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भक्त गंगसाहेब की मार्मिक कथा
भक्त गंगसाहेब की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त गंगसाहेब (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त गंगसाहेब]- भक्तमाल


सद्गुरु भाणसाहेबके पुत्र खीमसाहेबके लाडिले सपूत गंगसाहेब हुए। शेडखीमें रविसाहेबने भविष्यवाणी की थी कि 'खीमके घरमें एक पुत्ररत्न उत्पन्न होगा, वह परम विवेकी और प्रभावशाली संत बनेगा।'

गंगसाहेब खीमसाहेबके द्वितीय पुत्र थे। जब उनका जन्म हुआ, तब समाचार पाकर शेडखीसे रविसाहेब आये और शिशुका मुँह देखकर प्रसन्न हो गये। तत्काल गङ्गाराम नाम लेकर पुकारा और उसके कानमें महामन्त्र सुना दिया।

खीमसाहेबके घर आनेवाले साधु-संत बालकका मुख निहारकर चकित हो उठते थे और 'यह बालक होनहार और परम संत होगा- ऐसा यशोगान करके विदा होते थे। कुछ वर्षोंके बाद रविसाहेबने आकर गंगको मन्त्र- दीक्षा दी। उसी समय गंगने कहा- 'प्रभु! मुझको यहाँ रहना अच्छा नहीं लगता। मैं तो आपके संग चलूँगा।' बालककी दृढ़ भावना देखकर संत खीमसाहेब भी सहमत हो गये। इसलिये गंगको साथ लेकर रविसाहेब शेडखी लौट गये। गंगको बचपनसे ही उन्होंने अमृतबोध देना शुरू किया। उसको अवभूतका वेश दिया और विद्याभ्यास भी कराने लगे।

कुछ वर्षोंके बाद रविसाहेब गंगको लेकर तीर्थभ्रमणके लिये निकले। रास्तेमें अनेकों साधु-संतोंका सत् और ज्ञानचर्चा करनेका अवसर प्राप्त हुआ। लौटते समयवाराही गाँवमें, जहाँ खीमसाहेब रहते थे, वे पहुँचे। गङ्गारामको देखकर खीमसाहेबका प्रेम उमड़ आया। रविसाहेबसे गंगको वापस माँगा। गङ्गाराम रविसाहेबका संग छोड़ना नहीं चाहते थे। पर उन्होंने समझा-बुझाकर पिताके साथ रहनेके लिये उन्हें राजी किया। रविसाहेबके जानेके बाद गंग सरोवरके किनारे निर्जनमें चले जाते और शान्तचित्तसे प्रभुके ध्यानमें बैठ जाते। दिनभर ध्यान-भजनमें ही बीत जाता। शामको खीमसाहेब आते और समझा-बुझाकर घर ले जाते। सद्गुरु रविसाहेबकी कृपासे उनको बालकपनमें ही योगसाधन और सहज समाधिका अनुभव प्राप्त हो गया था।

कुछ वर्षों बाद आप तीर्थाटनके लिये निकल गये। यात्रामें अनेकों संतोंसे समागम हुआ। अनेकों भक्तजनोंको आपने रास्ता दिखलाया। सौराष्ट्रमें भ्रमण करते मोरारसाहेबसे भेंट हुई और वहाँ दुर्लभ ज्ञानगोष्ठी हुई। काठियावाड़ के रजवाड़ोंमें घूमते, ज्ञानचर्चा करते कच्छकी ओर निकल गये। सापर गाँवमें अपने पिता खीमसाहेबके पास कुछ दिन रहे। फिर शेडखी चले गये। कुछ समय पुनः सापरमें आ गये। गंगसाहेब बड़े ही प्रभावशाली और ध्यानी भक्त थे। उनके चमत्कारकी बहुत-सी कहानियाँ सुननेमें आती हैं। सं0 1883 में सापरमें उन्होंने जीवित समाधि ले ली। आज भी वह समाधि विद्यमान है।



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sadguru bhaanasaahebake putr kheemasaahebake laadile sapoot gangasaaheb hue. shedakheemen ravisaahebane bhavishyavaanee kee thee ki 'kheemake gharamen ek putraratn utpann hoga, vah param vivekee aur prabhaavashaalee sant banegaa.'

gangasaaheb kheemasaahebake dviteey putr the. jab unaka janm hua, tab samaachaar paakar shedakheese ravisaaheb aaye aur shishuka munh dekhakar prasann ho gaye. tatkaal gangaaraam naam lekar pukaara aur usake kaanamen mahaamantr suna diyaa.

kheemasaahebake ghar aanevaale saadhu-sant baalakaka mukh nihaarakar chakit ho uthate the aur 'yah baalak honahaar aur param sant hogaa- aisa yashogaan karake vida hote the. kuchh varshonke baad ravisaahebane aakar gangako mantra- deeksha dee. usee samay gangane kahaa- 'prabhu! mujhako yahaan rahana achchha naheen lagataa. main to aapake sang chaloongaa.' baalakakee dridha़ bhaavana dekhakar sant kheemasaaheb bhee sahamat ho gaye. isaliye gangako saath lekar ravisaaheb shedakhee laut gaye. gangako bachapanase hee unhonne amritabodh dena shuroo kiyaa. usako avabhootaka vesh diya aur vidyaabhyaas bhee karaane lage.

kuchh varshonke baad ravisaaheb gangako lekar teerthabhramanake liye nikale. raastemen anekon saadhu-santonka sat aur jnaanacharcha karaneka avasar praapt huaa. lautate samayavaaraahee gaanvamen, jahaan kheemasaaheb rahate the, ve pahunche. gangaaraamako dekhakar kheemasaahebaka prem umada़ aayaa. ravisaahebase gangako vaapas maangaa. gangaaraam ravisaahebaka sang chhoda़na naheen chaahate the. par unhonne samajhaa-bujhaakar pitaake saath rahaneke liye unhen raajee kiyaa. ravisaahebake jaaneke baad gang sarovarake kinaare nirjanamen chale jaate aur shaantachittase prabhuke dhyaanamen baith jaate. dinabhar dhyaana-bhajanamen hee beet jaataa. shaamako kheemasaaheb aate aur samajhaa-bujhaakar ghar le jaate. sadguru ravisaahebakee kripaase unako baalakapanamen hee yogasaadhan aur sahaj samaadhika anubhav praapt ho gaya thaa.

kuchh varshon baad aap teerthaatanake liye nikal gaye. yaatraamen anekon santonse samaagam huaa. anekon bhaktajanonko aapane raasta dikhalaayaa. sauraashtramen bhraman karate moraarasaahebase bhent huee aur vahaan durlabh jnaanagoshthee huee. kaathiyaavaada़ ke rajavaada़onmen ghoomate, jnaanacharcha karate kachchhakee or nikal gaye. saapar gaanvamen apane pita kheemasaahebake paas kuchh din rahe. phir shedakhee chale gaye. kuchh samay punah saaparamen a gaye. gangasaaheb bada़e hee prabhaavashaalee aur dhyaanee bhakt the. unake chamatkaarakee bahuta-see kahaaniyaan sunanemen aatee hain. san0 1883 men saaparamen unhonne jeevit samaadhi le lee. aaj bhee vah samaadhi vidyamaan hai.

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