी भी थे। कच्छके रणमें हरजीवन नामका एक लखपती बनजारा लुट गया। वह रोता-कलपता अपने साथियोंके साथ खीमसाहेबके पास गया। खीमसाहेबने उसे आश्वासन देकर रातको अपने यहाँ रखा और सबेरा होते ही उसको जगाकर लुटे हुए सवा लाख रुपये देकर विदा किया। खीमसाहेबके धाममें अनगिनत धन है, यह समझकर 'मेघ खाचर' नामक एक लुटेरा संतके धाममें सेंध लगाकर घुसा। खूब खोज की, पर उसे कहीं कुछ भी नहीं दिखायी दिया। संतने उसको आश्वासन दिया; अब वह जिधर देखता, उधर धनका ढेर दिखायी पड़ता । गुरुकी यह लीला देखकर मेघा ही उनके चरणों में गिर पड़ा। उस क्रूर डाकूको सद्गुरुने भक्त-संत बना दिया। अरबका एक खलासी भी खीमसाहेबका कृपापात्र बना। उनके अनेकों शिष्य थे। उन्होंने रविसाहेबके सामने महाप्रयाणकी तैयारी करके सं0 1857 में समाधि ले ली। कच्छ-सापरमें समुद्र के किनारे उनकी समाधि आज भी विद्यमान है।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt kheemasaaheba]- Bhaktmaal


praatahsmaraneey sadgun bhaanasaahebake suputr kheemasaahebaka samay san0 1790 se 1857 tak hai. kheemasaaheb ravisaaheb ke shishy the. guru bhaanake aajnaanusaar ravisaahebane kheemako kachchhake saapar gaanvamen jaakar rahaneka aadesh diyaa. tadanusaar ve saaparamen rahe. dhyaanamen mast rahanevaale kheemasaahebane sudeerghakaal bhagavatsmaranamen bitaaya aur ve ek bada़e hee prabhaavashaalee sant hue. unake anekon chamatkaarakee kahaaniyaan logonmen prachalit hain. unako bahutere 'varunaka avataara' maanate the. naavik log inako 'dariyaayee peera' kahakar vandana karate the. saapar gaanv samudr ke kinaare thaa. isaliye yaatraamen jaaneke pahale naavikalog kheemasaahebake charanonmen upasthit hote aur unaka aasheervaad lekar jaate the. kheemasaahebake aasheervaadase sada hee unaka beda़a paar ho jaataa. samudramen doobate samay prakat hokar naukaako bachaaneke chamatkaarakee bhee anekon kathaaen sunee jaatee hain. haibat naamaka ek musalamaan khalaasee nauka lekar samudramen yaatra kar raha tha, achaanak nauka doobanekee naubat aayee. khalaaseene kheemasaahebako 1 smaran kiya aur usakee nauka bach gayee. vah tabheeseunaka shishy ban gayaa. haibataka bhee vistrit charitr hai. kheemasaaheb jaise bhavasaagarase taaranevaale guru the, vaise hee daanee bhee the. kachchhake ranamen harajeevan naamaka ek lakhapatee banajaara lut gayaa. vah rotaa-kalapata apane saathiyonke saath kheemasaahebake paas gayaa. kheemasaahebane use aashvaasan dekar raatako apane yahaan rakha aur sabera hote hee usako jagaakar lute hue sava laakh rupaye dekar vida kiyaa. kheemasaahebake dhaamamen anaginat dhan hai, yah samajhakar 'megh khaachara' naamak ek lutera santake dhaamamen sendh lagaakar ghusaa. khoob khoj kee, par use kaheen kuchh bhee naheen dikhaayee diyaa. santane usako aashvaasan diyaa; ab vah jidhar dekhata, udhar dhanaka dher dikhaayee pada़ta . gurukee yah leela dekhakar megha hee unake charanon men gir pada़aa. us kroor daakooko sadgurune bhakta-sant bana diyaa. arabaka ek khalaasee bhee kheemasaahebaka kripaapaatr banaa. unake anekon shishy the. unhonne ravisaahebake saamane mahaaprayaanakee taiyaaree karake san0 1857 men samaadhi le lee. kachchha-saaparamen samudr ke kinaare unakee samaadhi aaj bhee vidyamaan hai.

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