View All Puran & Books

श्रीमद्भागवत महापुरण (भागवत पुराण)

Shrimad Bhagwat Purana (Bhagwat Katha)

स्कन्ध 10, अध्याय 61 - Skand 10, Adhyay 61

Previous Page 268 of 341 Next

भगवान्की सन्ततिका वर्णन तथा अनिरुद्ध विवाह में रुकमी का मारा जाना

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! भगवान् श्रीकृष्णकी प्रत्येक पत्नीके गर्भसे दस-दस पुत्र उत्पन्न हुए। वे रूप, बल आदि गुणोंमें अपने पिता भगवान् श्रीकृष्णसे किसी बातमें कम न थे ॥ 1 ॥ राजकुमारियाँ देखतीं कि भगवान् श्रीकृष्ण हमारे महलसे कभी बाहर नहीं जाते। सदा हमारे ही पास बने रहते हैं। इससे वे यही समझतीं कि श्रीकृष्णको मैं ही सबसे प्यारी हूँ। परीक्षित् ! सच पूछो तो वे अपने पति भगवान् श्रीकृष्णका तत्त्व- उनकी महिमा नहीं समझती थीं ॥ 2 ॥ वे सुन्दरियाँ अपने आत्मानन्दमें एकरस स्थित भगवान् श्रीकृष्णके कमल-कलीके समान सुन्दर मुख, विशाल बाहु, कर्णस्पर्शी नेत्र, प्रेमभरी मुसकान, रसमयी चितवन और मधुर वाणीसे स्वयं ही मोहित रहती थीं। वे अपने शृङ्गारसम्बन्धी हावभावोंसे उनके मनको अपनी ओर खींचनेमें समर्थ न हो सकीं। ॥ 3 ॥ वे सोलह हजारसे अधिक थीं। अपनी मन्द मन्द मुसकान और तिरछी चितवनसे युक्त मनोहर भौहोंके इशारेसे ऐसे प्रेमके बाण चलाती थीं, जो काम-कलाके भावोंसे परिपूर्ण होते थे, परन्तु किसी भी प्रकारसे, किन्हीं साधनोंके द्वारा वे भगवान्के मन एवं इन्द्रियोंमें चञ्चलता नहीं उत्पन्न कर सकीं ॥ 4 ॥परीक्षित् । ब्रह्मा आदि बड़े-बड़े देवता भी भगवान्‌के वास्तविक स्वरूपको या उनकी प्राप्तिके मार्गको नहीं जानते। उन्हीं रमारमण भगवान् श्रीकृष्णको उन स्त्रियोंने पतिके रूपमें प्राप्त किया था। अब नित्य निरन्तर उनके प्रेम और आनन्दकी अभिवृद्धि होती रहती थी और वे प्रेमभरी मुसकराहट, मधुर चितवन, नवसमागमकी लालसा आदिसे भगवान्‌की सेवा करती रहती थीं ॥ 5 ॥ उनमेंसे सभी पत्रियोंके साथ सेवा करनेके लिये सैकड़ों दासियाँ रहतीं। फिर भी जब उनके महलमें भगवान् पधारते तब वे स्वयं आगे जाकर आदरपूर्वक उन्हें लिवा लातीं, श्रेष्ठ आसनपर बैठातीं, उत्तम सामग्रियोंसे उनकी पूजा करतीं, चरणकमल पखारतीं, पान लगाकर खिलाती, पाँव दबाकर थकावट दूर करतीं, पंखा झलतीं, इत्र फुलेल, चन्दन आदि लगाती फूलोंके हार पहनाती केश संवारती, सुलाती, स्नान कराती और अनेक प्रकारके भोजन कराकर अपने हाथों भगवान्‌की सेवा करतीं ॥ 6 ॥

परीक्षित्! मैं कह चुका हूँ कि भगवान् श्रीकृष्णकी प्रत्येक पत्नीके दस-दस पुत्र थे। उन रानियोंमें आठ पटरानियाँ थीं, जिनके विवाहका वर्णन मैं पहले कर चुका हूँ। अब उनके प्रद्युम्न आदि पुत्रोंका वर्णन करता हूँ ॥ 7 । रुक्मिणीके गर्भसे दस पुत्र हुए— प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, पराक्रमी चारदेह, सुचारु चारुगुप्त, भद्रवारु, चारुचन्द्र, विचारु और दसवाँ चारु। ये अपने पिता भगवान् श्रीकृष्णसे किसी बातमें कम न थे॥ 8-9 ॥ सत्यभामा के भी दस पुत्र थे- भानु, सुभानु, स्वर्भानु, प्रभानु भानुमान् चन्द्रभानु बृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु जाम्बवतीके भी साम्ब आदि दस पुत्र ये साम्ब, सुमित्र, पुरुजित् शतजित् सहस्रजित् विजय, चित्रकेतु, वसुमान्, द्रविड और क्रतु ये सब श्रीकृष्णको बहुत प्यारे थे ।। 10 - 12 ।। नानजिती सत्याके भी दस पुत्र हुए- वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगु वेगवान्, वृष, आम, शङ्कु, वसु और परम तेजस्वी कुन्ति ॥ 13 ॥ कालिन्दीके दस पुत्र ये थे—श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु भद्र, शान्ति, दर्श, पूर्णमास और सबसे छोटा सोमक ॥ 14 ॥मद्रदेशकी राजकुमारी लक्ष्मणाके गर्भसे प्रघोष, गात्रवान् सिंह, बल, प्रबल, ऊर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजितका जन्म हुआ ॥ 