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हमारे कुलमें युवा नहीं मरते  [हिन्दी कथा]
बोध कथा - Moral Story (Story To Read)

काशीके राजा ब्रह्मदत्तके राज्यमें एक ब्राह्मण रहता था - धर्मपाल । उसमें नामके अनुसार ही गुण थे। यहाँतक कि उसके घरके नौकर-चाकरतक बड़े सदाचारी, दानी तथा व्रत-उपवासपरायण थे।

धर्मपालके एक ही पुत्र था। जब वह वयस्क हो गया, तब पिताने उसे पर्याप्त धन देकर तक्षशिला महाविद्यालय में पढ़ने भेज दिया। वहाँ पाँच सौ शिष्य थे। थोड़े ही दिनोंमें वह सबसे आगे निकल गया।

दुर्दैववश एक दिन ऐसा हुआ कि आचार्यका एक युवा पुत्र भर गया। सभी लोग रोने-धोने लगे। अन्तमें श्मशानसे लौटकर सभी परस्पर बात करने लगे- 'देखो, कैसा युवा लड़का था, बेचारा चल बसा।' धर्मपालका लड़का भी वहीं बैठा सब सुन रहा था। प्रसङ्गवशात् उसके मुँहसे निकल गया, पर भाई हमलोगों के यहाँ तो कोई युवा व्यक्ति नहीं मरता।' अब तो सभी लड़के उसकी खिल्ली उड़ाने लगे बात आचार्यक पहुँची। उन्होंने बुलाकर उससे सारी बात पूछी। उसने कहा "गुरुदेव ! धर्मका कुछ ऐसा प्रभाव है कि हमारे यहाँ सात पीढ़ियोंतक कोई युवा नहीं मरा।'

आचार्यको आश्चर्य हुआ। उन्होंने एक व्यक्तिको विद्यालयका भार सौंपकर कुछ बकरेकी हड्डियाँ साथमें लीं और चल पड़े काशीकी ओर पता लगाते हुएकिसी प्रकार धर्मपालके गाँवमें भी पहुँच गये। धर्मपालने इनका बड़ा स्वागत किया। कुशल प्रश्नकी बात आनेपर आचार्यने कहा- 'धर्मपाल ! तुम्हारा पुत्र सहसा चल बसा। यह महान् क्लेशकी बात है।' इसपर धर्मपाल बड़े जोरोंसे हँस पड़ा और बोला- 'महाराज ! कोई दूसरा मरा होगा। हमारे यहाँ तो आज सात पीढ़ियोंसे कोई भी युवा नहीं मरा।' अब आचार्यने हड्डियाँ दिखायीं। धर्मपाल बोला- 'महाराज ! ये हड्डियाँ तो बकरे कुत्तेकी होंगी। हमारे यहाँ तो ऐसा होता नहीं।' | इतना कहकर वह फिर खिलखिलाकर हँस पड़ा।

अन्तमें आचार्यने अपने कपटका भेद खोला और उससे युवावस्थामें किसीके न मरनेका कारण पूछने लगे। धर्मपालने कहा - 'महाराज ! हम धर्मका आचरण करते हैं, पापकर्मोंसे दूर रहते हैं, सत्य बोलते हैं, असत्यसे दूर रहते हैं। सत्सङ्ग करते हैं, दुर्जनसे दूर रहते हैं। दान देते समय मीठे वचन बोलते हैं। श्रमण, ब्राह्मण, प्रवासी, याचक, दरिद्र- इन सबोंको अन्न जलसे संतुष्ट रखते हैं। हमारे यहाँके पुरुष पत्नीव्रत और स्त्रियाँ पतिव्रतका पालन करती हैं। इसी कारण धर्म | धर्मचारीकी रक्षा करता है और हमलोग अल्पावस्था में कभी भी मौत के मुँहमें नहीं जाते ।

- जा0 श0 (जातक 10 । 9)



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hamaare kulamen yuva naheen marate

kaasheeke raaja brahmadattake raajyamen ek braahman rahata tha - dharmapaal . usamen naamake anusaar hee gun the. yahaantak ki usake gharake naukara-chaakaratak bada़e sadaachaaree, daanee tatha vrata-upavaasaparaayan the.

dharmapaalake ek hee putr thaa. jab vah vayask ho gaya, tab pitaane use paryaapt dhan dekar takshashila mahaavidyaalay men padha़ne bhej diyaa. vahaan paanch sau shishy the. thoda़e hee dinonmen vah sabase aage nikal gayaa.

durdaivavash ek din aisa hua ki aachaaryaka ek yuva putr bhar gayaa. sabhee log rone-dhone lage. antamen shmashaanase lautakar sabhee paraspar baat karane lage- 'dekho, kaisa yuva lada़ka tha, bechaara chal basaa.' dharmapaalaka lada़ka bhee vaheen baitha sab sun raha thaa. prasangavashaat usake munhase nikal gaya, par bhaaee hamalogon ke yahaan to koee yuva vyakti naheen marataa.' ab to sabhee lada़ke usakee khillee uda़aane lage baat aachaaryak pahunchee. unhonne bulaakar usase saaree baat poochhee. usane kaha "gurudev ! dharmaka kuchh aisa prabhaav hai ki hamaare yahaan saat peedha़iyontak koee yuva naheen maraa.'

aachaaryako aashchary huaa. unhonne ek vyaktiko vidyaalayaka bhaar saunpakar kuchh bakarekee haddiyaan saathamen leen aur chal pada़e kaasheekee or pata lagaate huekisee prakaar dharmapaalake gaanvamen bhee pahunch gaye. dharmapaalane inaka bada़a svaagat kiyaa. kushal prashnakee baat aanepar aachaaryane kahaa- 'dharmapaal ! tumhaara putr sahasa chal basaa. yah mahaan kleshakee baat hai.' isapar dharmapaal bada़e joronse hans pada़a aur bolaa- 'mahaaraaj ! koee doosara mara hogaa. hamaare yahaan to aaj saat peedha़iyonse koee bhee yuva naheen maraa.' ab aachaaryane haddiyaan dikhaayeen. dharmapaal bolaa- 'mahaaraaj ! ye haddiyaan to bakare kuttekee hongee. hamaare yahaan to aisa hota naheen.' | itana kahakar vah phir khilakhilaakar hans pada़aa.

antamen aachaaryane apane kapataka bhed khola aur usase yuvaavasthaamen kiseeke n maraneka kaaran poochhane lage. dharmapaalane kaha - 'mahaaraaj ! ham dharmaka aacharan karate hain, paapakarmonse door rahate hain, saty bolate hain, asatyase door rahate hain. satsang karate hain, durjanase door rahate hain. daan dete samay meethe vachan bolate hain. shraman, braahman, pravaasee, yaachak, daridra- in sabonko ann jalase santusht rakhate hain. hamaare yahaanke purush patneevrat aur striyaan pativrataka paalan karatee hain. isee kaaran dharm | dharmachaareekee raksha karata hai aur hamalog alpaavastha men kabhee bhee maut ke munhamen naheen jaate .

- jaa0 sha0 (jaatak 10 . 9)

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