15 ॥ मित्रविन्दाके पुत्र थे— वृक, हर्ष, अनिल, गृध, वर्धन, अन्नाद, महाश, पावन, वह्नि और क्षुधि ॥ 16 ॥ भद्राके पुत्र थे संग्रामजित्, बृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित्, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक ॥ 17 ॥ इन पटरानियोंके अतिरिक्त भगवान्की रोहिणी आदि सोलह हजार एक सौ और भी पत्रियाँ थीं। उनके दीप्तिमान् और ताम्रतप्त आदि दस-दस पुत्र हुए। रुक्मिणीनन्दन प्रद्युखका मायावती रतिके अतिरिक्त भोजकट नगरनिवासी रुक्मीकी पुत्री रुक्मवतीसे भी विवाह हुआ था। उसीके गर्भसे परम बलशाली अनिरुद्धका जन्म हुआ। परीक्षित्! श्रीकृष्णके पुत्रोंकी माताएँ ही सोलह हजारसे अधिक थीं। इसलिये उनके पुत्र-पौत्रोंकी संख्या करोड़ोंतक पहुँच गयी ।। 18-19 ।।

राजा परीक्षितने पूछा- परम ज्ञानी मुनीश्वर ! भगवान् श्रीकृष्णने रणभूमिमें रुक्मीका बड़ा तिरस्कार किया था। इसलिये वह सदा इस बातकी घातमें रहता था कि अवसर मिलते ही श्रीकृष्णसे उसका बदला लूँ और | उनका काम तमाम कर डालूँ। ऐसी स्थितिमें उसने अपनी कन्या रुक्मवती अपने शत्रुके पुत्र प्रद्युम्रजीको कैसे व्याह दी ? कृपा करके बतलाइये ! दो शत्रुओंमें— श्रीकृष्ण और रुक्मीमें फिरसे परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध कैसे हुआ ? ।। 20 ।। आपसे कोई बात छिपी नहीं है। क्योंकि योगीजन भूत, भविष्य और वर्तमानकी सभी बातें भलीभाँति जानते हैं। उनसे ऐसी बातें भी छिपी नहीं रहतीं; जो इन्द्रियोंसे परे हैं, बहुत दूर हैं अथवा बीचमें किसी वस्तुकी आड़ होनेके कारण नहीं दीखतीं ॥ 21 ॥

श्रीशुकदेवजी कहते हैं-परीक्षित्! प्रद्युम्रजी मूर्तिमान् कामदेव थे। उनके सौन्दर्य और गुणोंपर रीझकर रुक्मवतीने स्वयंवरमें उन्हींको वरमाला पहना दी। प्रद्युम्रजीने युद्धमें अकेले ही वहाँ इकट्ठे हुए नरपतियोंको जीत लिया और स्वमवतीको हर लाये ॥ 22 ॥यद्यपि भगवान् श्रीकृष्णसे अपमानित होनेके कारण रुक्मीके हृदयकी क्रोधाग्नि शान्त नहीं हुई थी, वह अब भी उनसे वैर गाँठे हुए था, फिर भी अपनी बहिन रुक्मिणीको प्रसन्न करनेके लिये उसने अपने भानजे प्रद्युम्नको अपनी बेटी ब्याह दी ॥ 23 ॥ परीक्षित्! दस पुत्रोंके अतिरिक्त रुक्मिणीजीके एक परम सुन्दरी बड़े-बड़े नेत्रोंवाली कन्या थी। उसका नाम था चारुमती। कृतवर्माके पुत्र बलीने उसके साथ विवाह किया ।। 24 ।।

परीक्षित् | रुक्मीका भगवान् श्रीकृष्णके साथ पुराना वैर था। फिर भी अपनी बहिन रुक्मिणीको प्रसन्न करनेके लिये उसने अपनी पौत्री रोचनाका विवाह रुक्मिणीके पौर, अपने नाती (दौहित्र) अनिरुद्धके साथ कर दिया। यद्यपि रुक्मीको इस बातका पता था कि इस प्रकारका विवाह सम्बन्ध धर्मके अनुकूल नहीं है, फिर भी स्नेह बन्धनमें बँधकर उसने ऐसा कर दिया ॥ 25 ॥ परीक्षित् ! अनिरुद्ध के विवाहोत्सव में सम्मिलित होनेके लिये भगवान् श्रीकृष्ण, बलरामजी, रुक्मिणीजी, प्रद्युम्न, साम्ब आदि द्वारकावासी भोजकट नगरमें पधारे || 26 || जब विवाहोत्सव निर्विघ्न समाप्त हो गया, तब कलिङ्गनरेश आदि घमंडी नरपतियोंने रुक्मीसे कहा कि 'तुम बलरामजीको पासोंके खेलमें जीत लो ॥ 27 ॥ राजन् ! बलरामजीको पासे डालने तो आते। नहीं, परन्तु उन्हें खेलनेका बहुत बड़ा व्यसन है।' उन लोगोंके बहकानेसे रुक्मीने बलरामजीको बुलवाया और वह उनके साथ चौसर खेलने लगा ॥ 28 ॥ बलरामजीने पहले सौ, फिर हजार और इसके बाद दस हजार मुहरोंका दाँव लगाया। उन्हें रुक्मीने जीत लिया। रुक्मीकी जीत होनेपर कलिङ्गनरेश दाँत दिखा-दिखाकर, ठहाका मारकर बलरामजीकी हँसी उड़ाने लगा। बलरामजीसे वह हँसी सहन न हुई। वे कुछ चिढ़ गये ।। 29 ।। इसके बाद रुक्मीने एक लाख मुहरोंका दाँव लगाया। उसे बलरामजीने जीत लिया। परन्तु स्वमी धूर्ततासे यह कहने लगा कि 'मैंने जीता है' 30 ॥ इसपर श्रीमान् बलरामजी क्रोधसे तिलमिला | उठे। उनके हृदयमें इतना क्षोभ हुआ, मानो पूर्णिमाके दिन समुद्रमें ज्वार आ गया हो। उनके नेत्र एक तो स्वभावसे ही लाल-लाल थे, दूसरे अत्यन्त क्रोधके मारे वे और भी दहक उठे । अब उन्होंने दस करोड़ मुहरोंका दाँव रखा ॥ 31 ॥ इस बार भी द्यूतनियमके अनुसार बलरामजीकी ही जीत हुई। परन्तु रुक्मीने छल करके कहा- 'मेरी जीत है। इस विषय विशेष नरेश आदि सभासद् इसका निर्णय कर दें ।। 32 ।।उस समय आकाशवाणीने कहा- 'यदि धर्मपूर्वक कहा जाय, तो बलरामजीने ही यह दाँव जीता है। रुक्मीका यह कहना सरासर झूठ है कि उसने जीता है' ॥ 33 ॥ एक तो रुक्मीके सिरपर मौत सवार थी और दूसरे उसके साथी दुष्ट राजाओंने भी उसे उभाड़ रखा था। इससे उसने आकाशवाणीपर कोई ध्यान न दिया और बलरामजीकी हँसी उड़ाते हुए कहा- ॥ 34 ॥ बलरामजी ! आखिर आपलोग वन-वन भटकनेवाले ग्वाले ही तो ठहरे ! आप पासा खेलना क्या जानें ? पासों और बाणोंसे तो केवल राजालोग ही खेला करते हैं, आप जैसे नहीं' ॥ 35 ॥ रुक्मीके इस प्रकार आक्षेप और राजाओंके उपहास करनेपर बलरामजी क्रोधसे आगबबूला हो उठे। उन्होंने एक मुद्गर उठाया और उस माङ्गलिक सभामें ही रुक्मीको मार डाला 36 ॥ पहले कलिङ्गनरेश दाँत दिखा-दिखाकर हँसता था, अब रंगमें भंग देखकर वहाँसे भागा; परन्तु बलरामजीने दस ही कदमपर उसे पकड़ लिया और क्रोधसे उसके दाँत तोड़ डाले ॥ 37 ॥ बलरामजीने अपने मुद्गरकी चोटसे दूसरे राजाओंकी भी बाँह, जाँघ और सिर आदि तोड़-फोड़ डाले। वे खूनसे लथपथ और भयभीत होकर वहाँसे भागते बने 38 ॥ परीक्षित्! भगवान् श्रीकृष्णने यह सोचकर कि बलरामजीका समर्थन करनेसे रुक्मिणीजी अप्रसन्न होंगी और रुक्मीके वधको बुरा बतलानेसे बलरामजी रुष्ट होंगे, अपने साले रुक्मीकी मृत्युपर भला-बुरा कुछ भी न कहा ।। 39 ।। इसके बाद अनिरुद्धजीका विवाह और शत्रुका वध दोनों प्रयोजन सिद्ध हो जानेपर भगवान्‌के आश्रित बलरामजी आदि यदुवंशी नवविवाहिता दुलहिन रोचनाके साथ अनिरुद्धजीको श्रेष्ठ रथपर चढ़ाकर भोजकट नगरसे द्वारकापुरीको चले आये ॥ 40 ॥

Previous Page 268 of 341 Next

श्रीमद्भागवत महापुरण को भागवत पुराण, Shrimad Bhagwat Purana, Bhagwat Katha, भागवत पुराण कथा, Bhagwat Katha, भागवत पुराण, Bhagwat Purana, भागवत महापुराण और Bhagvat Mahapurana आदि नामों से भी जाना जाता है।

श्रीमद्भागवत महापुरण
Index


  1. [अध्याय 1] श्रीसूतजी से शौनकादि ऋषियों का प्रश्न
  2. [अध्याय 2] भगवत् कथा और भगवदत भक्ति का माहात्य
  3. [अध्याय 3] भगवान् के अवतारोंका वर्णन
  4. [अध्याय 4] महर्षि व्यासका असन्तोष
  5. [अध्याय 5] भगवान् के यश-कीर्तनकी महिमा और देवर्षि नारदजी का चरित्र
  6. [अध्याय 6] नारदजी के पूर्वचरित्रका शेष भाग
  7. [अध्याय 7] अर्जुनके द्वारा अश्वत्थामाका मानमर्दन
  8. [अध्याय 8] गर्भ में परीक्षित्की रक्षा, कुन्तीके द्वारा भगवान की स्तुति
  9. [अध्याय 9] युधिष्ठिरादिका भीष्मजीके पास जाना
  10. [अध्याय 10] श्रीकृष्णका द्वारका-गमन
  11. [अध्याय 11] द्वारकामें श्रीकृष्ण का स्वागत
  12. [अध्याय 12] परीक्षितका जन्म
  13. [अध्याय 13] विदुरजीके उपदेशसे धृतराष्ट्र और गान्धारीका वन गमन
  14. [अध्याय 14] अपशकुन देखकर महाराज युधिष्ठिरका शङ्का करना
  15. [अध्याय 15] पाण्डवों का परीक्षित‌ को राज्य देकर स्वर्ग प्रस्थान
  16. [अध्याय 16] परीक्षित्की दिग्विजय तथा धर्म-पृथ्वी संवाद
  17. [अध्याय 17] महाराज परीक्षितद्वारा कलियुगका दमन
  18. [अध्याय 18] राजा परीक्षितको शृङ्गी ऋषिका शाप
  19. [अध्याय 19] परीक्षितका अनशनव्रत और शुकदेवजीका आगमन
  1. [अध्याय 1] उद्भव और विदुरकी भेंट
  2. [अध्याय 2] उद्धवजीद्वारा भगवान्की बाललीलाओंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] भगवान् के अन्य लीलाचरित्रोंका वर्णन
  4. [अध्याय 4] उद्धवजीसे विदा होकर विदुरजीका मैत्रेय ऋषिके पास जाना
  5. [अध्याय 5] विदुरजीका प्रश्न और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्ण
  6. [अध्याय 6] विराट् शरीरकी उत्पत्ति
  7. [अध्याय 7] विदुरजीके प्रश्न
  8. [अध्याय 8] ब्रह्माजीकी उत्पत्ति
  9. [अध्याय 9] ब्रह्माजीद्वारा भगवान्‌की स्तुति
  10. [अध्याय 10] दस प्रकारकी सृष्टिका वर्णन
  11. [अध्याय 11] मन्वन्तरादि कालविभागका वर्णन
  12. [अध्याय 12] सृष्टिका विस्तार
  13. [अध्याय 13] वाराह अवतारकी कथा
  14. [अध्याय 14] दितिका गर्भधारण
  15. [अध्याय 15] जय-विजयको सनकादिका शाप
  16. [अध्याय 16] जय-विजयका वैकुण्ठसे पतन
  17. [अध्याय 17] हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्षका जन्म
  18. [अध्याय 18] हिरण्याक्षके साथ वाराहभगवान्‌का युद्ध
  19. [अध्याय 19] हिरण्याक्षवध
  20. [अध्याय 20] ब्रह्माजीकी रची हुई अनेक प्रकारकी सृष्टि
  21. [अध्याय 21] कर्दमजीकी तपस्या और भगवान्‌का वरदान
  22. [अध्याय 22] देवहूतिके साथ कर्दम प्रजापतिका विवाह
  23. [अध्याय 23] कर्दम और देवहूतिका विहार
  24. [अध्याय 24] श्रीकपिलदेवजीका जन्म
  25. [अध्याय 25] देवहूतिका प्रश्न तथा भगवान् कपिलद्वारा भक्तियोग का वर्णन
  26. [अध्याय 26] महदादि भिन्न-भिन्न तत्त्वोंकी उत्पत्तिका वर्णन
  27. [अध्याय 27] प्रकृति-पुरुषके विवेकसे मोक्ष प्राप्तिका वर्णन
  28. [अध्याय 28] अष्टाङ्गयोगकी विधि
  29. [अध्याय 29] भक्तिका मर्म और कालकी महिमा
  30. [अध्याय 30] देह-गेहमें आसक्त पुरुषोंकी अधोगतिका वर्णन
  31. [अध्याय 31] मनुष्ययोनिको प्राप्त हुए जीवकी गतिका वर्णन
  32. [अध्याय 32] धूममार्ग और अर्चिरादि मार्गसे जानेवालोंकी गति
  33. [अध्याय 33] देवहूतिको तत्त्वज्ञान एवं मोक्षपदकी प्राप्ति
  1. [अध्याय 1] स्वायम्भुव मनुकी कन्याओंके वंशका वर्णन
  2. [अध्याय 2] भगवान् शिव और दक्ष प्रजापतिका मनोमालिन्य
  3. [अध्याय 3] सतीका पिताके यहाँ यज्ञोत्सवमें जानेके लिये आग्रह
  4. [अध्याय 4] सतीका अग्निप्रवेश
  5. [अध्याय 5] वीरभद्रकृत दक्षयज्ञविध्वंस और दक्षवध
  6. [अध्याय 6] ब्रह्मादि देवताओंका कैलास जाकर श्रीमहादेवजीको मनाना
  7. [अध्याय 7] दक्षयज्ञकी पूर्ति
  8. [अध्याय 8] ध्रुवका वन-गमन
  9. [अध्याय 9] ध्रुवका वर पाकर घर लौटना
  10. [अध्याय 10] उत्तमका मारा जाना, ध्रुवका यक्षोंके साथ युद्ध
  11. [अध्याय 11] स्वायम्भुव मनुका ध्रुवजीको युद्ध बंद करने
  12. [अध्याय 12] ध्रुवजीको कुबेरका वरदान और विष्णुलोककी प्राप्ति
  13. [अध्याय 13] ध्रुववंशका वर्णन, राजा अङ्गका चरित्र
  14. [अध्याय 14] राजा वेनकी कथा
  15. [अध्याय 15] महाराज पृथुका आविर्भाव और राज्याभिषेक
  16. [अध्याय 16] बन्दीजनद्वारा महाराज पृथुकी स्तुति
  17. [अध्याय 17] महाराज पृथुका पृथ्वीपर कुपित होना
  18. [अध्याय 18] पृथ्वी - दोहन
  19. [अध्याय 19] महाराज पृथुके सौ अश्वमेध यज्ञ
  20. [अध्याय 20] महाराज पृथुकी यज्ञशाला में श्रीविष्णु भगवान‌ का आगमन
  21. [अध्याय 21] महाराज पृथुका अपनी प्रजाको उपदेश
  22. [अध्याय 22] महाराज पृथुको सनकादिका उपदेश
  23. [अध्याय 23] राजा पृथुकी तपस्या और परलोकगमन
  24. [अध्याय 24] पृथुकी वंशपरम्परा और प्रचेताओंको भगवान् रुद्र का उपदेश
  25. [अध्याय 25] पुरञ्जनोपाख्यानका प्रारम्भ
  26. [अध्याय 26] राजा पुरञ्जनका शिकार खेलने वनमें जाना
  27. [अध्याय 27] पुरञ्जनपुरीपर चण्डवेगकी चढ़ाई
  28. [अध्याय 28] पुरञ्जनको स्त्रीयोनिकी प्राप्ति
  29. [अध्याय 29] पुरञ्जनोपाख्यानका तात्पर्य
  30. [अध्याय 30] प्रचेताओंको श्रीविष्णुभगवान्‌का वरदान
  31. [अध्याय 31] प्रचेताओंको श्रीनारदजीका उपदेश
  1. [अध्याय 1] प्रियव्रत चरित्र
  2. [अध्याय 2] आग्नीध्र-चरित्र
  3. [अध्याय 3] राजा नाभिका चरित्र
  4. [अध्याय 4] ऋषभदेवजीका राज्यशासन
  5. [अध्याय 5] ऋषभजीका अपने पुत्रोंको उपदेश देना
  6. [अध्याय 6] ऋषभदेवजीका देहत्याग
  7. [अध्याय 7] भरत चरित्र
  8. [अध्याय 8] भरतजीका मृगके मोहमें फँसकर मृग-योनिमें जन्म लेना
  9. [अध्याय 9] भरतजीका ब्राह्मणकुलमें जन्म
  10. [अध्याय 10] जडभरत और राजा रहूगणकी भेंट
  11. [अध्याय 11] राजा रहूगणको भरतजीका उपदेश
  12. [अध्याय 12] रहूगणका प्रश्न और भरतजीका समाधान
  13. [अध्याय 13] भवाटवीका वर्णन और रहूगणका संशयनाश
  14. [अध्याय 14] भवाटवीका स्पष्टीकरण
  15. [अध्याय 15] भरतके वंशका वर्णन
  16. [अध्याय 16] भुवनकोशका वर्णन
  17. [अध्याय 17] गङ्गाजीका विवरण
  18. [अध्याय 18] भिन्न-भिन्न वर्षोंका वर्णन
  19. [अध्याय 19] किम्पुरुष और भारतवर्षका वर्णन
  20. [अध्याय 20] अन्य छः द्वीपों तथा लोकालोकपर्वतका वर्णन
  21. [अध्याय 21] सूर्यके रथ और उसकी गतिका वर्णन
  22. [अध्याय 22] भिन्न-भिन्न ग्रहों की स्थिति और गतिका वर्णन
  23. [अध्याय 23] शिशुमारचक्रका वर्णन
  24. [अध्याय 24] राहु आदिकी स्थिति, अतलादि नीचेके लोकोंका वर्ण
  25. [अध्याय 25] श्रीसङ्कर्षणदेवका विवरण और स्तुति
  26. [अध्याय 26] नरकोंकी विभिन्न गतियोंका वर्णन
  1. [अध्याय 1] अजामिलोपाख्यानका प्रारम्भ
  2. [अध्याय 2] विष्णुदूतोंद्वारा भागवतधर्म-निरूपण
  3. [अध्याय 3] यम और यमदूतोंका संवाद
  4. [अध्याय 4] दक्षके द्वारा भगवान्‌की स्तुति
  5. [अध्याय 5] श्रीनारदजीके उपदेशसे दक्षपुत्रोंकी विरक्ति तथा
  6. [अध्याय 6] दक्षप्रजापतिकी साठ कन्याओंके वंश का विवरण
  7. [अध्याय 7] बृहस्पतिजीके द्वारा देवताओंका त्याग
  8. [अध्याय 8] नारायण कवच का उपदेश
  9. [अध्याय 9] विश्वरूपका वध, वृत्रासुरद्वारा देवताओंकी हार
  10. [अध्याय 10] देवताओं द्वारा दधीचि ऋषिकी अस्थियोंसे वज्र बनाना
  11. [अध्याय 11] वृत्रासुरकी वीरवाणी और भगवत्प्राप्ति
  12. [अध्याय 12] वृत्रासुरका वध
  13. [अध्याय 13] इन्द्रपर ब्रह्महत्याका आक्रमण
  14. [अध्याय 14] वृत्रासुरका पूर्वचरित्र
  15. [अध्याय 15] चित्रकेतुको अङ्गिरा और नारदजीका उपदेश
  16. [अध्याय 16] चित्रकेतुका वैराग्य तथा सङ्कर्षणदेव के दर्शन
  17. [अध्याय 17] चित्रकेतुको पार्वतीजीका शाप
  18. [अध्याय 18] अदिति और दितिकी सन्तानोंकी तथा मरुद्गणों की उत्पत्ति
  19. [अध्याय 19] पुंसवन-व्रतकी विधि
  1. [अध्याय 1] नारद युधिष्ठिर संवाद और जय-विजयकी कथा
  2. [अध्याय 2] हिरण्याक्षका वध होनेपर हिरण्यकशिपुका अपनी माता को समझाना
  3. [अध्याय 3] हिरण्यकशिपुकी तपस्या और वरप्राप्ति
  4. [अध्याय 4] हिरण्यकशिपुके अत्याचार और प्रह्लादके गुणोंका वर्णन
  5. [अध्याय 5] हिरण्यकशिपुके द्वारा प्रहादजीके वधका प्रयत्न
  6. [अध्याय 6] प्रह्लादजीका असुर बालकोंको उपदेश
  7. [अध्याय 7] प्रह्लादजीद्वारा माताके गर्भ में प्राप्त हुए नारद जी के उपदेश का वर्णन
  8. [अध्याय 8] नृसिंहभगवान्‌का प्रादुर्भाव, हिरण्यकशिपुका वध
  9. [अध्याय 9] प्रह्लादजीके द्वारा नृसिंहभगवान्की स्तुति
  10. [अध्याय 10] प्रहादजीके राज्याभिषेक और त्रिपुरदहनकी कथा
  11. [अध्याय 11] मानवधर्म, वर्णधर्म और स्त्रीधर्मका निरूपण
  12. [अध्याय 12] ब्रह्मचर्य और वानप्रस्थ आश्रमोंके नियम
  13. [अध्याय 13] यतिधर्मका निरूपण और अवधूत प्रह्लाद-संवाद
  14. [अध्याय 14] गृहस्थसम्बन्धी सदाचार
  15. [अध्याय 15] गृहस्थोंके लिये मोक्षधर्मका वर्णन
  1. [अध्याय 1] मन्वन्तरोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] ग्राहके द्वारा गजेन्द्रका पकड़ा जाना
  3. [अध्याय 3] गजेन्द्र के द्वारा भगवान्‌की स्तुति और उसका संकट मुक्त होना
  4. [अध्याय 4] गज और ग्राहका पूर्वचरित्र तथा उनका उद्धार
  5. [अध्याय 5] देवताओंका ब्रह्माजीके पास जाना और स्तुति
  6. [अध्याय 6] देवताओं और दैत्योका मिलकर समुद्रमन्थन का विचार
  7. [अध्याय 7] समुद्रमन्थनका आरम्भ और भगवान् शङ्करका विषपान
  8. [अध्याय 8] समुद्रसे अमृतका प्रकट होना और भगवान्‌का मोहिनी अवतार
  9. [अध्याय 9] मोहिनीरूपसे भगवान्के द्वारा अमृत बाँटा जाना
  10. [अध्याय 10] देवासुर संग्राम
  11. [अध्याय 11] देवासुर संग्रामकी समाप्ति
  12. [अध्याय 12] मोहिनीरूपको देखकर महादेवजीका मोहित होना
  13. [अध्याय 13] आगामी सात मन्वन्तरोका वर्णन
  14. [अध्याय 14] मनु आदिके पृथक्-पृथक् कर्मोंका निरूपण
  15. [अध्याय 15] राजा बलिकी स्वर्गपर विजय
  16. [अध्याय 16] कश्यपनीके द्वारा अदितिको पयोव्रतका उपदेश
  17. [अध्याय 17] भगवान्‌का प्रकट होकर अदितिको वर देना
  18. [अध्याय 18] वामनभगवान्‌का प्रकट होकर राजा बलिकी यज्ञशाला में जाना
  19. [अध्याय 19] भगवान् वामनका बलिसे तीन पग पृथ्वी माँगना
  20. [अध्याय 20] भगवान् वामनजीका विराट् रूप होकर दो ही पगसे पृथ
  21. [अध्याय 21] बलिका बाँधा जाना
  22. [अध्याय 22] बलिके द्वारा भगवान्‌की स्तुति और भगवान्‌ का प्रसन्न होना
  23. [अध्याय 23] बलिका बन्धनसे छूटकर सुतल लोकको जाना
  24. [अध्याय 24] भगवान्के मत्स्यावतारकी कथा
  1. [अध्याय 1] वैवस्वत मनुके पुत्र राजा सुद्युनकी कथा
  2. [अध्याय 2] पृषध, आदि मनुके पाँच पुत्रोंका वंश
  3. [अध्याय 3] महर्षि च्यवन और सुकन्याका चरित्र, राजा शर्याति
  4. [अध्याय 4] नाभाग और अम्बरीषकी कथा
  5. [अध्याय 5] दुर्वासाजीकी दुःखनिवृत्ति
  6. [अध्याय 6] इक्ष्वाकु वंशका वर्णन, मान्धाता और सौभरि ऋषिकी कथा
  7. [अध्याय 7] राजा त्रिशत्रु और हरिचन्द्रकी कथा
  8. [अध्याय 8] सगर-चरित्र
  9. [अध्याय 9] भगीरथ चरित्र और गङ्गावतरण
  10. [अध्याय 10] भगवान् श्रीरामकी लीलाओंका वर्णन
  11. [अध्याय 11] भगवान् श्रीरामकी शेष लीलाओंका वर्णन
  12. [अध्याय 12] इक्ष्वाकुवंशके शेष राजाओंका वर्णन
  13. [अध्याय 13] राजा निमिके वंशका वर्णन
  14. [अध्याय 14] चन्द्रवंशका वर्णन
  15. [अध्याय 15] ऋचीक, जमदग्नि और परशुरामजीका चरित्र
  16. [अध्याय 16] क्षत्रवृद्ध, रजि आदि राजाओंके वंशका वर्णन
  17. [अध्याय 17] ययाति चरित्र
  18. [अध्याय 18] ययातिका गृहत्याग
  19. [अध्याय 19] पूरुके वंश, राजा दुष्यन्त और भरतके चरित्रका वर्णन
  20. [अध्याय 20] भरतवंशका वर्णन, राजा रन्तिदेवकी कथा
  21. [अध्याय 21] पाञ्चाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओंके वंशका वर्ण
  22. [अध्याय 22] अनु, ह्यु, तुर्वसु और यदुके वंशका वर्णन
  23. [अध्याय 23] विदर्भके वंशका वर्णन
  24. [अध्याय 24] परशुरामजीके द्वारा क्षत्रियसंहार
  1. [अध्याय 1] भगवानके द्वारा पृथ्वीको आश्वासन और कंस के अत्याचार
  2. [अध्याय 2] भगवान्का गर्भ-प्रवेश और देवताओंद्वारा गर्भ-स्तुति
  3. [अध्याय 3] भगवान् श्रीकृष्णका प्राकट्य
  4. [अध्याय 4] कंसके हाथसे छूटकर योगमायाका आकाशमें जाकर भविष्यवाणी करना
  5. [अध्याय 5] गोकुलमें भगवान्‌का जन्ममहोत्सव
  6. [अध्याय 6] पूतना- उद्धार
  7. [अध्याय 7] शकट-भञ्जन और तृणावर्त - उद्धार
  8. [अध्याय 8] नामकरण संस्कार और बाललीला
  9. [अध्याय 9] श्रीकृष्णका ऊखलसे बाँधा जाना
  10. [अध्याय 10] यमलार्जुनका उद्धार
  11. [अध्याय 11] गोकुलसे वृन्दावन जाना तथा वत्सासुर और बकासुर का उद्धार
  12. [अध्याय 12] अघासुरका उद्धार
  13. [अध्याय 13] ब्रह्माजीका मोह और उसका नाश
  14. [अध्याय 14] ब्रह्माजीके द्वारा भगवान्‌की स्तुति
  15. [अध्याय 15] धेनुकासुरका उद्धार और ग्वालबालोंको कालियनाग के विश से बचाना
  16. [अध्याय 16] कालिय पर कृपा
  17. [अध्याय 17] कालियके कालियदहमें आनेकी कथा तथा भगवान्‌ का दावानल पान
  18. [अध्याय 18] प्रलम्बासुर - उद्धार
  19. [अध्याय 19] गौओं और गोपोंको दावानलसे बचाना
  20. [अध्याय 20] वर्षा और शरदऋतुका वर्णन
  21. [अध्याय 21] वेणुगीत
  22. [अध्याय 22] चीरहरण
  23. [अध्याय 23] यज्ञपत्त्रियोंपर कृपा
  24. [अध्याय 24] इन्द्रयज्ञ-निवारण
  25. [अध्याय 25] गोवर्धनधारण
  26. [अध्याय 26] नन्दबाबासे गोपोंकी श्रीकृष्णके प्रभावके विषय में सुनना
  27. [अध्याय 27] श्रीकृष्णका अभिषेक
  28. [अध्याय 28] वरुणलोकसे नन्दजीको छुड़ाकर लाना
  29. [अध्याय 29] रासलीलाका आरम्भ
  30. [अध्याय 30] श्रीकृष्णके विरहमें गोपियोंकी दशा
  31. [अध्याय 31] गोपिकागीत
  32. [अध्याय 32] भगवान्‌का प्रकट होकर गोपियोंको सान्त्वना देन
  33. [अध्याय 33] महारास
  34. [अध्याय 34] सुदर्शन और शङ्खचूडका उद्धार
  35. [अध्याय 35] युगलगीत
  36. [अध्याय 36] अरिष्टासुरका उद्धार और कंसका श्री अक्रूर को व्रज भेजना
  37. [अध्याय 37] केशी और व्योमासुरका उद्धार तथा नारदजीके द्वारा भगवान की स्तुति
  38. [अध्याय 38] अक्रूरजीकी व्रजयात्रा
  39. [अध्याय 39] श्रीकृष्ण-बलरामका मथुरागमन
  40. [अध्याय 40] अक्रूरजीके द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति
  41. [अध्याय 41] श्रीकृष्णका मथुराजीमें प्रवेश
  42. [अध्याय 42] कुब्जापर कृपा, धनुषभङ्ग और कंसकी घबड़ाहट
  43. [अध्याय 43] कुवलयापीडका उद्धार और अखाड़ेमें प्रवेश
  44. [अध्याय 44] चाणूर, मुष्टिक आदि पहलवानोंका तथा कंसका उद्धार
  45. [अध्याय 45] श्रीकृष्ण-बलरामका यज्ञोपवीत और गुरुकुलप्रवेश
  46. [अध्याय 46] उद्धवजीकी ब्रजयात्रा
  47. [अध्याय 47] उद्धव तथा गोपियोंकी बातचीत और भ्रमरगीत
  48. [अध्याय 48] भगवान्‌का कुब्जा और अक्रूरजीके घर जाना
  49. [अध्याय 49] अक्कुरजीका हस्तिनापुर जाना
  50. [अध्याय 50] जरासन्धसे युद्ध और द्वारकापुरीका निर्माण
  51. [अध्याय 51] कालयवनका भस्म होना, मुचुकुन्दकी कथा
  52. [अध्याय 52] द्वारकागमन, श्रीबलरामजीका विवाह और रुक्मणी जी का संदेश
  53. [अध्याय 53] रुक्मिणीहरण
  54. [अध्याय 54] शिशुपालके साथी राजाओंकी और रुक्मीकी हार तथा कृष्ण-रुक्मणी विवाह
  55. [अध्याय 55] प्रद्युम्नका जन्म और शम्बरासुरका वध
  56. [अध्याय 56] स्यमन्तकमणिकी कथा, जाम्बवती और सत्यभामाके साथ श्रीकृष्ण का विवाह
  57. [अध्याय 57] स्यमन्तक- हरण, शतधन्वाका उद्धार
  58. [अध्याय 58] भगवान् श्रीकृष्णके अन्यान्य विवाहोंकी कथा
  59. [अध्याय 59] भौमासुरका उद्धार और सोलह हजार एक सौ राज कन्याओं से भगवान का विवाह
  60. [अध्याय 60] श्रीकृष्ण-रुक्मिणी संवाद
  61. [अध्याय 61] भगवान्की सन्ततिका वर्णन तथा अनिरुद्ध विवाह में रुकमी का मारा जाना
  62. [अध्याय 62] ऊषा-अनिरुद्ध मिलन
  63. [अध्याय 63] भगवान् श्रीकृष्णके साथ बाणासुरका युद्ध
  64. [अध्याय 64] नृग राजाकी कथा
  65. [अध्याय 65] श्रीबलरामजीका व्रजगमन
  66. [अध्याय 66] पौण्ड्रक और काशिराजका उद्धार
  67. [अध्याय 67] द्विविदका उद्धार
  68. [अध्याय 68] कौरवोंपर बलरामजीका कोप और साम्बका विवाह
  69. [अध्याय 69] देवर्षि नारदजीका भगवान्‌की गृहचर्या देखना
  70. [अध्याय 70] भगवान् श्रीकृष्णकी नित्यचर्या और जरासंध के कैदी राजाओं के दूत का आना
  71. [अध्याय 71] श्रीकृष्णभगवान्‌का इन्द्रप्रस्थ पधारना
  72. [अध्याय 72] पाण्डवोंके राजसूययज्ञका आयोजन और जरासन्धका उद्धार
  73. [अध्याय 73] जरासन्धके जेलसे छूटे हुए राजाओंकी बिदाई
  74. [अध्याय 74] भगवान् की अग्रपूजा और शिशुपालका उद्धार
  75. [अध्याय 75] राजसूय यज्ञकी पूर्ति और दुर्योधनका अपमान
  76. [अध्याय 76] शाल्वके साथ यादवोंका युद्ध
  77. [अध्याय 77] शाल्व उद्धार
  78. [अध्याय 78] दन्तवका और विदूरथका उद्धार तथा बलराम जी द्वारा सूत जी का वध
  79. [अध्याय 79] बल्वलका उद्धार और बलरामजीकी तीर्थयात्रा
  80. [अध्याय 80] श्रीकृष्णके द्वारा सुदामाजीका स्वागत
  81. [अध्याय 81] सुदामाजीको ऐश्वर्यकी प्राप्ति
  82. [अध्याय 82] भगवान् श्रीकृष्ण-बलरामसे गोप-गोपियोंकी भेंट
  83. [अध्याय 83] भगवान्‌की पटरानियोंके साथ द्रौपदीकी बातचीत
  84. [अध्याय 84] वसुदेवजीका यज्ञोत्सव
  85. [अध्याय 85] श्रीभगवान्के का वसुदेवजीको ब्रह्मज्ञान-उपदेश और देवकी के पुत्रों को लौटाना
  86. [अध्याय 86] सुभद्राहरण और भगवान्‌का राजा जनक उर श्रुतदेव ब्राह्मण के यहाँ जाना
  87. [अध्याय 87] वेदस्तुति
  88. [अध्याय 88] शिवजीका सङ्कटमोचन
  89. [अध्याय 89] भृगुजीके द्वारा त्रिदेवोंकी परीक्षा
  90. [अध्याय 90] भगवान् कृष्णके लीला-विहारका वर्णन
  1. [अध्याय 1] यदुवंशको ऋषियोंका शाप
  2. [अध्याय 2] वसुदेवजी को श्रीनारदजीका राजा जनक और नौ योगेश्वरों का संवाद सुनना
  3. [अध्याय 3] माया, मायासे पार होनेके उपाय
  4. [अध्याय 4] भगवान् के अवतारोंका वर्णन
  5. [अध्याय 5] भक्तिहीन पुरुषोंकी गति और भगवान्‌की पूजाविधि
  6. [अध्याय 6] देवताओंकी भगवान्‌ले स्वधाम सिधारनेके लिये प्रार्थना करना
  7. [अध्याय 7] अवधूतोपाख्यान – पृथ्वीसे लेकर कबूतर तक आठ गुरु
  8. [अध्याय 8] अवधूतोपाख्यान अजगरसे लेकर पिंगला तक नौ गुरु
  9. [अध्याय 9] अवधूतोपाख्यान – क्रूररसे लेकर भृङ्गीतक सात गुरु
  10. [अध्याय 10] लौकिक तथा पारलौकिक भोगोंकी असारताका निरूपण
  11. [अध्याय 11] बद्ध, मुक्त और भक्तजनोंके लक्षण
  12. [अध्याय 12] सत्सङ्गकी महिमा और कर्म तथा कर्मत्यागकी विधि
  13. [अध्याय 13] हंसरूपसे सनकादिको दिये हुए उपदेशका वर्णन
  14. [अध्याय 14] भक्तियोगकी महिमा तथा ध्यानविधिका वर्णन
  15. [अध्याय 15] भिन्न-भिन्न सिद्धियोंके नाम और लक्षण
  16. [अध्याय 16] भगवान्‌की विभूतियोंका वर्णन
  17. [अध्याय 17] वर्णाश्रम धर्म-निरूपण
  18. [अध्याय 18] वानप्रस्थ और संन्यासीके धर्म
  19. [अध्याय 19] भक्ति, ज्ञान और यम-नियमादि साधनोंका वर्णन
  20. [अध्याय 20] ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग
  21. [अध्याय 21] गुण-दोष-व्यवस्थाका स्वरूप और रहस्य
  22. [अध्याय 22] तत्त्वोंकी संख्या और पुरुष प्रकृति-विवेक
  23. [अध्याय 23] एक तितिक्षु ब्राह्मणका इतिहास
  24. [अध्याय 24] सांख्ययोग
  25. [अध्याय 25] तीनों गुणोंकी वृत्तियोंका निरूपण
  26. [अध्याय 26] पुरूरवाकी वैराग्योक्ति
  27. [अध्याय 27] क्रियायोगका वर्णन
  28. [अध्याय 28] परमार्थनिरूपण
  29. [अध्याय 29] भागवतधर्मोका निरूपण और उद्धवजीका बदरिकाश्रम गमन
  30. [अध्याय 30] यदुकुलका संहार
  31. [अध्याय 31] श्रीभगवान्का स्वधामगमन
  1. [अध्याय 1] कलियुगके राजवंशोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] कलियुगके धर्म
  3. [अध्याय 3] राज्य युगधर्म और कलियुगके दोषोंसे बचनेका उपाय
  4. [अध्याय 4] चार प्रकारके प्रलय
  5. [अध्याय 5] श्रीशुकदेवजीका अन्तिम उपदेश
  6. [अध्याय 6] परीक्षित्की परमगति, जनमेजयका सर्पसत्र
  7. [अध्याय 7] अथर्ववेदकी शाखाएँ और पुराणोंके लक्षण
  8. [अध्याय 8] मार्कण्डेयजीकी तपस्या और वर-प्राप्ति
  9. [अध्याय 9] मार्कण्डेयजीका माया दर्शन
  10. [अध्याय 10] मार्कण्डेयजीको भगवान् शङ्करका वरदान
  11. [अध्याय 11] भगवान् के अङ्ग, उपाङ्ग और आयुधोंका रहस्य तथा
  12. [अध्याय 12] श्रीमद्भागवतकी संक्षिप्त विषय-सूची
  13. [अध्याय 13] विभिन्न पुराणोंकी श्लोक संख्या और श्रीमद्भागवत की महिमा